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साझी विरासत नहीं, साझी सियासत बचाने को एकमत हुआ विपक्ष

शरद यादव महज एक चेहरे हैं. साझी विरासत बचाने की मुहिम में असल बेचैनी तो कांग्रेस के भीतर दिख रही है.

Amitesh

दिल्ली के कॉन्सिट्यूशन क्लब में साझी विरासत बचाने के नाम पर विपक्षी नेताओं का जमावड़ा लगा. नीतीश कुमार से खफा-खफा से चल रहे शरद यादव की पहल पर सम्मेलन बुलाया गया था, जिसमें गैर बीजेपी छोटे दलों के अलावा कांग्रेस के भी दिग्गज पहुंच गए.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक गुलामनबी आजाद से लेकर अहमद पटेल तक सब पहुंचे. लग रहा था शरद यादव की इस मुहिम की ज्यादा जरूरत इस वक्त कांग्रेस को ही है. शायद कांग्रेस को शरद की इस मुहिम से एक सहारा मिल गया है. अगर ऐसा ना होता तो देश पर इतने सालों तक राज करने वाली पार्टी आज शरद यादव जैसे जनाधारविहीन नेता के पीछे चलने को मजबूर नहीं होती.


शरद यादव की पहल पर बुलाई गई साझी विरासत बचाओ रैली को देखकर पुराने तीसरे मोर्चे की याद एक बार फिर से ताजा हो रही थी. गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेसी दलों के साथ बनाए गए पुराने तीसरे मोर्चे के सभी पुराने दिग्गज या फिर उनके नुमाइंदे एक मंच पर एक साथ दिख रहे थे.

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बिहार में नीतीश से खफा जेडीयू के शरद यादव और निलंबित सांसद अली अनवर के अलावा आरजेडी के प्रवक्ता मनोज झा लालू यादव की तरफ से मंच पर विराजमान थे. जबकि, यूपी से एसपी के रामगोपाल यादव और बीएसपी से राज्यसभा सांसद भाई वीर सिंह, टीएमसी के शुभेंदु शेखर राय, नेशनल कांफ्रेंस से फारूख अब्दुल्ला, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई के डी राजा भी मौजूद थे.

सबने एक-एक कर मोदी सरकार की नीतियों और काम करने के तरीके पर सवाल खड़े किए. गंगा जमुनी तहजीब पर खतरा बताकर सीताराम येचुरी ने तो आपातकाल की याद दिला दी. दूसरी तरफ, गुलाम नबी आजाद ने आपसी भाईचारे को तहस-नहस कर सरकार चलाने की बीजेपी की कोशिश पर सवाल उठाया. आजाद ने अंग्रेजों की डिवाइड एंड रूल की नीति की याद दिलाकर यहां तक कह दिया कि बीजेपी भी इस वक्त देश में इसी विचारधारा पर आगे बढ़ रही है.

राहुल गांधी की सबको साथ लाने की कवायद

शरद यादव तो महज एक चेहरे के तौर पर सामने आ रहे हैं. लेकिन साझी विरासत बचाने की मुहिम में असल बेचैनी तो कांग्रेस के भीतर दिख रही है. शरद के इस सम्मेलन में राहुल गांधी की बेचैनी उनकी खिसकती सियासत को दिखाने के लिए काफी है.

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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ताजपोशी की तारीख लगातार खिसकती जा रही है. नंबर दो से नंबर वन की हैसियत में राहुल अभी नहीं आ पा रहे हैं. शायद उनके लायक अभी अनुकूल माहौल नहीं बन पा रहा है. लेकिन अघोषित तौर पर 2019 की लड़ाई मोदी बनाम राहुल की ही बनती जा रही है.

कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी नंबर दो की हैसियत में हैं. लिहाजा उन्हें 2019 की चिंता अभी से ही सता रही है. अलग-अलग राज्यों में लगातार मिल रही हार से कांग्रेस के भीतर अपनी सिकुड़ती जमीन को लेकर बेचैनी है. राहुल को शायद इस बात का एहसास हो गया है कि अकेले अपने दम पर कांग्रेस के लिए अगली लड़ाई में मोदी को हरा पाना संभव नहीं है.

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लिहाजा, अभी से ही विपक्षी एकता की दुहाई दी जा रही है. राहुल गांधी ने साझी विरासत बचाओ रैली में कहा, मेरी शरद जी से बात हुई है, बाकी विपक्षी दलों के नेताओं से भी बात हो रही है. राहुल गांधी ने सभी विपक्षी दलों के नेताओं को साथ लेकर 2019 में मोदी को चुनौती देने की बात की है.

राहुल गांधी की बातों से कांग्रेस के भीतर का डर सामने आ रहा है. वरना चुनाव से पहले सभी विपक्षी दलों को इस तरह साथ लेकर चलने की कोशिश नहीं होती. लेकिन उनके लिए ऐसा कर पाना भी आसान नहीं होगा.

कई बार बिखरा है तीसरा मोर्चा

बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव को साथ लाकर कांग्रेस सत्ता की भागीदार बन गई थी. इसी प्रयोग को यूपी से लेकर बंगाल में दोहराने की कवायद भी थी. लेकिन नीतीश कुमार की तरफ से उठाए गए कदम ने कांग्रेस के सपने को धाराशाई कर दिया.

अब एक बार फिर से यूपी में अखिलेश और मायावती को तो बंगाल में लेफ्ट और टीएमसी को साथ लाने की कोशिश हो रही है. लेकिन, ऐसा कर पाना इतना आसान नहीं होगा. तीसरे मोर्चे के धुरंधर कई बार साथ आकर बिखरते रहे. अब तीसरे मोर्चे के इन नेताओं के साथ मिलकर कांग्रेस महागठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है. इस आस में कांग्रेस आगे बढ़ रही है कि साझी विरासत के नाम पर साझी सियासी जमीन को बचाया जा सके.

अगर ऐसा ना होता तो शरद यादव के इस सम्मेलन में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी समेत दिग्गज कांग्रेसी इस तरह बढ़-चढ़कर हिस्सा ना लेते क्योंकि इस साझी विरासत बचाने के नाम पर ना अखिलेश पहुंचे, ना मायावती, ना लालू पहुंचे ना ही ममता. सबने अपने नुमाइंदे भेजकर ही केवल औपचारिकता पूरी कर दी.