view all

राजस्थान: बीजेपी को जनता ने खारिज नहीं किया, अगर ऐसा होता तो बदल सकते थे नतीजे...

राजस्थान के आंकड़ों पर ही गौर करें तो सामने आता है कि जनता ने बीजेपी को खारिज नहीं किया है

Mahendra Saini

3 राज्यों से बीजेपी की विदाई में कांग्रेस की कभी न खत्म होने वाली पार्टी शुरू हो चुकी है. जश्न होना भी चाहिए आखिर राहुल गांधी के नेतृत्व में पहली बार कांग्रेस ने इतनी बड़ी सफलता का स्वाद चखा है. निश्चित रूप से ये जीत ग्रैंड ओल्ड पार्टी के लिए संजीवनी का काम करेगी. लेकिन जश्न के साथ ही जीत के विश्लेषण का काम भी करना चाहिए.

हम ये बात इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कम से कम राजस्थान के आंकड़ों पर ही गौर करें तो सामने आता है कि जनता ने बीजेपी को खारिज नहीं किया है. न ही कांग्रेस को जबरदस्त रूप से पसंद किया है. ये कहें तो ज्यादा मुफीद होगा कि विकल्पहीनता की दशा में वोलटाइल वोटर्स ने स्विच भर किया है.


राजस्थान में कम से कम 20 सीटें ऐसी हैं, जहां हारने वाले उम्मीदवार के जेहन में कल से यही शब्द बार-बार गूंज रहे होंगे कि काश! कुछ वोट और होते तो कुछ और ही होता नजारा. राज्य में 200 में से 199 सीटों पर वोटिंग हुई और करीब डेढ़ दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां मुकाबला इतना नजदीकी था कि जीत का अंतर कहीं 200 वोट तो कहीं 300 वोट, कहीं 800 वोट कहीं 900 वोट रहा.

18 सीटों पर बेहद नजदीकी मुकाबला

राजस्थान में कम से कम डेढ़ दर्जन सीटें ऐसी रही हैं जहां मुकाबले को 200 से लेकर 2 हजार से भी कम वोटों से जीता गया. एक बानगी देखिए, जैसलमेर की पोकरण सीट पर कांग्रेस के सालेह मोहम्मद 872 वोट से बीजेपी के प्रताप पुरी महाराज से जीते. खेतड़ी सीट पर पूर्व मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह को महज 957 वोट से जीत मिली. फतेहपुर पर 860 वोट से, दांताराम गढ़ में 920 वोट से, बेगूं में 1661 वोट से जीत मिली. इसी तरह, सांगोद में 1868 वोट से, नावां में 2256 वोट से तो पचपदरा में 2395 वोट से कांग्रेस को जीत मिली.

ये भी पढ़ें: पीएम मोदी ने सिखाया मुझे कि क्या नहीं करना चाहिए: राहुल गांधी

ऐसा नहीं है कि नजदीकी मुकाबलों में बीजेपी के हिस्से सिर्फ हार ही आई हो. 1 हजार से कम वोटों के अंतर से जहां बीजेपी ने 9 सीटें खोई हैं, वहीं 9 सीटें जीती भी हैं. बीजेपी के लिए कम अंतर वाली इन सीटों में सबसे बड़ी हैं जयपुर की मालवीय नगर, चौमूं, चूरू, सिवाना, फुलेरा, मकराना, आसींद, पीलीबंगा और बिलाड़ा.

मालवीय नगर में पूर्व चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ ने महज 1704 वोट से जीतकर इज्जत बचाई. पिछली बार वे 48 हजार से ज्यादा वोट से जीते थे. चूरू सीट को महज 1850 वोट से जीतकर पंचायतीराज मंत्री और कभी वसुंधरा राजे के खास रहे राजेंद्र सिंह राठौड़ ने इज्जत बचाई.

अगर इन सीटों में 3-4 हजार अंतर वाली सीटों को भी शामिल कर लिया जाए तो संख्या 30 के करीब पहुंच जाती है. ऐसे में समझा जा सकता है कि इन सीटों पर थोड़ा भी किंतु-परंतु आज नजारे को पूरी तरह बदल सकता था. हो सकता है कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल जाता या फिर बीजेपी अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रह जाती.

लोकतंत्र के 'फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम' में जिसको ज्यादा वोट मिलते हैं, वही सरताज होता है. फिर चाहे ज्यादा वोटों की संख्या एक ही क्यों न हो. कई बार FPPS को लोकतंत्र का साइड इफेक्ट भी कह दिया जाता है. लेकिन हर वोट की समान कीमत लोकतंत्र को सर्वोपरि बनाती है.

0.5% वोट ने बचाया इतिहास

पिछले 25 साल में राजस्थान का इतिहास रहा है कि यहां कोई पार्टी अपनी सरकार नहीं बचा पाई है. 1998 में दिग्गज भैरों सिंह शेखावत इस इतिहास का शिकार हुए तो 2003 और 2013 में अशोक गहलोत की जादूगरी भी इसके आगे फेल हो गई. इसबार बीजेपी ने दावा किया था कि अपने काम के बूते वो इस मिथ को तोड़ देंगे. लेकिन लोकतंत्र में होई वही जो वोटर सोचि राखा.

एक बात बड़ी दिलचस्प रही. इसे यूं भी कह सकते हैं कि मतदाताओं ने सरकार बदलने का इतिहास तो बनाए रखा लेकिन बीजेपी को पूरी तरह खारिज नहीं किया. ये इसलिए क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर सिर्फ 0.5% रहा. बीजेपी को जहां 38.8 % वोट मिले, वही कांग्रेस को 39.3 % मिले. हां, ये जरूर है कि इस आधे फीसदी के अंतर ने कांग्रेस को 26 सीटें ज्यादा दिला दी. लोकतंत्र की समझ न रखने वाले आश्चर्य कर सकते हैं कि सिर्फ 0.5% वोट कैसे किसी को सत्ता से बेदखल कर सकते हैं.

दिग्गजों की हो गई जमानत जब्त

2018 के इस चुनाव ने लोकतंत्र के कई रंग दिखाए हैं. किसी को फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया तो किसी को अर्श से धड़ाम भी कर दिया. 2013 में जीत के रिकॉर्ड बना देने वाले कई दिग्गज इस बार बुरी तरह मात खा गए. इनमें सबसे बड़ा नाम है घनश्याम तिवाड़ी का. 15 साल से जयपुर के सांगानेर से विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने मोदी लहर में सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड बनाया था. वे 63 हजार से ज्यादा मतों से जीते थे. तब ये मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से भी ज्यादा बड़ी जीत थी.

लेकिन इस बार घनश्याम तिवाड़ी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए हैं. उनको महज 17,371 वोट मिले हैं. वसुंधरा राजे से अदावत और पार्टी में लगातार उपेक्षा के चलते तिवाड़ी ने इस बार भारत वाहिनी नाम से नई पार्टी बनाई थी. दावा था कि वे हनुमान बेनीवाल के साथ मिलकर राजस्थान में तीसरी ताकत का निर्माण करेंगे. बेनीवाल की नई पार्टी ने तो फिर भी 3 सीटें जीत ली. लेकिन तिवाड़ी का सपना 'छन्न' से नहीं बल्कि धड़ाम से टूट गया.

2013 में श्रीगंगानगर सीट से सबसे अमीर विधायक कामिनी जिंदल विधानसभा पहुंची थीं. जिंदल के पति आईएएस हैं जबकि पिता कारोबारी. पिछली बार ज़मींदारा पार्टी के नाम से इन्होने नई पार्टी बनाई थी. इस बार कामिनी जिंदल अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई हैं. उन्हें 5 हजार से भी कम वोट मिले. इसकी सबसे बड़ी वजह उनका अवसरवादी रवैया रहा. कांग्रेस और बीजेपी विरोध के नाम पर इन्होने अलग पार्टी जरूर खड़ी की थी लेकिन आरोप है कि राज्यसभा चुनाव में बीजेपी से 'डील' कर ली. जबकि कुछ दिन पहले आम आदमी पार्टी के समर्थन में बड़े-बड़े विज्ञापन दिए.

कुछ अनचाहे नतीजे भी हैं...

महिला सशक्तिकरण और युवा भागीदारी 21वीं शताब्दी के कुछ सबसे बड़े नारों और लक्ष्यों में से एक हैं. महिला सशक्तिकरण और कानून निर्माण में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने का सबसे बढ़िया तरीका ये भी माना जाता है कि राजनीति में इन 2 वर्गों की अधिकाधिक संख्या हो. पश्चिमी लोकतंत्रों में महिला और युवाओं की भागीदारी 50 फीसदी तक देखी जाती है.

ये भी पढ़ें: Rajasthan Results: सिर्फ 0.5 फीसदी ज्यादा वोट शेयर लेकर कांग्रेस ने किया 'खेल', जानिए 

लेकिन राजस्थान में इसबार के नतीजे इस दिशा में थोड़ी निराशा व्यक्त करते हैं. इस बार महिलाएं और युवा राजनेता पहले से कम संख्या में विधानसभा में एंट्री कर पाए हैं. जो आंकड़े सामने आए हैं उनके मुताबिक सिर्फ 22 महिला विधायक चुनी गई हैं. पिछली बार ये संख्या 28 थी. इसी तरह 45 वर्ष से कम उम्र के राजनेता करीब 100 सीटों पर दावेदार थे. लेकिन सिर्फ 41 ही जीतने में सफल हो पाए.