view all

यूपी में कांग्रेस की नैया प्रियंका ही पार लगा सकती हैं

प्रियंका औपचारिक या अनौपचारिक रूप से कांग्रेस में सत्ता का नया केंद्र बनकर उभरी हैं

Sanjay Singh

यूपी में प्रियंका गांधी को समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने में ज्यादा मुश्किल नहीं हुई. उन्होंने बस राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) के एक अधिकारी को अपने दूत के रूप में लखनऊ भेजा. यह अधिकारी फिलहाल राजीव गांधी फाउंडेशन में काम कर रहे हैं. इसके अलावा प्रियंका ने डिंपल यादव को कुछ टेक्स्ट मैसेज भेजे और एक बार टेलीफोन पर अखिलेश यादव से बात की.

इसके बाद दोनों पार्टियों के बीच डील पर मुहर लग गई. इसके साथ ही प्रियंका औपचारिक या अनौपचारिक रूप से कांग्रेस में सत्ता का नया केंद्र बनकर उभरी हैं.


अब तक इस बात का कोई सबूत नहीं था जिनसे पता चलता कि अखिलेश और प्रियंका एक-दूसरे का कितना सम्मान करते हैं. हालांकि,अब यह पता चल रहा है कि उनके डिंपल यादव के साथ कुछ व्यक्तिगत संबंध जरूर हैं.

ऐसा जान पड़ता है कि अखिलेश ने प्रियंका के शब्दों को ऐसे निर्णय लेने वाले के वचन के रूप में लिया जिसके वादों का हर हाल में पालन किया जाएगा. जिसके शब्दों में बाकी के सभी कांग्रेसियों के मुकाबले कहीं ज्यादा दम और असर है.

कांग्रेस और सपा दोनों को गठबंधन की जरूरत थी, लेकिन बड़े तौर पर यह समझ आ रहा था कि कांग्रेस को इसकी कहीं ज्यादा जरूरत थी. दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की पूरी प्रक्रिया में प्रियंका की छवि अपने भाई राहुल गांधी के मुकाबले कहीं बड़ी नजर आई. इस अहम वक्त पर राहुल न तो कहीं दिखाई दिखाई दिए, न ही सुनाई दिए.

प्रियंका को क्रेडिट

कांग्रेस में गांधी परिवार के बाहर सबसे ताकतवर शख्स अहमद पटेल ने इस गठबंधन का श्रेय प्रियंका को देने में देर नहीं लगाई. उनके ट्वीट में कांग्रेस महासचिव, यूपी इंचार्ज और प्रियंका गांधी का जिक्र यूपी के मुख्यमंत्री के साथ सफलतापूर्वक समझौते के लिए किया गया. लेकिन, इसमें राहुल गांधी का कहीं जिक्र नहीं था.

प्रियंका को राहुल से बेहतर रणनीतिकार माना जाता है

राहुल का जिक्र न होना कोई चूक नहीं थी. कांग्रेस को यह दावा करने में पूरा एक दिन लग गया कि इस समझौते में राहुल की पूरी भूमिका रही है. पार्टी के सौम्य प्रवक्ता अजय कुमार ने यह दावा किया कि राहुल ने गुलाम नबी आजाद और प्रियंका गांधी को लीड रोल निभाने के लिए खुद चुना था.

इस बात का कोई संकेत नहीं है कि इस कदम के बाद प्रियंका अपने भाई राहुल के खिलाफ ऊंची शख्सियत के तौर पर खड़ी हो जाएंगी. गांधी फैमिली, मां सोनिया, बेटा राहुल और बेटी प्रियंका अभी भी एकजुट हैं और ऐसे बने रहेंगे.

ये भी पढ़ें: मौका मिले तो जरूर चुनाव लड़ुंगा

प्रियंका राहुल को मंच से हटाने या पूरी चमक अपनी ओर खींचने की कोई कोशिश नहीं कर रही हैं. लेकिन, नेहरू-गांधी पार्टी के सदस्य जो कि इस बेहद पुरानी पार्टी को पीढ़ियों से देख रहे हैं साफतौर पर जानते होंगे कि राजनीति में किसी नेता और उसके राजनीति करने के तौर तरीकों के बारे में आम लोगों की राय ही सबसे ज्यादा अहमियत रखती है.

आम लोगों में यह सोच पैदा हुई है कि प्रियंका ऐसे वक्त पर सामने आई हैं जबकि राहुल गांधी नाकाम हो गए हैं. गठबंधन को बचाने के लिए अंतिम मिनट में उभरकर आने से संकेत मिल रहा है कि उन्होंने ऐसे वक्त पर पार्टी की कमान अपने हाथ ली, जब राहुल और उनकी टीम यह काम करने में असफल साबित हो गई थी.

स्टार कैंपेनर

अहमद का ट्वीट और कांग्रेस के नेताओं का गठजोड़ पर जश्न मनाना साबित करता है कि राहुल एक नेता और एक रणनीतिकार के तौर पर फेल हो गए हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण की वोटिंग के लिए कांग्रेस के स्टार कैंपेनरों की लिस्ट में प्रियंका का नाम एक बार फिर से उनकी पार्टी में अहमियत को दिखाता है. यह देखा जाना अभी बाकी है कि क्या वह परिवार के दो चुनावी क्षेत्रों-अमेठी और रायबरेली के बाहर चुनाव प्रचार करने जाएंगी या नहीं. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक पहले से ही डिंपल और प्रियंका के संयुक्त चुनाव प्रचार की चर्चा कर रहे हैं.

कांग्रेस के लिए यूपी चुनाव में प्रियंका गांधी, डिंपल के साथ स्टार प्रचारक होंगी

प्रियंका गांधी और डिंपल यादव के चुनावी मंच साझा करने जिसे बहुजन समाज पार्टी के एक लीडर ‘ग्लैमर का तड़का लगाकर चुनाव जीतने की कोशिश’ बता चुके हैं से इतर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं की बड़ी चिंता इस बात को लेकर है कि क्या अखिलेश और राहुल चुनाव प्रचार में मंच साझा करेंगे? और अगर करेंगे तो यह कब, कैसे और कहां होगा?

ये भी पढ़ें: अखिलेश के बाद एसपी में नंबर दो पर हैं डिंपल यादव

गठबंधन के सहयोगी के तौर पर इनके रैलियों को साथ संबोधित करने की उम्मीद है. लेकिन, इस बारे में अभी तस्वीर साफ नहीं है. यह देखना अहम होगा कि संयुक्त चुनावी रैली में राहुल और अखिलेश में से कौन पहले बोलेगा और कौन बाद में.

राजनीति में यह स्थापित तथ्य है कि सबसे अधिक सीनियर नेता और सबसे लोकप्रिय नेता सबसे बाद में बोलता है. दूसरे शब्दों में सबसे लोकप्रिय नेता को सुनने के बाद भीड़ मैदान से जाना शुरू कर देती है.

लोगों के साथ जुड़ाव

यह चीज इस बात से भी साबित होती है कि कांग्रेस नहीं चाहती थी कि राहुल लखनऊ जाएं और अखिलेश के साथ एक संयुक्त मीडिया कॉन्फ्रेंस में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन का ऐलान करें.

प्रियंका को कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए जाना जाता है. राहुल पिछले करीब एक दशक से राजनीति में हैं लेकिन उनकी अपील में उतना जोर नहीं दिखता है न ही वह कार्यकर्ताओं से उतने बेहतर तरीके से कनेक्ट कर पाते हैं.

यूपी में कांग्रेस को दोबारा जिंदा करने के लिए राहुल और प्रियंका मिलकर चुनावी रणनीति बना रहे हैं

यूपी के कई हिस्सों में चिपके पोस्टर्स पर स्लोगनों से इस बात को समझा जा सकता है. ऐसे पोस्टर्स 2014 के आम चुनावों और उसके बाद कांग्रेस के एक के बाद एक चुनाव हारने से दिखाई दे रहे हैं. इनमें कहा गया हैः

‘मैया अब रहती बीमार, भैया पर बढ़ गया भार, प्रियंका फूलपुर से बनो उम्मीदवार, पार्टी का करो प्रचार, कांग्रेस की सरकार बनाओ तीसरी बार.’

‘मैया दो आदेश प्रियंका बढ़ाए कांग्रेस का कद, अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ...आ जाओ प्रियंका छा जाओ प्रियंका’

‘मैया बहना को दो जन्मदिन का उपहार, प्रियंका तो आए कांग्रेस में निखार, दिग्विजय की नहीं कार्यकर्ताओं की सुनो पुकार’

‘मैं नहीं हम की पुकार, भैया को भी बहना की दरकार, प्रियंका पार्टी का करो प्रचार’

‘शाह को अगर देना हो मात...प्रियंका को सौंप दो कांग्रेस का हाथ’

‘महिलाओं का बजेगा डंका..झूठे वादों से दिलाओ निजात उत्तर प्रदेश का करो विकास’

राहुल अब तक पार्टी की अगुवाई 2007 और 2012 के दो विधानसभाओं में कर चुके हैं. इसके अलावा वह 2009 और 2014 के दो आम चुनावों में भी पार्टी को लीड कर चुके हैं. 2009 के लोकसभा चुनावों को छोड़कर राहुल अब तक वोटरों को लुभाने में नाकाम रहे हैं. वह अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं तक में उत्साह भरने में सफल नहीं रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर भी गिरा है.

लोकप्रियता और वोट

अमेठी और रायबरेली में बतौर कैंपेनर प्रियंका की रेटिंग काफी ऊंची है. साथ ही कार्यकर्ताओं के साथ भी उनका जुड़ाव है. 2004 से ही असेंबली और संसदीय चुनावों में वह इन दोनों सीटों पर चुनाव प्रचार करती आई हैं.

प्रियंका मां सोनिया और भाई राहुल के चुनाव क्षेत्र की देखरेख करती आई हैं

रायबरेली और अमेठी के 2012 के असेंबली इलेक्शंस के नतीजों को देखिए. इन असेंबली सीटों में से हरेक पर काफी वक्त खर्च करने के बावजूद रायबरेली में कांग्रेस सभी पांच विधानसभा सीटें हार गई. एसपी ने हरचंदरपुर, सरेनी, बछरावन और ऊंचाहार की सीटें जीतीं, रायबरेली सदर की सीट पीस पार्टी के कैंडिडेट अखिलेश सिंह ने जीती. सिंह की बेटी ने हाल में ही कांग्रेस ज्वॉइन की है.

अमेठी में कांग्रेस तीन असेंबली सीटें- गौरीगंज, अमेठी और सालोन हार गई. कांग्रेस के हाथ यहां जगदीशपुर और तिलोई सीटें ही आईं. पार्टी के तिलोई एमएलए मोहम्मद मुस्लिम ने कांग्रेस छोड़ बसपा ज्वॉइन कर ली है. गांधी परिवार के गढ़ में 10 विधानसभा सीटों में से सात सपा के पास हैं. अब गठबंधन भागीदार के तौर पर कांग्रेस को ये सभी 10 सीटें जीतनी होंगी.

राहुल और प्रियंका की लोकप्रियता और करिश्मा इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस कितनी सीटें यहां लड़ती है और कितनी सीटों पर इसे यहां जीत हासिल होती है.