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कांग्रेस का भविष्य खतरे में फिर भी राहुल का इंतजार

सोनिया गांधी के करीबी कुछ पुराने नेता नहीं चाहते कि राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष बनकर लोगों को झटका दें

Sanjay Singh

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा कि राहुल गांधी को मैच्योर होने के लिए अभी और वक्त चाहिए. हर कांग्रेसी को पूछना चाहिए कि, इसके लिए आखिर राहुल गांधी को कितना वक्त चाहिए?

शीला दीक्षित ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए अपने इंटरव्यू में कहा, 'याद रखिए कि राहुल गांधी अभी मैच्योर नहीं हैं. अभी उनकी उम्र ही क्या है. अभी तो वो अपनी उम्र के चौथे दशक में ही हैं. उन्हें थोड़ा वक्त दीजिए'.


शीला दीक्षित ने जिस अंदाज में ये बयान दिया उससे लगता है कि कांग्रेस के पास इफरात वक्त है. राहुल गांधी एक समझदार राजनेता बन जाएं, इसका इंतजार करने के लिए कांग्रेस के पास अनंत काल का वक्त है. दिक्कत केवल इस बात की है कि जब तक राहुल गांधी समझदार होंगे, तब तक पार्टी का सत्यानाश हो चुका होगा.

अभी राहुल गांधी 45 बरस के हैं. उनकी उम्र में तमाम पेशेवर लोग लीडर बन चुके होते हैं. उससे पहले, पेशेवर लोग तमाम रोल में अपनी काबिलियत साबित कर चुके होते हैं.

कांग्रेस की बीमारी का इलाज सिर्फ राहुल नहीं

महाराष्ट्र के निकाय चुनाव के नतीजों से साफ है कि कांग्रेस बहुत बुरी हालत में है. कांग्रेस की मौजूदा हालत से उसके फिर से बेहतर दौर में आने की उम्मीद कम ही है. वजह ये भी है कि देश के किसी भी राज्य में सत्ता गंवाने के बाद कांग्रेस का वापसी का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है.

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लोकसभा में उसकी केवल 44 सीटें हैं. पूरे देश में उसका वोट प्रतिशत महज 19 फीसद रह गया है. और राजनैतिक रूप से किसी भी अहम राज्य में आज कांग्रेस की सरकार नहीं है. इन सब बातों से साफ है कि पार्टी बेहद बीमार है. बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस दोयम दर्जे का रोल निभाने को मजबूर है.

वैसे कांग्रेस का पतन कोई हालिया घटना नहीं. इसकी शुरुआत 1990 के दशक में ही हो गई थी. जब मंडल और मस्जिद के मुद्दों के चलते देश की राजनैतिक तस्वीर बदल गई. उस दौर में ताकतवर क्षेत्रीय नेता उभरे, जिन्होंने कांग्रेस की जमीन पर कब्जा कर लिया. साथ ही उसी दौर में बीजेपी ने भी अपने विकास की रफ्तार तेज की और कई राज्यों में सत्ता में आ गई.

2014 में चुनावी रैली के दौरान प्रियंका और राहुल गांधी (तस्वीर-एफबी)

कांग्रेस को अपने पतन की वजह समझने और गलतियां सुधारने में काफी वक्त लगा. उम्मीद थी कि 2014 के चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस अपनी रणनीति में बदलाव करेगी.

मगर एक के बाद एक दूसरे राज्य में पार्टी का पतन होता रहा. हम अब तक कांग्रेस की तरफ से खोई हुई राजनैतिक ताकत वापस पाने की कोई गंभीर कोशिश होते नहीं देख रहे हैं. सच तो ये है कि अगर राहुल एक मैच्योर नेता होते भी तो जिस तरह से कांग्रेस की जमीन खिसक रही हो, वो उसे नहीं रोक पाते.

जनता से जुड़ने वाले नेता नहीं हैं कांग्रेस में

कांग्रेस के इस पतन की जड़ें काफी गहरी हैं. निचले स्तर पर कांग्रेस का संगठन पूरी तरह बिखर चुका है. आज हर राज्य में कांग्रेस गुटों में बंटी नजर आती है. साथ ही पार्टी के बहुत कम नेता हैं जो जनता से जुड़ने की ताकत रखते हैं. जो भी पार्टी जनता से दूर होती है, उसका खात्मा तय होता है.

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आज पार्टी में बड़े नेताओं की भरमार है. मगर उनकी कोई उपयोगिता नहीं नजर आती. हां, वो गाहे-बगाहे अपने बयानों और हरकतों से पार्टी को नुकसान जरूर पहुंचाते हैं.

आपने कभी सोचा कि कांग्रेस ये क्यों नहीं तय कर पा रही है कि उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अध्यक्ष कब बनाना है? ये कोई वजह तो हो नहीं सकती कि उनमें समझदारी की कमी है. मौजूदा ओहदे पर रहते हुए भी राहुल गांधी कमोबेश सभी बड़े फैसले ले ही रहे हैं. फिर भी पार्टी उन्हें अध्यक्ष नहीं बना रही है, जबकि हकीकत में वो अध्यक्ष की ही जिम्मेदारी निभा रहे हैं.

पार्टी को उन्हीं से काम चलाना है. कुछ लोग कहते हैं कि सोनिया के करीबी कुछ पुराने नेता नहीं चाहते हैं कि राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष बनकर लोगों को झटका दें. कुछ लोग ये कहते हैं कि राहुल गांधी को अध्यक्ष पद पर तभी बिठाया जाएगा, जब वो खुद को साबित कर देंगे. उन्हें पहले कुछ राज्यों में जीत हासिल करके काबिलियत साबित करनी होगी. ये बात हास्यास्पद लगती है.

आखिर कांग्रेस के कार्यकर्ता कब तक इंतजार करें? किसी भी राज्य में पार्टी की जीत कैसे मुमकिन है, जब पार्टी जमीनी स्तर से ही गायब है. जब तक राहुल गांधी समझदार होंगे, तब तक तो कोई और पार्टी कांग्रेस की जगह ले चुकी होगी.

दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी ऐसा कर चुकी है. आगे चलकर कुछ और राज्यों में ऐसा हो सकता है. बीजेपी पहले ही देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है. कांग्रेस उसकी बराबरी में नहीं ठहरती.

साफ है कि कांग्रेस किसी गुमान में ही जी रही है. किसी को ये बात कांग्रेस को बतानी चाहिए.