view all

सोनिया के सियासी भोज में विपक्ष का जमघट क्या रंग लाएगा?

सोनिया गांधी का सियासी भोज पार्टी के सम्मान और अस्मिता को बचाने के लिए ये उनका मजबूत प्रयास है. लेकिन ये प्रयास क्या रंग लेकर आएगा वो तो आने वाला समय बताएगा

Aparna Dwivedi

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के घर पर विपक्षी पार्टियों का जमावड़ा हुआ. सबने खाना खाया, ढेर सारी फोटो खिंचवाई और अपने-अपने घर चले गए, लेकिन साथ ही लाख टके का सवाल छोड़ गए- फोटो में हंसते मुस्कराते विपक्षी पार्टियों के नेता क्या बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर मोर्चा खोलेंगे?

सोनिया गांधी की इस रात्रिभोज में 20 दलों के नेताओं को बुलाया गया था. इसमें कांग्रेस समेत 20 राजनीतिक दलों के नेता पहुंचे. खाने की मेज पर शामिल मुख्य नेताओं में एनसीपी के शरद पवार पर खास नजर पड़ी हालांकि ममता बनर्जी, अखिलेश यादव तथा मायावती की अनुपस्थिति भी दिखी. इन सब नेताओं ने अपनी पार्टी से एक नेता भेजा था.


रात के इस भोज में शामिल हुए नेताओं में राम गोपाल यादव (समाजवादी पार्टी), बदरुद्दीन अजमल (एआईयूडीएफ), शरद पवार (एनसीपी), तेजस्वी यादव (आरजेडी), मीसा भारती (आरजेडी), उमर अब्दुल्ला (नेशनल कांफ्रेंस), हेमंत सोरेन (जेएमएम), अजीत सिंह (आरएलडी), डी राजा (सीपीआई), मोहम्मद सलीम (सीपीएम), कनिमोझी (द्रमुक), कुट्टी (मुस्लिम लीग), सतीश चंद्र मिश्रा (बीएसपी), केरल कांग्रेस, बाबू लाल मरांडी (जेवीएम), रामचंद्रन (आरएसपी), शरद यादव (भारतीय ट्राइबल पार्टी), सुदीप बंधोपाध्याय (टीएमसी), जीतन राम मांझी (हिंदुस्तान अवाम मोर्चा), डॉ. कुपेंद्र रेड्डी (जेडी-एस), सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मनमोहन सिंह, गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, अहमद पटेल, एके एंटोनी, रणदीप सुरजेवाला (कांग्रेस) थे.

कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे राजनैतिक भोज ना कह कर दोस्ताना भोज कहा. लेकिन गौरतलब है कि राजनीति में दोस्ती के मायने अलग होते हैं. इस भोज के पीछे माना जा रहा था कि खाने के साथ-साथ सोनिया गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मिलकर रणनीति बनाने का प्रस्ताव भी परोसा है. ऐसे में विपक्षी दल सोनिया के भोज कूटनीति को राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मान रहे हैं. हालांकि इस आयोजन में बीजेपी और कांग्रेस से अलग तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता था.

केंद्र-राज्य समीकरण

संभावना जताई जा रही थी कि इस भोज में मायावती इसमें किसी भी नेता को नहीं भेजेंगी क्योंकि कर्नाटक विधानसभा में पार्टी ने जनता दल सेक्युलर के साथ समझौता कर रखा है. लेकिन इस बैठक में बीएसपी और जेडीएस दोनों पार्टियों के नुमाइंदे मौजूद थे.

ये भी पढ़ें: डिनर डिप्लोमेसी: बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश में विपक्ष

यानी इस बात का एहसास सभी विपक्षी पार्टियों को है कि राज्य में समीकरण कैसा भी हो लेकिन केंद्र में अगर सत्ता पलटना हो तो सबको मिल कर काम करना होगा. यही वजह है कि कर्नाटक में कांग्रेस के विरोध में लड़ने वाले बीएसपी और जेडीएस इस भोज में दिखे. वैसे भी उत्तर प्रदेश में धुर विरोधी बीएसपी और समाजवादी पार्टी में राज्य के अंदर एक अनौपचारिक समझौता हुआ है ताकि वो बीजेपी का मुकाबला कर सके. हालांकि दोनों पार्टियों के नेता ने इस समझौते को सिर्फ उपचुनाव तक ही सीमित रखने की बात कही है लेकिन तब भी सब ये भी देखना चाहते है कि अगर ये दोनों दल मिले तो बीजेपी को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैंं.

भविष्य में कांग्रेस का नेतृत्व में परिवार से बाहर का सदस्य

सोनिया गांधी ने हाल ही में न्यूज चैनल के कार्यक्रम में कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद पर परिवार के बाहर का सदस्य भी अध्यक्ष बन सकता है. हालांकि ये बात उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कही थी लेकिन राजनैतिक जानकार मानते हैं कि सोनिया गांधी का ये संदेश उस संभावना के लिए भी है कि अगर विपक्षी दल राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकारने से हिचकते हैं तो कांग्रेस दूसरा वरिष्ठ नेता का नाम भी आगे रख सकती है.

छोटी-छोटी पार्टियां और युवा नेताओं पर कांग्रेस की नजर

कांग्रेस जहां एक तरफ विपक्ष को एकजुट करने में लगी है वहीं उसकी नजर में देशभर में उभर रही छोटी पार्टियों को एक जुट करने में लगी हैं. छोटी पार्टियां अपने-अपने क्षेत्र में जमीनी कार्यकर्ताओं की वजह से मजबूत होती हैं और कांग्रेस की नजर इस पर भी है. गुजरात की राजनीतिक तिकड़ी जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठाकुर और हार्दिक पटेल की सफलता के बाद कांग्रेस इस नेताओं को क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट करने की तैयारी भी कर रही है ताकि छोटे छोटे पॉकेट में बंटे इन नेताओं को एक कर मजबूत गठजोड़ बनाया जाए.

मुद्दों की राजनीति

बताया जा रहा है कि इस बैठक में संसद और बाहर मुद्दों को उठाने पर चर्चा हुई. विपक्षी दलों ने आने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देने के लिए संयुक्त मोर्चा के गठन पर चर्चा की. साथ ही पीएनबी घोटाला से लेकर किसान आंदोलन जैसे मुद्दों पर चर्चा की. भोज में शामिल नेताओं ने संसद न चलने पर चिंता जताई और सरकार की जवाबदेही तय कर उसे घेरने पर चर्चा की. विपक्षी नेताओं पर झूठे मुकदमे और सरकारी एजेंसियों के सीधे हस्तक्षेप का मामला उठाया गया.

ये भी पढ़ें: डिनर डिप्लोमेसी मिशन 2019 ! सोनिया के घर 19 पार्टियों के नेताओं का जमघट

तीसरा मोर्चा

लेकिन इस भोज में सबके हंसते मुस्कारते चेहरे का मतलब गठजोड़ तो नहीं है. जहां एक तरफ शरद पवार ने इस भोज में हिस्सा लेकर कांग्रेस की उम्मीद बढ़ाई है लेकिन एक तथ्य ये भी है कि वो इस महीने के आखिर में यानी 27 और 28 मार्च को दिल्ली में गैर बीजेपी दलों के साथ बैठक करेंगे. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तेवर बदले-बदले हैं. हालांकि उन्होंने व्यस्तता का हवाला देकर खुद को इस भोज से अलग रखा लेकिन सुदीप बंधोपाध्याय ने उनका प्रतिनिधित्व किया. ममता भी क्षेत्रीय पार्टियों से एक फेडरल फ्रंट बनाने के लिए कह चुकी हैं और इसके लिए उन्होंने तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के एंटी-कांग्रेस और एंटी-बीजेपी फ्रंट को अपना समर्थन दे दिया है. बीएसपी और समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेता भी एक तरफ उत्तर प्रदेश उपचुनाव में वोटर फीसदी पर नजर गढ़ाए हैं साथ ही वो भी तीसरे मोर्चे के गतिविधियों पर भी नजर रखे हुए हैं.

एनडीए से नाराज दलों के साथ पर सवालिया निशान

कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो उन्होंने एनडीए से नाराज दलों से भी बात की थी. इनमें बीजू जनता दल और तेलुगु देशम शामिल हैं. ये दोनों दल बीजेपी से नाराज चल रहे हैं लेकिन उन्होंने एनडीए का दामन थामे रखा है. कांग्रेस की कोशिश थी कि उन्हें महागठजोड़ में शामिल किया जाए. वैसे भी आंध्र प्रदेश से किसी भी नेता ने शिरकत नहीं की. जबकि 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस ने 42 सदस्यों वाले राज्य में 33 सीटें जीतीं लेकिन 2014 में तेलंगाना के अलग राज्य बनने के बाद आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें रह गईं थी और चुनाव एंटी कांग्रेस पर ही लड़ा गया था. हालांकि माना जा रहा है कि एनडीए से हटने वाले दल कांग्रेस का साथ देने के बजाय तीसरे मोर्चे में जाना पसंद करेंगे.

राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंपने के बाद सोनिया गांधी की फिर से सक्रियता का एक मतलब ये भी है कि वो एक तरफ तीसरे मोर्चे की संभावना से डर रही हैं और दूसरी तरफ कांग्रेस की खस्ता हालत को देखते हुए ये जरूरी है कि उसे मजबूत करना जरूरी है.

सोनिया गांधी की कोशिश है कि एनडीए के घमासान का लाभ लिया जाए और तीसरे मोर्चे के जरिए विपक्ष को बंटने को रोका जाए. यही वजह है कि वो क्षेत्रीय पार्टियों को जुटाकर गठजोड़ बनाने में लगी है. ये कांग्रेस के लिए जीवन मरण का सवाल है और पार्टी के सम्मान और अस्मिता को बचाने के लिए ये उनका मजबूत प्रयास है. लेकिन ये प्रयास क्या रंग लेकर आएगा वो तो आने वाला समय बताएगा.