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पीएम के घरेलू मैदान में डटे राहुल, तय कर रहे हैं कांग्रेस की नई दिशा

कांग्रेस के प्रेसिडेंट-इन-वेटिंग ने वास्तव में यह संकेत दे दिया कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है

Darshan Desai

कभी-कभी कड़े मुकाबले के दैरान गर्जना होती है और नेता अपनी दिशा खोज लेते हैं और उसी हिसाब से संवाद का खाका खींचते हैं. कुछ इसी तरह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात में बीजेपी की घबराहट बढ़ा दी है.

इसका सबूत तब मिला जब बीजेपी ने अमित शाह, स्मृति ईरानी और योगी आदित्यनाथ को अमेठी की उपेक्षा का मुद्दा उठाने के लिए वहां भेजा, जबकि नरेंद्र मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर राहुल गांधी वाहवाही लूट रहे थे. अमेठी अभी चुनाव से दूर है जबकि गुजरात में चुनाव होने वाले हैं.


सिर्फ राहुल गांधी की रैलियों में जुट रही भीड़ ही बीजेपी में घबराहट की वजह नहीं है. हालांकि यह अपने आप में एक खबर है. ऐसा उस राज्य में हो रहा है, जिसे नरेंद्र मोदी ने 22 साल से अधिक समय तक अपने हिसाब से चलाया है. बीजेपी में घबराहट इसलिए भी है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री के अहम फैसलों और नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं. इस प्रकिया में वो नेहरूवादी समाजवाद के साथ कल्याणकारी राज्य की कांग्रेस की अवधारणा को स्पष्ट कर रहे हैं और उसे ठीक कर रहे हैं. इसके जरिए लोग उनसे जुड़ हो रहे हैं और वो भी गुजरात में.

मोदी की नीतियों के खिलाफ अपनी अवधारणा का विस्तार

यह केवल मोदी की नीतियों पर प्रतिक्रिया नहीं है. वो छात्रों, युवाओं, किसानों, दुग्ध कोओपरेटिव से जुड़ी महिलाओं और आशा कर्मचारियों से चर्चाओं के दौरान अपनी अवधारणा को विस्तार भी दे रहे हैं.

इसके अलावा उन्होंने बोलने की आजादी और लोकतांत्रिक मूल्यों पर अपने विचार रखे हैं. अकादमिक मूल्यों के लिए पहचाने जाने वाले वड़ोदरा सिटी में उन्होंने महिलाओं को बोलने की आजादी नहीं देने को संघ परिवार की पुरुष प्रधान सोच से जोड़कर उसकी आलोचना की. उन्होंने खुद को पूरी तरह इसके खिलाफ बताया. राहुल ने कहा, 'सभी तरह की आलोचनाओं को सुना जाना चाहिए और स्वागत किया जाना चाहिए, भले ही ये नापसंद हों या इनमें गलतियां हो. मैं किसी को दबाने के पक्ष में नहीं हूं.' राहुल ने कहा कि वो बिना बाधा के सभी तरह के विचारों को सामने आने देने के पक्ष में हैं, भले ही ये कटु हों.

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हालांकि, अपनी बात रखते हुए राहुल भटक गए और भीड़ से पूछा कि क्या आपने महिलाओं को संघ की शाखाओं में शॉर्ट्स पहनकर जाते देखा है. शायद उन्होंने बीजेपी को बैठे-बिठाए एक मुद्दा दे दिया है.

बीजेपी के खिलाफ राहुल के दांव

उनकी कुछ बातों में लोकतांत्रिक नैतिकता के ऊंचे मूल्य भी दिखे. वड़ोदरा में ही एक अन्य चर्चा में राहुल ने कहा कि बीजेपी भले ही कांग्रेस मुक्त भारत की बात करती है लेकिन वो ऐसा नहीं कहेंगे. कांग्रेस उपाध्यक्ष का कहना था कि दोनों पार्टियों की विचारधारा इसी देश में जन्मी है और इसका बीजेपी से उनकी राजनीतिक लड़ाई से लेना-देना नहीं है.

राहुल गांधी का तीन दिन का ये दूसरा गुजरात दौरा था जो बुधवार को खत्म हो गया. उन्होंने एक रैली में कहा, 'बीजेपी ने मेरी बहुत मदद की. 2014 का चुनाव जो हम हारे उससे फायदेमंद चीज और नहीं हो सकती. मेरी पिटाई कर-कर के उन्होंने मेरी आंखें खोल दी.'

भविष्य के लिए राहुल जो दिशा खोज रहे हैं उसका सबूत शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण विरोधी उनके विचारों से मिलता है. उनके मुताबिक ये दोनों क्षेत्र राज्य की जिम्मेदारी हैं.

नौकरी और शिक्षा पर रही नजर

गुजरात में कैपिटेशन फीस की बात सुनकर वो हैरान रह गए. होम्योपैथी के एक छात्र ने उन्हें बताया कि एक निजी कॉलेज में दाखिले के लिए उसे चार लाख रुपए ऑफ द रिकॉर्ड डोनेशन देना पड़ा और इतनी ही फीस भरनी पड़ी. निजी कॉलेजों पर राहुल को वड़ोदरा सिटी और आदिवासी इलाके छोटा उदयपुर दोनों ही जगहों पर इस अनुभव से सामना हुआ.

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दोनों ही जगहों पर उन्होंने पूछा कि कैपिटेशन फीस देने के बावजूद क्या उन्हें नौकरी मिली. जवाब उन्हें नहीं में मिला.

राहुल गांधी ने कहा, 'यह सिर्फ गुजरात में नहीं हो रहा. शिक्षा का निजीकरण हर जगह हो रहा है. गरीबों के लिए शिक्षा हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है.' गांधी ने कहा कि मनमानी फीस देने के बावजूद पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं. उन्होंने माना कि रोजगार के मामले में यूपीए सरकार का रिकॉर्ड एनडीए से बेहतर है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था और इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना जरूरी है.

स्वास्थ्य क्षेत्र पर भी गांधी के ऐसे ही विचार हैं. गुजरात में सरकार ने सरकारी अस्पतालों को अपग्रेड करने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप का रास्ता चुना है.

उत्तर गुजरात के पालनपुर में सरकार से जुड़ा पहला मेडिकल कॉलेज एक पब्लिक ट्रस्ट को सौंपा गया है, जहां राज्य के स्वास्थ्य मंत्री शंकर चौधरी मुख्य ट्रस्टी हैं. आम आदमी पार्टी ने सभी दस्तावेजों के साथ ये मामला उठाया है. ऐसे पांच मेडिकल कॉलेज पाइपलाइन में हैं.

गुजरात मॉडल पर निशाना

गांधी ने इस मुद्दे को गुजरात सरकार की नीति से जोड़ा. नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते शिक्षकों, आंगनवाड़ी और आशा वर्कर्स समेत कई सरकारी नौकरियां आउटसोर्स करने की नीति शुरू की थी. राहुल ने कहा कि कांग्रेस जब भी सत्ता में आएगी, इस नीति को पलट देगी.

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रोजगार सृजन और समृद्धि के मसले पर राहुल ने कहा कि गुजरात देश को रास्ता दिखा सकता है लेकिन यह बार-बार दुहराए गए गुजरात मॉडल की तरह नहीं हो सकता, जिसमें चुने हुए 'पांच से दस उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाया जाता है.' यह गुजरात के छोटे और मझौले उद्योगों की ताकत पहचानने से होगा.

गांधी ने कहा, 'छोटे और मझौले उद्योग रोजगार पैदा करते हैं और समृद्धि लाते हैं. मैं यह नहीं कर रहा कि बड़े उद्योगों की पूरी तरह अनदेखी हो,लेकिन इनके लिए पूरी जगह नहीं छोड़ी जा सकती, जैसा कि गुजरात मॉडल के नाम पर हो रहा है.' उन्होंने कांग्रेस सरकार में ये सब कुछ बदलने का वादा किया.

उन्होंने मिल्क को-ऑपरेटिव की महिलाओं और दूसरी जगहों पर चर्चा के दौरान कहा 'हमारा गुजरात मॉडल अमूल वाला पुराना मॉडल है, गांधीजी का मॉडल है, सरदार का मॉडल है.' उन्होंने कई जगहों पर दोहराया 'हम आपकी मन की बात सुनेंगे और आप पर कोई चीज थोपेंगे नहीं.'

कांग्रेस के प्रेसिडेंट-इन-वेटिंग ने वास्तव में यह संकेत दे दिया कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है.