बीजेपी शासित दो राज्यों में असम और गुजरात से सरकार के दो फैसले आए हैं जिनको लेकर सियासी गलियारों में चर्चा खूब हो रही है. पहला असम की सरकार का आठ लाख किसानों का 600 करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर देना और दूसरा गुजरात की सरकार का 6 लाख से अधिक बकाएदारों का 625 करोड़ रुपए का बिजली का बिल माफ कर देना.
इन दोनों ही फैसलों को चुनावी नजरिए से लोक-लुभावन घोषणा के तौर पर देखा जा रहा है. इन दोनो ही राज्यों में अभी विधानसभा चुनाव में वक्त है, लेकिन, सरकार के कर्जमाफी और बिलमाफी के फैसले को लोकसभा चुनाव की तैयारियों से जोड़कर देखा जा रहा है. हालांकि गुजरात सरकार का फैसला जसधन विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव से 48 घंटे पहले हुआ है, लेकिन, इस फैसले का असली मकसद राज्य की जनता को लोकसभा चुनाव से पहले लॉलीपॉप के तौर पर देखा जा रहा है.
उधर, ओडीशा के बीजेपी अध्यक्ष बसंत पांडा ने राज्य में सत्ता में आने के बाद किसानों की कर्जमाफी का वादा कर दिया. ओडीशा विधानसभा चुनाव भी लोकसभा चुनाव के साथ ही होना है, लिहाजा बीजेपी अध्यक्ष का यह वादा काफी मायने रखता है जहां बीजेपी इस बार नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजेडी सरकार के खिलाफ मजबूत लड़ाई की तैयारी कर रही है. पार्टी को लोकसभा चुनाव में भी इस बार ओडीशा से काफी उम्मीदें हैं.
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दरअसल, यह पूरी कवायद पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद ही शुरू हुई है, जहां कांग्रेस की तरफ से किसानों के कर्जमाफी का वादा किया था, कांग्रेस सत्ता में आई तो सबसे पहले मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने वादे के मुताबिक किसानों की कर्जमाफी का ऐलान भी कर दिया. लेकिन, इसके बाद असली सियासत शुरू हुई है जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों का सच्चा हितैषी बनते हुए सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे डाली.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संसद परिसर में मोदी सरकार पर किसानों की कर्जमाफी को लेकर जो बयान दिया उसके बाद किसानों का मुद्दा और उस पर हो रही सियासत और गरमा गई.
राहुल गांधी ने कहा था, 'किसानों की कर्जमाफी होने तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सोने नहीं देंगे. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पहले से ही मोदी सरकार को किसान विरोधी बताने में लगे हैं.'
लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान के बाद क्या सरकार उनके दबाव में आएगी, यह कहना मुश्किल है, लेकिन, राहुल गांधी ने इस तरह का बयान देकर यह दिखाने की कोशिश की है कि अगर सरकार किसानों की कर्जमाफी का कोई फैसला करती भी है तो भी उसका क्रेडिट लेने से वो पीछे नहीं हटेंगे. राहुल गांधी किसानों के मुद्दे पर सरकार पर बढ़त लेने की कोशिश कर रहे हैं.
असम और गुजरात में सरकार की तरफ से लिए गए फैसले को देखकर तो यही लग रहा है कि दोनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकारों ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस की सरकारों के फैसले और उसके बाद बने माहौल को ध्यान में रखकर किया है. क्योंकि इससे राज्य की सरकारों को राजस्व की हानि तो होगी, लेकिन, उन्हें इस बात का डर है कि कांग्रेस कहीं इन राज्यों में भी कर्जमाफी का मुद्दा उछालकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर दे.
लेकिन, वित्त मंत्री अरुण जेटली की कर्जमाफी पर अलग राय दिख रही है. रिपब्लिक टीवी के समिट में मुंबई में जेटली ने कहा कि उन्हीं राज्यों को कर्जमाफी करनी चाहिए जिसके पास सरप्लस फंड हो. अरुण जेटली ने पंजाब का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां कांग्रेस की सरकार ने कर्जमाफी तो कर दी लेकिन, राज्य के विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर के लिए राज्य सरकार के पास महज 2500 करोड़ रुपए ही बच गए थे, जिसके चलते पंजाब को आर्थिक मोर्चे पर काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
वित्त मंत्री ने कहा कि अगर कुछ राज्य सोचते हैं कि उनके पास क्षमता है तो ठीक है, लेकिन, जिन राज्यों की क्षमता नहीं है और वो भी ऐसा कर रहे हैं तो इससे मुश्किलें हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि तेलंगाना एक रेवेन्यू सरप्लस वाला स्टेट था जिसने कर्जमाफी की, लेकिन, कर्जमाफी के चार साल बाद आज वो भी रेवेन्यू डेफिसिट हो गया.
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कर्नाटक में भी राज्य सरकार के कर्जमाफी के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि डाटा देखकर लगता है कि कुछ नहीं किया. कुछ इसी तरह का बयान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी दिया है. शाह ने रिपब्लिक टीवी के समिट में बोलते हुए किसानों की कर्जमाफी के मुद्दे पर कहा कि मध्यप्रदेश में 31 मार्च 2018 तक का ही कर्जमाफ करने का आदेश दिया गया है. लेकिन, हकीकत सबको पता है कि उस वक्त तक सभी किसान अपना कर्ज क्लीयर कर चुके होते हैं.
अमित शाह ने दावा किया कि उस वक्त तक तो 90 फीसदी किसानों ने अपना कर्ज क्लीयर कर दिया है. बीजेपी अध्यक्ष ने भी मध्यप्रदेश और कर्नाटक में किसानों की कर्जमाफी के मुद्दे पर आंकड़े सामने लाने की चुनौती दी है. अमित शाह ने साफ किया है कि अगर किसानों की कर्जमाफी के मुद्दे पर कांग्रस की राज्य सरकारें आंकडा नहीं देंगी तो हम आंकड़े को उजागर करेंगे.
दरअसल, किसानों की कर्जमाफी का मुद्दा चुनाव से पहले एक ऐसे लॉलीपॉप की तरह सामने आ गया है. इस तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि केंद्र सरकार भी लोकसभा चुनाव से पहले किसानों की कर्जमाफी या फिर उनके हित में कोई बड़ा ऐलान कर सकती है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों के बाद अब बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों की तरफ से कर्जमाफी का ऐलान आने वाली रणनीति की तरफ इशारा कर रहा है.