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सेना के पास गोला-बारूद की कमी का कारण कहीं लालफीताशाही तो नहीं?

सीएजी रिपोर्ट आने के बाद यह साफ है कि भारतीय सेना आज भी उसी स्थिति में हैं जहां वो तीन साल पहले खड़ी थी

Ravishankar Singh

पिछले दिनों सीएजी की रिपोर्ट में सेना के पास गोला-बारूद की बेहद कमी की बात सामने आई थी. रिपोर्ट में इस बात का साफ खुलासा किया गया था कि 10 दिन युद्ध करना पड़ गया तो स्थिति बुरी हो जाएगी.

भारत-चीन सीमा विवाद के बीच सीएजी की रिपोर्ट से कई सवाल खड़े हुए थे. जैसे ही न्यूज चैनलों और वेबसाइटों पर सीएजी की रिपोर्ट की खबर चली तो लोगों को जनरल वी के सिंह की याद आने लगी.


जब वी के सिंह ने लिखी थी चिट्ठी 

जनरल वी के सिंह ही थे जिन्होंने हथियारों की कमी को लेकर तफसील में एक खत तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम लिखा था.

उस लेटर में तत्कालीन सेना प्रमुख वी के सिंह ने सेना के हथियारों की स्थिति को लेकर सनसनीखेज खुलासे किए थे. कई दिनों तक अखबारों में इसे छापा गया और टीवी पर बड़ी बहसें हुईं.

देश में हर तरफ सरकार की आलोचना हो रही थी. विभिन्न चैनलों के डिबेट और समाचार पत्रों के आलेख से मालूम पड़ता है कि लोग इस बात पर सहमत थे कि सरकार सेना के साथ खिलवाड़ कर रही है. अगर सेना के पास गोला बारूद ही नहीं होंगे तो आखिर किसी भी विषम परिस्थिति से निपटेगी कैसे?

12 मार्च 2012 को लिखे गए इस लेटर में वीके सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कहा था, 'सेना को पूरे सैन्य साजोसामान उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की जानी चाहिए.'

उन्होंने ये भी लिखा था युद्ध सामग्री की स्थिति बेहद भयावह है. आर्मी टैंक रेजीमेंट की ओर इशारा करते हुए उन्होंने लिखा था कि इसकी वर्तमान स्थिति की बदौलत हम दुश्मनों के सामने खड़े भी नहीं हो पाएंगे. वहीं एयर डिफेंस की तरफ उंगली उठाते हुए उन्होंने लिखा था कि आक्रमण की स्थिति में यह मददगार साबित नहीं होंगे और 97 प्रतिशत से ज्यादा पुराने पड़ चुके हैं.

जस की तस है हालत

सीएजी रिपोर्ट आने के बाद यह साफ है कि भारतीय सेना आज भी उसी स्थिति में हैं जहां वो तीन साल पहले खड़ी थी. उनके पास सैन्य साजोसामान की वैसी ही कमी है जैसी वी के सिंह के जनरल रहते हुए थी.

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय सेना के पास गोला-बारूद की इस कमी के लिए आयुध कारखाना बोर्ड को जिम्मेदार ठहराया है. हालांकि इस किल्लत के लिए दूसरे और कई कारक भी जिम्मेदार कम नहीं हैं.

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कैग रिपोर्ट ने कहा है कि साल 2015 में केंद्रीय लेखापरीक्षक की तरफ से इस बारे में चिंता जताए जाने और रक्षा तैयारियों पर उच्च स्तरीय रिपोर्ट बनाए जाने के बावजूद आयुध कारखानों के काम करने के तरीके में कोई सुधार नहीं देखा गया.

सीएजी की रिपोर्ट में यह बात सामने आया कि गोलाबारूद की निर्माण और सप्लाई व्यवस्था, दोनों ही खराब हालत में हैं.

भारतीय सेना दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है. जिसमें 13 लाख से ज्यादा सैनिक हैं. सैनिकों की इतनी बड़ी संख्या की वजह से हथियारों और गोलाबारूद का स्टॉक बनाए रखना मुश्किल हो जाता है.

नौकरशाही है बड़ी बाधा

फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए रक्षा विशेषज्ञ रिटायर मेजर जनरल एसपी सिंहा कहते हैं, ‘आम तौर पर गोला-बारूद को ठीक से रखा जाए तो सालों तक यह सही सलामत रहते हैं. लेकिन, जैसे-जैसे समय बीतते जाता है गोला-बारूद की गुणवत्ता पर थोड़ा असर देखने को मिलता है. गोला-बारूद को बढ़िया रख-रखाव कर रखा जा सकता है. देश में गोला-बारूद के रख-रखाव के लिए और आयुध डिपो खोलने की आवश्यकता है.’

जनरल सिंहा आगे कहते हैं, ‘आयुद्ध कारखानों की कार्यप्रणाली के अलावा देश की नीति निर्धारकों की नीयत भी बहुत बड़ा कारण है. गोला-बारूद देश के अंदर बनाने या फिर आयात करने को लेकर हमेशा ढिलाई बरती जाती है. फंड जारी होने में भी देरी होती है. साथ ही सेना के आलाधिकारियों को नजरअंदाज कर के ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी फैसला करते हैं. जिनको सेना के कामकाज के बारे में कुछ समझ नहीं होती है.’

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रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि लालफीताशाही और नौकरशाही की वजह से साल दर साल रक्षा क्षेत्र के लिए बाधा खड़ी होती रही है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसी लालफीताशाही की वजह से साल 2008 और 2013 के बीच तय सीमा का महज 20 फीसदी ही गोला-बारूद आयात हो पाया है.

मेक इन इंडिया से भी पड़ा है असर

रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक रक्षा खरीद में रुकावट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ पर जोर को भी एक वजह है. इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत पीएम मोदी ने साल 2014 में हथियारों और गोला-बारूद का आयात कम करते हुए भारत में इनका निर्माण बढ़ाने की घोषणा की थी.

प्रधानमंत्री की इस पहल की तो खूब सराहना मिली. लेकिन, इसमें भी लालफीताशाही एक अड़ंगा बनता दिखा. कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात पर हैरानी जताई कि सैन्य मुख्यालय की तरफ से वर्ष 2009-13 में ही शुरू की गई खरीद कोशिशें जनवरी 2017 तक अटकी पड़ी थीं.

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रीसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के मुताबिक भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है. साल 2012 से 2016 के बीच दुनिया भर में हुए हथियारों के कुल आयात में भारत का हिस्सा 13 फीसदी है.

चीन, भारत और पाकिस्तान पिछले 20 सालों से दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक देशों में शामिल रहे हैं. भारत पाकिस्तान और चीन के बीच क्षेत्रीय संतुलन भी दुनिया के बड़े हथियार निर्यातकों के लिए हथियार बेचने का एक बड़ा कारण रहा है.

चीन ने पिछले कुछ सालों से हथियारों के आयात को कम कर दिया है. चीन साल 2000 में दुनिया के सबसे बड़े आयातक देश था. जबकि साल 2016 में चौथा सबसे बड़ा आयातक देश था.

क्योंकि, अब चीन घरेलू हथियार उद्योग को उन्नत हथियार बनाने में पहले की तुलना में अधिक सक्षम हो गया है. इसलिए चीन ने अपनी आयात घटा दी है. इसके बावजूद चीन अभी भी कुछ वस्तुओं के लिए आयात पर निर्भर है.

भारत की बात की जाए तो इंजन और परिवहन विमान से संबंधित सामानों में पिछले 20 सालों में भारत के हथियारों के आयात में काफी तेजी हुई है. भारत ने चीन के विपरीत अपने घरेलू हथियार उद्योग को स्थापित नहीं किया है.

घरेलू उद्योग स्थापित नहीं करने के कारण भारतीय सेना की मांगों को समय पर पूरा नहीं किया जा रहा है. पिछले 20 सालों में पाकिस्तान के हथियारों के आयात में भी उतार-चढ़ाव रहा है. फिर भी यह भारत की तुलना में कम ही रहा है.