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यूपी चुनाव 2017: सपा पर मेहरबान पीलीभीत के सिख बीजेपी से खफा

सिखों का सपा की तरफ झुकाव बीजेपी के लिए चिंता का कारण हो सकती है

Amitesh

पीलीभीत की चर्चा जब भी होती है, यहां जुलाई 1991 की सिखों के फर्जी एनकाउंटर की याद जेहन में ताजा हो जाती है. उस वक्त जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तो सिख आतंकवादियों के लिए  पीलीभीत समेत लखीमपुर खीरी, रामपुर, नैनीताल, बिजनौर जैसा नेपाल से सटका इलाका शरण स्थली बन गया था.

11 जुलाई 1991 को नानदेड़ से नानकमाता जा रहे 14 से 40 के बीच के 11 सिख तीर्थ यात्रियों को बदांयू में कछलापुल घाट से एक बस से उतारा गया, उन्हें महिला तीर्थयात्रियों से अलग कर पीलीभीत इलाके में लाया गया. फिर, पीलीभीत के भीतर ही तीन अलग-अलग जगहों (बिलसंड़ा, निउरिया और पूरनपुर) ले जाकर गोली मार दी गई.


इन्हीं तीनों इलाकों में से एक पूरनपुर मे हमने सिख समुदाय की दशा-दिशा और उनके हाल जानने की कोशिश की. हालांकि, ये मुद्दा काफी पुरानी हो चुका है लेकिन, कई और दूसरे मुद्दे हैं जो कि चुनावों के वक्त हावी हैं.

बीजेपी से क्यों नाराज है पीलीभीत का सिख समुदाय

पीलीभीत में सिख समुदाय की तादाद अच्छी खासी है. 60 और 70 के दशक में इस इलाके में बड़ी तादाद में सिखों ने आकर अपना घर बसाया था, जमीन जायदाद खरीद ली और अब तो बस यहीं के हो कर रह गए हैं.

पीलीभीत के सिख निवासी (फोटो: फर्स्टपोस्ट)

पीलीभीत के पूरनपुर इलाके में खेती करने वाले जसबीर सिंह कहते हैं कि ‘1970 के आसपास हमलोग अमृतसर से यहां आ गए. वहां की सारी जमीन-जायदाद बेच दी. यहां जमीन सस्ती थी इसलिए हमलोगों ने इस इलाके में आकर बसना बेहतर समझा.’

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जब बात चुनावों की शुरु हुई तो इनका रूझान सपा की तरफ साफ दिख रहा था. गुरुशरण सिंह कहते हैं कि ‘सपा ने साड्डा कोई फायदा नहीं कीत्ता ते कोई नुकसान भी नहीं कीत्ता. नहरा दा पानी माफ कर दित्ता है.’ मतलब, ‘सपा ने कुछ फायदा नहीं किया है हमारा तो कोई नुकसान भी नहीं किया है. हां इतना जरूर है कि नहर में पानी फ्री में दिया है.’

जसबीर सिंह भी सपा के समर्थन में ही बोलते हैं कि ‘असिं ज्यादा समाजवादी पार्टी नू चौंदे हा, समाजवादी पार्टी को ज्यादा समर्थन मिल रहा है.’

बृजपाल सिंह (फोटो: फर्स्टपोस्ट)

पीलीभीत के पूरनपुर के कारोबारी बृजपाल सिंह कहते हैं कि ‘हम तो सपा को ही वोट देंगे. अखिलेश यादव ने विकास किया है. पूरे यूपी में विकास है, गांवों में अब एंबुलेंस की सुविधा है, सड़कें ठीक हैं.’

पूरे पीलीभीत की बात करें तो पीलीभीत के पूरनपुर विधानसभा सीट पर सिख मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा 14 फीसदी है जबकि बाकी तीन विधानसभा सीटों पर ये तादाद 8 फीसदी के करीब है.

लेकिन, इस बार सिख मतदाताओं का रूझान सपा की तरफ दिख रहा है. सिख समुदाय में पैठ रखने वाले वी एम सिंह ने किसान मजदूर संगठन पार्टी बनाकर अपना भी उम्मीदवार मैदान में उतारा है लेकिन, उनका प्रभाव बेहद ही कम है. सिख मतदाता उनके बजाए सपा को ही अपना समर्थन देने की बात कर रहे हैं.

लोकसभा में बीजेपी तो विधानसभा में सपा है इनकी पहली पसंद

पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी से मेनका गांधी जीतती रही हैं. 2009 में वरुण गांधी के चुनाव लड़ने के बाद मेनका ने आंवला सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन, पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त एक बार फिर से मेनका पीलीभीत से सांसद चुनी गई हैं.

क्षेत्र के लोगों का मानना है कि विकास उस कदर नहीं हो पाया जितनी उम्मीद की जा रही थी. मेनका गांधी और वरुण गांधी का क्षेत्र होने की वजह से पीलीभीत में जिस तरह का विकास होना चाहिए उस तरह का विकास तो नहीं हो पाया है.

जोगेंदर सिंह (फोटो: फर्स्टपोस्ट)

पीलीभीत के सिख बहुल इलाके पूरनपुर में अपना क्लिनिक चलाने वाले डॉ. जोगेंदर सिंह फर्स्टपोस्ट से बातचीत में कहते हैं कि ‘हम तो लोकसभा में बीजेपी को समर्थन देते हैं. लोकसभा में मेनका गांधी और मोदी के चेहरे को देखकर ही हम वोट करते हैं लेकिन, विधानसभा में तो हमारे समुदाय के लोग तो साइकिल की ही सवारी करेंगे.’

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हालांकि, इस सवाल पर कि लोकसभा में मेनका गांधी को सिख वोट क्यों करते हैं तो उनका जवाब रोचक है, जोगेंदर सिंह कहते हैं कि ‘मेनका गांधी भी हमारे कौम से आती हैं लिहाजा लोकसभा चुनाव के वक्त हम सभी उनका सहयोग करते हैं और उन्हें जिताते हैं.’

लगभग यही हाल पीलीभीत के बाकी इलाके का है. लगातार अलग-अलग कस्बों और गांवों की खाक छानने के बाद यही लग रहा है कि पीलीभीत में सिख इस बार बीजेपी को लोकसभा की तर्ज पर वोट नहीं करने वाले हैं. इस बार उनका झुकाव सपा की तरफ ज्यादा है. यह बात बीजेपी के लिए चिंता का कारण हो सकती है.