view all

त्रिवेंद्र सिंह रावत: मोदी-शाह और आरएसएस के करीबी हैं उत्तराखंड के अगले सीएम

शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह सहित बीजेपी के तमाम बड़े नेता होंगे शामिल

Anant Mittal

उत्तराखंड में बीजेपी विधायक दल के नेता चुने गए त्रिवेंद्र सिंह रावत पार्टी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस से पिछले 36 साल से जुड़े हुए है.

तीसरी बार विधायक बने 56 वर्षीय रावत इस पहाड़ी राज्य के 9वें मुख्यमंत्री होंगे. उन्हें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की पसंद माना जा रहा है. वह फिलहाल बीजेपी सचिव के रूप में पार्टी की झारखंड इकाई के प्रभारी हैं.


उनकी साफ-सुथरी छवि भी उन्हें मुख्यमंत्री कुर्सी तक पहुंचाने में काम आई है. झारखंड के विधानसभा चुनाव में पार्टी अध्यक्ष शाह और राज्य इकाई के बीच तालमेल में उनकी प्रमुख भूमिका रही, जिसकी बदौलत बीजेपी वहां सत्तारूढ़ भी हुई.

यह भी पढ़ें: देवबंद से पहली बार नहीं जीता है हिंदू, हारता रहा है मुसलमान उम्मीदवार

इतिहास में एमए की डिग्रीधारी त्रिवेंद्र ने पत्रकारिता में भी डिप्लोमा पास कर रखा है. इनकी पत्नी सुनीता रावत शिक्षक हैं. रावत, दो बेटियों के पिता हैं.

आरएसएस प्रचारक से राजनीति का सफर

त्रिवेंद्र रावत तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी निकट संपर्क में रहे हैं. यूपी के ताजा विधानसभा चुनाव में रावत के पास मोदी के चुनाव क्षेत्र बनारस जिले की सीटों पर पार्टी उम्मीदवार जिताने का जिम्मा था.

आरएसएस प्रचारक होने के साथ ही दोनों के बीच राजनीतिक रिश्ता भी खासा मजबूत है. मोदी जब बीजेपी सचिव के रूप में उत्तराखंड क्षेत्र के प्रभारी थे तब भी त्रिवेंद्र का उनसे घनिष्ठ संपर्क रहा है.

त्रिवेंद्र को झारखंड इकाई का प्रभारी दरअसल 2014 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में अमित शाह की कोर टीम में उनकी संगठन क्षमता देखकर बनाया गया था. रावत को उत्तराखंड में मिली मुख्यमंत्री की कुर्सी को झारखंड में उनकी मेहनत का पुरस्कार माना जा रहा है.

यह संयोग ही है कि झारखंड और उत्तराखंड, नवंबर 2000 में साथ-साथ ही अलग राज्य बने थे. उत्तराखंड को उत्तरप्रदेश से अलग करके और झारखंड को बिहार से अलग करके राज्य का दर्जा प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा दिया गया था.

उत्तराखंड की राजनीति में सक्रिय होने से पहले त्रिवेंद्र आरएसएस के संगठन में विभिन्न पदों पर रहे हैं. दूरदराज झारखंड से लेकर उन्होंने देश के अन्य राज्यों में भी आरएसएस के प्रचारक और पदाधिकारी के रूप में बीजेपी के लिए चुपचाप जमीन तैयार करने का काम किया.

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास की तरह ही त्रिवेंद्र को भी आरएसएस के प्रति निष्ठा का मीठा फल मिला है.

रावत ने उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने वाले आंदोलन में भी जमीनी स्तर पर काम किया है. उसी अनुभव और संपर्कों के बूते वह राज्य बनने के बाद बीजेपी में महत्वपूर्ण दर्जा पा सके है.

त्रिवेंद्र तीसरी बार विधायक निर्वाचित हुए हैं. हालांकि दो बार वह विधानसभा चुनाव हार भी चुके हैं. राज्य के चर्चित ढैंचा बीज घोटाले की जांच के लिए बने त्रिपाठी आयोग ने रावत से भी उनके कृषि मंत्री काल के कामकाज पर पूछताछ की थी, मगर वे बेदाग बच निकले.

पहले भी मंत्री रह चुके हैं त्रिवेंद्र सिंह रावत

रावत साल 2007 से 2012 के बीच उत्तराखंड के कृषिमंत्री रहे हैं. वे राजधानी देहरादून जिले की डोईवाला सीट से विधायक निर्वाचित हुए हैं. उन्होंने आमने सामने के मुकाबले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायक हीरा सिंह बिष्ट को 24000 वोट से हराया है.

डोईवाला सीट से रावत पहली बार राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में 2002 में निर्वाचित हुए थे. उसके बाद उन्होंने 2007 में भी इस सीट पर बीजेपी को जिताया था, जिसके बाद वे खंडूड़ी मंत्रिमंडल में शामिल किए गए थे. उससे पहले वे 1997 से 2002 तक उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बीजेपी के संगठन सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहे हैं.

पांच साल मंत्री रहने के बावजूद 2012 के चुनाव में डोर्ठवाला सीट उनसे पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने छीन ली थी. निशंक इस सीट से 2012 में निर्वाचित तो हुए मगर राज्य में बीजेपी एक सीट के अंतर से कांग्रेस से पिछड़ गई.

कांग्रेस ने बसपा, उक्रांद और निर्दलीय विधायकों की मदद से सरकार बना ली तो बीजेपी को पांच साल विपक्ष में बैठना पड़ा. हालांकि निशंक जब 2014 में सांसद बनकर दिल्ली चले गए तो डोईवाला सीट पर उपचुनाव में मुख्यमंत्री हरीश रावत के उपक्रम से हीरासिंह बिष्ट जीत कर कांग्रेस के विधायक बन गए.

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में डोईवाला सीट से बीजेपी ने दोबारा त्रिवेंद्र सिंह रावत पर दाव लगाया. रावत ने प्रचार में दिन-रात एक कर दिया और राज्य में चली कांग्रेस विरोधी तथा मोदी समर्थक लहर के बूते वे इस बार भी जीत कर विधानसभा पहुंच गए.

यह भी पढ़ें: मोदी के तीन काम: रोजगार बढ़े, बीजेपी उदार बने और ताकत के घमंड से दूर रहे

उन्होंने 24000 वोट से जीत दर्ज की है. यह राज्य में बीजेपी की बड़े अंतर वाली जीतों में शामिल है. गौरतलब है कि अलग राज्य बनने से पहले ही रावत और आरएसएस के उनके अन्य साथियों की बदौलत उत्तराखंड में बीजेपी अपना आधार बना चुकी थी.

शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगे सभी नेता

इन लोगों ने अलग राज्य आंदोलन के दौरान तो उत्तराखंड क्रांति दल यानी यूकेडी को नेतृत्व संभालने दिया मगर राज्य बनते ही सत्ता पर बीजेपी और फिर कांग्रेस काबिज हो गए. यूकेडी का इस विधानसभा चुनाव में तो सूपड़ा ही साफ हो गया है.

रावत ने आरएसएस का दामन साल 1983 में अपने विद्यार्थी जीवन में ही थाम लिया था. उसके बाद से वे विद्यार्थी परिषद सहित आरएसएस से संबद्ध विभिन्न संगठनों से जुड़े रहे. राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान भी रावत ने राज्य भर में बहुत सक्रिय भूमिका निभाई. इसीलिए उन्हें उत्तराखंड क्षेत्र में आरएसएस के संगठक की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली हुई थी.

रावत 18 मार्च को देहरादून के ऐतिहासिक परेड ग्राउंड में मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे. इसी परेड ग्राउंड से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव का बिगुल फेंका था. शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह सहित बीजेपी के तमाम बड़े नेता और हजारों उत्साही कार्यकर्ता शामिल होंगे.