view all

सिर्फ सर्जरी काफी नहीं कांग्रेस को पुनर्जन्म लेना होगा

विधानसभा चुनावों के नवीनतम दौर की हार के बाद पार्टी में आतंक और बेचारगी की भावना बढ़ गई है

Akshaya Mishra

पांच राज्यों के चुनावों में करारी हार के बाद पूरी कांग्रेस हताश हो गई है. यह हताशा उनके दिग्गज नेताओं की भाषा में भी दिखने लगी है.

यहां तक कि दिग्विजय सिंह भी राहुल गांधी से खुश नहीं हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने आइडिया एक्सचेंज इवेंट में उन्होंने कहा, 'मैं तो यही कहूंगा कि हमको एक नई कांग्रेस चाहिए, एक नया चार्टर, चुनाव प्रचार की नई शैली चाहिए...और इसके लिए राहुल गांधी से बेहतर कोई दूसरा हो नहीं सकता. उनको अब एक्शन में आना होगा...मेरी उनसे यही शिकायत है कि वे जोरदार तरीके से काम नहीं कर रहे हैं...'


हमने अपनी बात में ‘यहां तक कि’ इसलिए लगाया क्योंकि दिग्विजय सिंह राहुल के करीबी माने जाते हैं और एक वक्त अफवाह तो ये भी उड़ चुकी है कि वे राहुल के राजनीतिक सलाहकार हैं.

उनके जैसे किसी व्यक्ति का नेतृत्व के प्रति ऐसा निर्दयी नजरिया जाहिर करता है कि विधानसभा चुनावों के नवीनतम दौर की हार के बाद पार्टी में आतंक और बेचारगी की भावना बढ़ गई है.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी

गांधी परिवार है सबसे बड़ा रोड़ा 

कई अन्य वरिष्ठ नेता ने पहले ही कांग्रेस की दशा के बारे में अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं. लेकिन राहुल या सोनिया गांधी में से कोई भी पार्टी चलाए, इनके प्रति कोई भी अपनी नाराजगी खुल कर जाहिर नहीं करने वाला है.

हताशा का मुजाहिरा भी अब समझदारी से करना होगा. कांग्रेस का फिलहाल जो सूरतेहाल नजर आता है, उसमें इस परिवार के खिलाफ बगावत तो नामुमकिन है. पार्टी में कोई भी दूसरा नेता नहीं है जो राज्यों में कांग्रेस का जिम्मा अपने कन्धों पर उठा सके.

पार्टी के किसी भी जमीनी शख्स में वो कुव्वत नहीं है जो इस परिवार के कामों की जिम्मेदारियों और जवाबदेहियों को ढो सके. कांग्रेस और कांग्रेस के लोगों की डोर जिस कदर गांधियों से बंधी नजर आती है, वो जरा अजीब सी बात लगती है.

जरा कल्पना करें उस दिन की जब कांग्रेस को ये गांधी अपनी छाया से मुक्त कर देंगे. इसका अर्थ होगा पार्टी का विघटन यानी टूटना. पार्टी के संरचनात्मक संगठन को इस तरह तैयार किया गया है कि इस परिवार के बिना पार्टी जीवित न रह सके. इसके माध्यम से नए नेता नहीं बनाये जा सकते. मुसीबतों के वक्त बहुत सी कमजोरियां बिलकुल खुल कर सामने आ गईं.

कब टूटेगी राहुल की सुस्ती 

जैसा कि दिग्विजय ने कहा है, एक नए कांग्रेस, नए चार्टर और नए रोडमैप की आवश्यकता बहुत पहले ही महसूस की जा चुकी है. हर बार चुनावी हार के बाद पार्टी के भीतर से संगठनात्मक सुधार की जरूरत की आवाज सुनाई देती है. यहां तक कि राहुल गांधी भी इसका जिक्र करते रहे हैं. लेकिन किसी भी परिवर्तन को लागू करने में उनकी सुस्ती देखते ही बनती है.

यदि कोई कांग्रेसी उनसे उनके इरादों पर सवाल करना शुरू करता है तो इसमें बहुत कुछ गलत भी नहीं है. कांग्रेस की जानकारी रखने वालों की मानें तो निर्णय लेने की प्रक्रिया में लोगों के मुख्य समूह में कोई बदलाव नहीं हुआ है और चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के लिए किसी के लिए कोई सजा भी तय नहीं है.

ये भी पढ़ें: नतीजों ने चकनाचूर किया प्रियंका गांधी का मिथक

अपने कार्यों के प्रति जवाबदेही के साथ काफी लोग पार्टी के पदों पर कुंडली मारे बैठे हुए हैं. यदि राहुल गांधी परिवर्तन लाने के बारे में गंभीर होते तो उन्होंने अब तक इस दिशा में कुछ न कुछ किया होता.

उम्मीद की गई थी कि 2014 के आम चुनाव के परिणाम कांग्रेस के चेहरे पर करारा थप्पड़ बनेंगे. ये पार्टी को सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करेंगे. इस तरह की कोई कार्रवाई मगर अभी तक दिखाई नहीं दी है.

दिसंबर 2013 में, राहुल ने ऐसे परिवर्तन का वादा किया था जिसकी कोई 'कोई कल्पना भी नहीं कर सके'. 2014 में, उन्होंने कहा था कि पार्टी ने बहुत बुरा प्रदर्शन किया है और इसके बारे में सोचने की जरूरत है.

संसद में कार्यवाही के दौरान राहुल गांधी

महाराष्ट्र और गोवा में होने वाले नुकसान के बाद उन्होंने कहा था कि पार्टी लोगों का विश्वास फिर से हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करेगी. उत्तर प्रदेश में भी हार के बाद उन्होंने कुछ ऐसी ही बात कही.

यदि राजनीति में और खासकर पार्टी में उनकी दिलचस्पी नहीं है, तो पार्टी का नेतृत्व करने के लिए वे दूसरों का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं. यदि वास्तव में पार्टी को पुनर्जीवित करने में उनकी दिलचस्पी है तो आधे-अधूरे उपायों के साथ आगे बढ़ना और संगठन को उत्साहित करने के लिए चुनावों के दौरान भी कुछ नहीं करना, ये दोनों उनके लिए फायदेमंद नहीं है. और फिर नए विचारों के साथ एक नई कांग्रेस बनाने का उत्साह कहां गया?

अब 2019 नहीं 2024 पर फोकस करे कांग्रेस   

ये भी पढ़ें: कांग्रेस ने मेरी बात मानी होती तो मोदी आज पीएम नहीं होते

कांग्रेस 2019 का आम चुनाव पहले ही हार चुकी है. अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई भारी बेवकूफी न करें, उनके चुनाव हारने की संभावना नहीं है. यहां तक कि अगर बीजेपी ने उनके नेतृत्व में प्रदर्शन अच्छा न भी किया तो भी कांग्रेस को उससे कोई फायदा नहीं पहुंचने वाला है. इस वजह से कांग्रेस को 2024 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए अपनी तैयारी करनी होगी.

तब तक कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता उम्र के कारण काम करने वाली हालत में नहीं बचेंगे. उन की जगह पार्टी को नए नेताओं की जरूरत होगी. बदलाव की प्रक्रिया को अब शुरू होना ही होगा. लेकिन नए नेता हैं कहां? और उनके समर्थन के लिए क्या कोई कैडर भी होगा?

कांग्रेसीजन पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए एक बड़ी चीरफाड़ का ज़िक्र लगातार कर रहे हैं. लेकिन बीमारी की हद को मद्देनजर रखते हुए सिर्फ एक सर्जरी काफी नहीं लगती. इसको एक नया जन्म लेने की जरूरत है. शायद ‘नई कांग्रेस’ के द्वारा दिग्विजय का यही मतलब है.