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राजस्थान: 'एकता' दिखाने में जुटी कांग्रेस और बीजेपी के पास बस एक मूल मंत्र- 'शाह फॉर्मूला'

कांग्रेस लगातार वसुंधरा राजे के आम जनता की जरूरतों से बेखबर रहने को मुद्दा बना रही है. वहीं बीजेपी कांग्रेस की गुटबाजी को जीवित रखने की जुगत लगा रही है.

Mahendra Saini

ज्यादा दिन नहीं हुए जब राजस्थान में कांग्रेस खेमे से रह-रह कर एक ही तरह की बयानबाजी सामने आती थी. एक गुट की तरफ से कहा जाता था कि दूसरा गुट अभी मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पालने लायक सक्षम नहीं हुआ है. जबकि दूसरे गुट की तरफ से बयान आता था कि आज की ताकत को तौलो. क्या हुआ जो वे कम अनुभवी हैं या पहला गुट 2 बार मुख्यमंत्री की कुर्सी का भोग कर चुका है.

लेकिन अब लगता है कांग्रेस ने अपनी गलतियों को सुधारने और आत्मविश्लेषण का काम शुरू कर दिया है. मीडिया में जिस तरह की तस्वीरें सामने आ रही हैं या कहें कि जिस तरह की तस्वीरों को सामने रखा जा रहा है, उनमें संदेश वही है जो राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा चुनाव-2019 के लिए दिया जा रहा है. यानी पहले जंग तो जीतो, राजा कौन बनेगा, ये बाद में मिल बैठ कर तय कर लिया जाएगा.


एकता दिखाने का 'फार्मूला बस'

राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन और इसमें गैर-बीजेपी दलों को जोड़ने के लिए कांग्रेस एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि किसी भी तरह एक बार बीजेपी को सत्ता से बाहर किया जाए. यही कारण है कि प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जताने और कार्यसमिति के फैसले के बावजूद राहुल गांधी दो कदम पीछे हट चुके हैं. सहयोगी दलों को इशारा दिया जा चुका है कि फिलहाल प्रधानमंत्री बनने का सपना सब देख सकते हैं. फैसला बाद में किया जाएगा.

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ठीक यही रणनीति राजस्थान कांग्रेस ने भी अपना ली है. गुटों में बंटी होने की वजह से राजस्थान में कांग्रेस को ये फैसला लेना पड़ा था कि विधानसभा चुनाव में वो बिना किसी चेहरे को प्रोजेक्ट किये ही उतरेगी. इसके बावजूद नेताओं और उनके चहेतों की महत्वाकांक्षाओं से लग रहा था कि बीजेपी के बजाय कहीं ये खुद से ही न हार जाएं. निश्चित रूप से ये हालात मतदाताओं के बीच एक खराब तस्वीर पेश कर रहे थे.

शायद इसीलिए राजस्थान कांग्रेस ने अपनी एकता को सिद्ध करने का 'बस फॉर्मूला' निकाला है. इनदिनों कांग्रेस राज्य भर में संभाग स्तर पर संकल्प रैलियों का आयोजन कर रही है. इन रैलियों में पहुंचने के लिए फॉर्मूला बस के तहत कांग्रेस के सभी बड़े नेता आजकल एक ही बस में एक साथ यात्रा करते हैं. चाहे अशोक गहलोत हों या सचिन पायलट या फिर प्रोफेसर सी.पी जोशी, लगभग रोजाना सभी नेताओं के एक साथ बैठे होने की तस्वीरें सर्कुलेट की जाती हैं.

इसमें भी खास बात ये है कि अक्सर अशोक गहलोत और सचिन पायलट एक ही सीट पर अगल बगल बैठते हैं. अभी मंगलवार को भरतपुर संभाग की रैली के लिए जाते वक्त जब ये बस जाम में फंस गई तो एकता की एक और तस्वीर सामने लाई गई. जाम के कारण देरी होते देख प्रदेश अध्यक्ष ने एक कार्यकर्ता से बाइक ली और पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत को पीछे बैठाकर खुद 'पायलट' बने.

कांग्रेसी एकता पर बीजेपी का बयान वॉर

कांग्रेस की इस एकता को बीजेपी ने दिखावटी करार दिया है. अपनी गौरव यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे शहर दर शहर ये दावा करती हैं कि कांग्रेस, बीजेपी से मुकाबला करने से पहले अपने घर की लड़ाई तो सुलझा ले. कांग्रेस ये तो तय कर ले कि उसका नेता कौन है.

2 दिन पहले ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी जयपुर आए थे. शाह ने भी कांग्रेस की जमकर खिल्ली उड़ाई. शाह ने कहा कि कांग्रेस के पास न तो नीति है और न ही नेता. कांग्रेस पहले नेता तय करे तब बीजेपी से मुकाबला करने की हिम्मत दिखाए. शाह ने तो यहां तक दावा किया कि नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी जीत गई तो अगले 50 साल तक उसे हटाने की किसी की हिम्मत न होगी.

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सचिन पायलट ने इस पर पलटवार करते हुए इसे बीजेपी का दम्भ बताया है. पायलट ने कहा कि महाभारत में कौरवों को अजेय होने का घमंड हो गया था. लेकिन सब जानते हैं कि इसके बाद उनकी क्या दुर्गति हुई. खुद के लड़ाई में न होने के तंज पर पायलट ने कहा कि वे चाहे लड़ाई में हों या न हों लेकिन बीजेपी की लड़ाई इस बार धरती पुत्रों यानी किसानों से है. पायलट का आरोप है कि किसानों को आजादी के बाद सबसे बुरे हालातों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन केंद्र और राज्य की बीजेपी सरकारें नई-नई योजनाओं की जुमलेबाजी के अलावा धरातल पर कुछ भी नहीं कर रही हैं.

वोटर को लुभाने की कोशिश शुरू

एक ओर शक्तिशाली होने के दावों के अलावा दोनों ही दलों ने अब वोटर्स को लुभाने की कोशिश भी शुरू कर दी है. बीजेपी पिछले 5 साल में 16 लाख रोजगार का दावा कर रही है और सत्ता में वापसी पर और ज्यादा रोजगार का वादा भी. 2013 में बीजेपी ने 15 लाख नौकरियों का वादा किया था. 4 साल बाद कहा जाने लगा कि कौशल विकास कार्यक्रमों के जरिए वादा निभा दिया गया है. हालांकि कैग की रिपोर्ट ने वसुंधरा सरकार के कौशल विकास के दावों की भी हवा निकाल दी है. कैग के अनुसार फिजिकल वेरिफिकेशन में वास्तविक रोजगार बताए गए आंकड़ों का 10% भी नहीं मिल पाए हैं.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी की रिपोर्ट भी बताती है कि देश मे बेरोजगारी की दर लगभग 6.4% है जबकि राजस्थान में ये डेढ़ गुणा तक ज्यादा है. अब कांग्रेस ने अपनी सरकार बनने पर बेरोजगारों को 3500 प्रति माह का भत्ता देने का वादा कर दिया है. हालांकि सोशल मीडिया पर लोगों ने इसके लिए फंड का फार्मूला बताने को लेकर उन्हें ट्रोल भी किया. लेकिन इसकी परवाह किसे है?

बहरहाल, कभी न थमने वाले ऐसे वादे, दावे और प्रतिदावे चुनावी युद्ध का वक्त पास आते-आते और तीखे होंगे. कांग्रेस लगातार वसुंधरा राजे के आम जनता की जरूरतों से बेखबर रहने को मुद्दा बना रही है. वहीं बीजेपी कांग्रेस की गुटबाजी को जीवित रखने की जुगत लगा रही है. ताकि युवाओं को संदेश दिया जा सके कि वोट मजबूत और शक्तिशाली नेतृत्व के लिए करें न कि रोजगार जैसे मुद्दों पर. जयपुर में अमित शाह ने भी अपने कार्यकर्ताओं को इसी लाइन पर फोकस करने का मंत्र दिया है.