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राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018: बीजेपी की पहली लिस्ट में साफ नजर आया वसुंधरा राजे का प्रभाव

राजस्थान में बीजेपी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट आ गई. इस लिस्ट पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का असर साफ देखा जा सकता है.

FP Politics

राजस्थान में बीजेपी उम्मीदवारों की पहली लिस्ट आ गई. इस लिस्ट पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का असर साफ देखा जा सकता है. भले ही यह कहा जाता रहा हो कि हाई कमान अब वसुंधरा के पर कतरना चाहता है, वो उम्मीदवारों के चयन में अपनी बात मनवाने में कामयाब रही हैं.

131 लोगों की पहली लिस्ट में 85 उम्मीदवार अपनी जगह बचाने में कामयाब हुए हैं. हालांकि यह कहा जा रहा था कि एंटी इनकंबेंसी से बचने के लिए तमाम लोगों को बदला जाएगा. इस लिस्ट से समझ आता है कि राजे का दबाव था कि उनके ‘लोगों’ को बरकरार रखा जाए. वो इस बात को मनवाने में कामयाब रही हैं. राज्य के दूसरे नेता अर्जुन राम मेघवाल और गजेंद्र सिंह पूरी तरह बेअसर रहे हैं.


लिस्ट पर राजे के असर से दो बातें नजर आती हैं. पहली, बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री को अनुमति दी है कि वो ये लड़ाई अपने अनुसार लड़े. दूसरा, वे एंटी इनकंबेंसी के मुकाबले विद्रोह को लेकर ज्यादा फिक्रमंद हैं.

उम्मीदवारों की घोषणा से पहले यह माना जा रहा था कि 200 सदस्यों वाली विधानसभा में 60 फीसदी बीजेपी विधायकों को स्वीकार नहीं किया जाएगा. बीजेपी के अपने सर्वे में सामने आया था कि 115 लोग ऐसे मुश्किल संघर्ष में फंसे हैं, जो अपना चुनाव हार सकते हैं. इस फीडबैक के बाद बीजेपी ने तमाम एजेंसियों, राज्य नेताओं और स्वतंत्र विश्लेषकों से फीडबैक मांगा था. आखिर में हुआ यह है कि महज 23 लोगों को बदला गया है.

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एंटी इनकंबेंसी से बचने के लिए बड़े स्तर पर बदलाव को लेकर बीजेपी में हिचक दिखी है. इसकी वजह है कि बढ़ते असंतोष के बीच विद्रोहियों के सुर सिरदर्द को और बढ़ाएंगे ही. ऐसा लगता ह कि राजे हाई कमान को यह समझाने में कामयाब हो गई हैं कि नए उम्मीदवार एंटी इनकंबेंसी और ताकतवर बीजेपी विद्रोहियो के दोहरे असर की काट नहीं ढूंढ पाएंगे. पार्टी के लोगों का कहना है कि सोचा यह गया कि सौ से ज्यादा विधायकों को बदल दिया जाए. लेकिन अगर इसमें से आधे लोग भी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में उतरे या हनुमान बेनीवाल के तीसरे मोर्च से जुड़ गए, तो बीजेपी के लिए कैंपेन की शुरुआत बहुत खराब तरीके से होगी. इसके साथ ही, ऊर्जा विद्रोहियों को मनाने में खर्च हो जाएगी.

हालांकि अब खतरा तिहरी एंटी इनकंबेंसी का है. पहला केंद्र, दूसरा राज्य और तीसरा स्थानीय उम्मीदवार के खिलाफ. अगर कांग्रेस अपने उम्मीदवारों का चयन सावधानी और बुद्धिमानी से करती है, तो बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी.

जो भी हो, फिलहाल यह साफ हो गया है कि राजस्थान में पार्टी ने राजे के प्रभुत्व को स्वीकार किया है. अगर वो जीतने में कामयाब होती हैं, तो उनका रुतबा और बढ़ जाएगा. वो एक बार फिर पार्टी के हैवीवेट में शामिल हो जाएंगी. उनका यह रुतबा मोदी-शाह के समय में कमजोर पड़ा है.

दूसरी तरफ, अगर बीजेपी हारती है, तो अकेली राजे को दोषी ठहराया जाएगा. खासतौर पर अब, जब उनको अपनी पसंद के उम्मीदवार मिले हैं. बड़ी हार होने पर नतीजा यही होगा कि उन्हें किनारे करके लोक सभा  चुनाव से पहले किसी और नेता को कमान सौंपी जाए. पहली लिस्ट में भी कुछ नाम ऐसे हैं, जो नेतृत्व को लेकर चल रही रस्साकशी को दिखाते हैं. आरएसएस ने अपने कुछ पसंदीदा उम्मीदवारों को उतारा है, जिनमें मदन दिलावर हैं, जो मुख्यमंत्री के आलोचक रहे हैं.

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बीजेपी के आलोचक पहली लिस्ट को बिल्कुल अलग नजरिए से देख सकते हैं. एंटी इनकंबेंसी से पार पाने में में हाई कमान की अक्षमता दिखी है. इसे समर्पण के तौर पर देखा जा सकता है. राजे के सामने नहीं, बल्कि इस बढ़ते डर के सामने कि राजस्थान हारी हुई लड़ाई है. साथ ही, फैसला इस समझ के बाद भी हुआ है कि सीएम को ही ये लड़ाई लड़ने दी जाए, पीएम को इससे दूर रखा जाए.