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योगी के नामकरण-संस्कार से क्या तेलंगाना में बदलेगा बीजेपी का 'भाग्य'?

तेलंगाना में योगी ने चुनाव प्रचार के वक्त जब निजामों और ओवैसी पर निशाना साधा तो जाहिर तौर पर उनका प्रयास 7 दिसंबर की वोटिंग के लिए हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का था

Kinshuk Praval

पिछले चार दिनों से बुलंदशहर की आबो-हवा में तपिश महसूस की जा सकती है. सियासत की धीमी आंच में यहां साम्प्रदायिक दंगे कराने की साजिश की खिचड़ी पक रही थी तो अब फिजां में अनहोनी की आशंका से एक दहशत दौड़ रही है. वहीं अपने महकमे के एक अधिकारी के शहीद होने पर यूपी पुलिस भीतर ही भीतर तप रही है.

आरोप-प्रत्यारोप का दौर है और हिंसा के पीछे गहरी साजिश की आशंका जताई जा रही है. खुद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी बुलंदशहर हिंसा के पीछे षडयंत्र देख रहे हैं. भले ही बुलंदशहर हिंसा को लेकर सीएम योगी लॉ एंड ऑर्डर के मामले में विपक्ष के निशाने पर हों और उन पर बेफिक्रे होने का आरोप विपक्ष लगा रहा है लेकिन वो इस वक्त तेलंगाना को लेकर बेहद फिक्रमंद नजर आ रहे हैं. तेलंगाना को लेकर वो विचारमग्न हैं, चिंतनशील हैं और एक अद्भुत मनन में जुटे हैं.


दरअसल नाम बदलने की परंपरा की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने वाले योगी अब यूपी से भी आगे निकल गए हैं. वो तेलंगाना में नाम बदलने का ऐलान कर चुके हैं. तेलंगाना में उन्होंने कहा कि यदि बीजेपी सरकार बनती है तो हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर किया जाएगा. योगी ने रैली में जनता को भरोसा दिलाया कि ये काम सिर्फ बीजेपी ही कर सकती है.

एक संन्यासी के सत्ता संभालने के बाद यूपी में नामकरण का विचारणीय संस्कार देखने को मिला. फैजाबाद अब अयोध्या है तो इलाहाबाद का नाम प्रयागराज कर दिया गया. इससे पहले सीएम योगी ने सरकार को पत्र लिखकर मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलने का प्रस्ताव दिया था. सरकार से हरी झंडी मिलने के बाद साल 1862 में अंग्रेजों की बनाई मुगलाई निशानी का नामोनिशां बदल दिया गया. अब वो जंक्शन एकात्म मानवतावाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम से जाना जा रहा है.

फैजाबाद और इलाहाबाद के बाद गाजियाबाद का नाम बदलने की भी मांग उठी और कहा गया कि गाजियाबाद का नाम बदलकर महाराजा अग्रसेन नगर रख दिया जाए. इतिहास कहता रहे कि गाजीउद्दीन ने गाजियाबाद शहर बसाया था. वर्तमान नाम बदलने की गूंज रखने लगा.

ऐसी मांगें उठती रहेंगी क्योंकि हर दौर में ऐसी मांगें उठती आई हैं और पूरी भी हुई हैं. कोई भी राजनीतिक दल ये नहीं कह सकता कि नाम में क्या रखा है. आज योगी पर नाम बदलने को लेकर आस्था और धर्म के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाने वाले विरोधी दल भी मौका मिलने पर नाम बदलने में आगे रहे हैं. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी नामों की राजनीति के जरिए अपने अपने महापुरुषों को चमकाने में जुटी रहीं.

ध्रुवीकरण के लिए बीजेपी करवा रही योगी को नगरी-नगरी यात्रा

तेलंगाना में योगी ने चुनाव प्रचार के वक्त जब निजामों और ओवैसी पर निशाना साधा तो जाहिर तौर पर उनका प्रयास 7 दिसंबर की वोटिंग के लिए हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का था. उसी ध्रुवीकरण के लिए ही योगी को बीजेपी नगरी-नगरी यात्रा करा रही है. पहले छत्तीसगढ़, फिर मध्यप्रदेश, उसके बाद राजस्थान तो अब तेलंगाना में योगी के हठयोग की जरुरत थी सो उन्होंने नाम का भी दांव चल दिया.

योगी इसी तरह से नाम बदलते रहे तो जल्द ही दूसरे राज्यों से भी उनके पास डिमांड आ सकती है. अभी तो तेलंगाना में उन्होंने खुद ही महसूस किया कि हैदराबाद में बीजेपी का ‘भाग्य’ नाम बदलने से ही खुलेगा इसलिए वो भाग्यनगर रखने की बात कर रहे हैं तो करीमनगर में उन्हें भाग्य से ज्यादा कर्म पर भरोसा है, इसलिए वो करीमनगर का नाम करीपुरम रखना चाह रहे हैं.

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सवाल उठता है कि बुलंदशहर को लेकर योगी के मन में क्या है? क्या योगी की प्रशासन पर पकड़ इस कदर ढीली होती जा रही है कि वो खुद को भगवा सेना के सामने बेबस महसूस करने लगे हैं?  बुलंदशहर में इज़्तिमे के मौके पर लाखों मुसलमान जुटे थे और उनकी मौजूदगी का फायदा उठाकर एक बड़े दंगे की साजिश रची जा रही थी. ऐसे में यूपी का प्रशासन और खुफिया विभाग इतना लापरवाह कैसे हो सकता है उसे भनक तक नहीं हुई? इतनी बड़ी घटना की साजिश रच ली गई और किसी को कानों-कान खबर तक नहीं हुई?

राजनेताओं को अपनी भावनाओं के आवेग पर काबू रखना चाहिए ताकि समर्थक भीड़ में उन्माद न पैदा हो सके. बुलंदशहर की हिंसा में यही सामने आया है कि पहले तो कट्टर हिंदूवादी नेताओं ने भीड़ को गोकशी के नाम पर उकसाया और बाद में जब हिंसा भड़की तो वो उस पर काबू नहीं पा सके. नतीजतन, दो परिवारों ने अपने एक-एक सदस्य को हमेशा के लिए खो दिया.

बुलंदशहर आगजनी की तपिश के बाद खामोश है और इसकी दहशत में पश्चिमी यूपी के दूसरे शहर अपने यहां माहौल को टटोल रहे हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले कोई साजिश सांस तो नहीं भर रही है. एक दिन बुलंदशहर की घटना भी इतिहास में दफन हो जाएगी. जांच जारी है और एक दिन वो भी पूरी हो जाएगी. जो फरार आरोपी हैं वो भी किसी दिन पकड़े ही जाएंगे. लेकिन सामाजिक तौर पर जो बिखरा और टूटा है वो फिर से समेटा नहीं जा सकेगा क्योंकि कुछ नुकसान ऐसे होते हैं जिनकी भरपाई  समय भी नहीं कर पाता है. ऐसी ही घटनाओं से भरोसा धीरे-धीरे शक में बदलता है और फिर असुरक्षा के चलते साजिशों में तब्दील हो जाता है.

बुलंदशहर जल रहा है और ये तेलंगाना में नाम बदलने का ऐलान कर रहे हैं

बुलंदशहर हिंसा को लेकर योगी सरकार से सवाल बहुत सारे हैं. लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि इस मौके पर भी उन्हें तेलंगाना के शहरों के मुस्लिम नाम खटक रहे हैं. वो उन नामों को बदलकर हिंदू नाम रखने की बात कर रहे हैं. जबकि उनके अपने ही प्रदेश का एक शहर सांप्रदायिक आग में झुलस रहा है. आखिर योगी अपने राज्य की जनता को तेलंगाना का जरिए कौन सा उदाहरण दे रहे हैं?

हैदराबाद का नाम भाग्यनगर रख देने से क्या बुलंदशहर का भी भाग्य बदल जाएगा? योगी अब देश के सबसे बड़े सूबे के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे ताकतवर शख्स हैं. वो एक संन्यासी, योगी या फिर पार्टी प्रचारक नहीं हैं. यूपी की सरहद के पार भी योगी एक मुख्यमंत्री हैं. उन्हें ये सोचना होगा कि उनके बयानों से उनकी प्रजा के अल्पसंख्यकों में भय का वातवारण न पैदा हो और न ही बहुसंख्यकों के हौसले ऐसे बुलंद हों कि वो कानून को ताक पर रखकर हिंसा कर सकें. सीएम सबके हैं और राजधर्म ही राजा का धर्म है.

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बहरहाल, विलियम शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है, लेकिन इस सवाल को हिंदुस्तान के राजनीतिज्ञों ने ही जवाब भी दिया है. सभी ने अपनी बारी आने पर ये बता दिया कि नाम बदलने और रखने से सत्ता और जनता पर पकड़ मजबूत होती है. अपनी-अपनी पार्टी के प्रतीकों को जब स्मारकों की तरह जनता के बीच आराध्य बना दिया जाता है तो फिर उन नामों के दम पर ही आधी जंग जीत ली जाती है.

जैसे नाम बदलने की राजनति है वैसे ही नाम बदलने का विरोध करने की भी राजनीति है. नाम बदलकर वोट हासिल किए जा सकते हैं तो उसका विरोध करके भी किसी खास वर्ग या समुदाय के वोट हासिल किए जा सकते हैं. योगी अगर नाम बदल रहे हैं तो बाकी विरोध कर सियासी रोटियां सेंक रहे हैं. जबकि वो खुद भी अपने फायदे के लिए न मालूम कितने शहरों, कस्बों, सड़कों, स्टेशनों के नाम बदल चुके हैं.

कांग्रेस ने अपने शासन काल में गांधी-नेहरू के नामों का जगह, इमारत, स्टेडियम और सड़क से लेकर योजनाओं तक इस्तेमाल किया. दिल्ली का कनॉट प्लेस और कनॉट सर्कस आज राजीव चौक और इंदिरा चौक के नाम से भी जाना जाता है. जबकि ब्रितानी हुकूमत ने ड्यूक ऑफ कनॉट के नाम पर कनॉट प्लेस का नाम रखा था.

Regal Cinema House. Connaught

बीएसपी ने अपने शासन में कई जिलों के नाम दलित उत्थान के लिए नायक बनकर उभरे लोगों के नाम रख दिए. बीएसपी ने कासगंज को कांशीराम नगर रखा तो अमरोहा को ज्योतिबा फूले नगर का नाम दिया. लेकिन जब सत्ता में समाजवादी पार्टी लौटी तो उसने पावर का इस्तेमाल करते हुए महामाया नगर का नाम वापस हाथरस तो छत्रपति शाहूजी महाराज नगर का नाम अमेठी कर दिया.

नामकरण संस्कार के जरिए शक्ति-प्रदर्शन भी देखा जा सकता है. जो सत्ता में है वो नाम बदल देता है और जो सत्ता में लौटता है वो नया नाम रद्द कर पुराना रख देता है. ऐसा लगता है जैसे शहर के अपने इतिहास की कोई हैसियत नहीं.

देश ने देखा है और देख रहा है बांबे को मुंबई, पूना को पुणे, कलकत्ता को कोलकाता, मद्रास को चेन्नई, बैंगलोर को बेंगलुरु, गुड़गांव को गुरुग्राम, बनारस को वाराणसी, इलाहाबाद को प्रयागराज होते हुए. ये सिलसिला जारी है. नाम रखे जाएंगे और बदले भी जाएंगे. लेकिन इन सबके बीच कहीं पहचान न गुम हो जाए कहीं.

बहरहाल, गुलामी की निशानियों को मिटाने का हवाला दे कर नाम बदलने से कई लक्ष्य हासिल हो जाते हैं. फिलहाल तो 11 दिसंबर की मतगणना ही तेलंगाना की सियासत में बीजेपी का भाग्य तय करेगी. लेकिन जिस रफ्तार से योगी नामकरण संस्कार का कार्यक्रम चला रहे हैं उससे लगता है कि सांप्रदायिक आग में झुलसने वाले किसी शहर का नाम 'ज्वलनशील शहर' न पड़ जाए.