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रॉबर्ट वाड्रा जमीन सौदा: प्रियंका की सफाई जवाब कम, सवाल ज्यादा खड़े करती है

प्रियंका गांधी वाड्रा ने हरियाणा लैंड डील पर अपना स्टैंड साफ करने के लिए प्रेस रिलीज जारी किया

Sanjay Singh

प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोचा कि हरियाणा के लैंड डील पर अपना स्टैंड साफ करने के लिए प्रेस रिलीज के साथ आना बुद्धिमानी होगी. इस लैंड डील के बारे में में इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट कहती है कि जस्टिस एसएन ढींगरा आयोग उसकी जांच कर रहा है.

ढींगरा आयोग का गठन हरियाणा में कांग्रेस शासन काल के 10 सालों में रॉबर्ट वाड्रा समेत कई कंपनियों को जमीन दिए जाने के मामले की जांच के लिए हुआ था.


हरियाणा में फरीदाबाद जिले के तहसील फरीदाबाद के गांव अमीपुर में 5 एकड़ खेती की जमीन की खरीद-फरोख्त पर ये बड़ा खुलासा है. जमीन खरीदने के तरीके और जिससे जमीन खरीदी गई थी उसी को बेचकर 4 साल में 533 फीसदी भारी मुनाफा कमाया गया.

प्रियंका ने जो कहा उससे जवाब कम मिले सवाल ज्यादा खड़े होते हैं.

प्रियंका की सफाई से एक बात जरूर पता चलती है कि उनके पास बिजनेस की समझ उनके पति रॉबर्ट वाड्रा से कम नहीं है. हालांकि, वह दावा करती हैं कि रॉबर्ट वाड्रा के वित्तीय मामलों से उनका कोई 'लेना देना' नहीं रहता है.

उनकी इस समझ का दूसरा पक्ष ये है कि जिस वेंडर ने पांच एकड़ जमीन 2006 में सिर्फ 15 लाख रुपये में बेची थी. उसी जमीन के टुकड़े को वह चार साल बाद साढ़े पांच गुणा ज्यादा 80 लाख चुकाकर वापस खरीद लेता है.

प्रियंका और रॉबर्ट वाड्रा (तस्वीर- रॉबर्ट वाड्रा के ट्विटर पेज से)

कारोबारी समझ

इससे ऐसा लगता है कि जैसे उस वेंडर के पास कारोबारी जैसी कोई समझ ही ना हो. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी के दफ्तर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है- 'इस खरीददारी के लिए फंड का स्रोत किराए की उस संपत्ति से आमदनी थी जो श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा को विरासत में उनकी दादी

इंदिरा गांधी से मिली थी.'

इस संपत्ति या श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा की किसी और संपत्ति के लिए फंड के स्रोत का श्री रॉबर्ट वाड्रा के वित्तीय मामलों या स्काइलाइट हॉस्पिटैलिटी से कोई संबंध नहीं है और न ही डीएलएफ से इसका संबंध है.'

इस पर कोई सवाल नहीं है. आखिरकार वो उस परिवार से जुड़ी हैं जिसने भारत पर करीब 60 साल तक शासन किया है. इतना ही नहीं नेहरू-गांधी परिवार की वंश परंपरा भी समृद्ध रही है. कोई भी इस तरह ये मान सकता है कि उसे दादी इंदिरा गांधी से विरासत में मिली संपत्ति से इतना किराया मिल सकता है.

प्रियंका की सफाई के बाकी बिन्दुओं पर गौर करने से पहले ये जानना जरूरी होगा कि फरीदाबाद में 5 एकड़ और फिर इसके बाद हिमाचल प्रदेश के शिमला से सटे इलाके में भी उन्होंने जमीन खरीदी थी.

लेकिन इसके चार साल पहले प्रियंका ने तत्कालीन वाजपेयी सरकार से 7 मई 2002 को एक पत्र लिखकर कहा था कि उनके लिए 53,421 रुपये

किराया 'बहुत बड़ी' रकम है. यह उनकी 'कुव्वत से ज्यादा' है.

दिल्ली के बहुमूल्य लुटियंस इलाके के लोधी इस्टेट में 2765 वर्गमीटर के बंगले में रहने के एवज में किराये को लेकर यह चिट्ठी थी. वाजपेयी की उदार एनडीए सरकार ने उनकी चिट्ठी पर गौर किया और पहले से सब्सिडाइज्ड रेंट को 82 फीसदी कम कर दिया.

प्रियंका को सुरक्षा कारणों के चलते ये घर अलॉट किया गया था. सरकार को उनके इस पत्र ने ऐसे ही दूसरे आवंटियों को किराया घटाने का रास्ता

दिखाया और सरकार ने उनकी भी बात मान ली.

आमदनी के स्रोत को लेकर खास बात ये है कि दादी की विरासत में मिली संपत्ति 2006 और 2007 में उनके पास अचानक नहीं आ गई. 2002 में भी यह उनके पास रही होगी. लेकिन कोई नहीं बता सकता कि वाजपेयी सरकार को विरासत में मिली प्रियंका की संपत्ति से आमदनी के बारे में पता था या नहीं.

दिलचस्प सवाल ये है कि प्रियंका ने कांग्रेस के शासनकाल में ये संपत्ति क्या मोटा मुनाफा कमाने के लिए खरीदी थी या अपने इस्तेमाल के लिए? फरीदाबाद की संपत्ति 2006 में खरीदी गई और 2010 में ऊंची कीमत पर बेच दी गयी.

तब भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. तब प्रियंका गांधी ने गर्मी के दौरान शिमला स्थित राष्ट्रपति के रिट्रीट स्थल के आसपास और हरियाणा से सटे इलाके में ओबेरॉय ग्रुप के लक्जरी स्पा वाइल्ट फ्लावर हॉल में आवासीय और खेती-बागवानी के मकसद से संपत्ति खरीदी थी.

उन्होंने ये संपत्तियां साल 2007 और साल 2013 में खरीदी थी जिस समय वहां वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार सत्ता में थी.

फरीदाबाद की तत्कालीन संपत्ति से जुड़े ताजा विवाद की बात करें तो यह दिलचस्प है कि वेंडर ने जो 5 एकड़ जमीन बेची और प्रियंका ने जिसे खरीदी उसका सौदा ठीक उसी सर्किल रेट पर हुआ जो रजिस्ट्री के लिए तय था. यानी तीन लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से 15 लाख रुपये. उसने चेक से उतनी ही रकम चुकायी. न एक रुपये ज्यादा न एक रुपये कम.

बयान के मुताबिक साल 2006-07 में फरीदाबाद तहसील के अमीपुर गांव में कृषि के लिए और 28 अप्रैल 2006 (जिस दिन जमीन खरीदी गयी) को सरकारी दर तीन लाख रुपये प्रति एकड़ थी. श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा ने 4 फीसदी (कृषि जमीन खरीदने पर महिलाओं पर लागू) स्टाम्प ड्यूटी दी जो 15 लाख की खरीद पर 60 हजार रुपये होती है.

लेकिन वही जमीन का टुकड़ा उसी वेंडर को बेच दिया गया जिसका जिक्र प्रियंका के प्रेस रिलीज में नहीं है. कहा गया कि यही बाजार दर है. इस तरह एक अच्छा 'बिजनेस डील' हो गया.

जिससे खरीदी, उसे ही बेची जमीन

प्रियंका गांधी वाड्रा ने मूल वेंडर को जमीन बेच दी जिसने 17 फरवरी 2010 को जमीन सौदे के 80 लाख रुपये का भुगतान चेक से करने को लेकर पहली बार

मना करने के अधिकार का इस्तेमाल किया था.

इसका मतलब ये हुआ कि 16 लाख प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन

की कीमत तय की गई. तब से यही बाजार दर चल रहा था. मूल बिक्री समझौते से पहले ‘मना करने का अधिकार’ पेचीदा है और इसलिए अटकलें ज्यादा रहती हैं.

एक ट्विटर हैंडल जिसका नाम प्रियंका गांधी@पीजीवी है और जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि उसे प्रियंका गांधी के फैंस और समर्थक चलाते हैं. इस ट्विटर हैंडल से किए गए एक ट्वीट में कहा गया है- 'विरासत में मिली संपत्ति के संबंध में प्रियंका गांधी वाड्रा का प्रेस स्टेटमेंट. वो कहानी जो इकोनॉमिक टाइम्स कर रही है.' इस ट्वीट के साथ प्रियंका गांधी की तरफ से जारी किया गया दो पेज का प्रेस रिलीज भी सार्वजनिक किया गया है.

प्रियंका के बचाव में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी मैदान में कूद गए हैं जिसे समझा जा सकता है. 'ऑफ द रिकॉर्ड' वे लोग प्रियंका को  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के मुकाबले वास्तव में अपना ट्रंप कार्ड बताते हैं. अगर कभी कांग्रेस जिंदा हो सकी तो उसके लिए प्रियंका आखिरी उम्मीद है.

यूपी चुनाव के वक्त जब कांग्रेस की सारी उम्मीदें खत्म हो गई थी उस समय पार्टी की रणनीति बनाने और उस पर नजर रखने के लिए प्रियंका पर भरोसा किया जा रहा था.

इसके साथ ही उन्हें इस बात का भी क्रेडिट दिया गया कि उन्होंने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन जोड़ लिया. लेकिन चुनाव के बाद जब यूपी के नतीजे आए और पार्टी को 403 में से सिर्फ 7 सीटें मिलीं तो उन्होंने रणनीतिकार और कैंपेनर के तौर पर प्रियंका का नाम लेना बंद कर दिया.

विवादों से भरे इस जमीन के सौदे से उनके इमेज को गहरा धक्का लगेगा. उनके राजनीतिक करिश्मे पर पहले से ही सवाल उठ रहे हैं.

ऐसे में यूपी चुनाव के बाद अब कांग्रेस नेताओं को देश के लोगों का विश्वास प्रियंका गांधी में बनाए रखने में मुश्किल आएगी.

उनके लिए लोगों को ये ये समझाना मुश्किल होगा कि वे प्रियंका की छवि और उनके करिश्मे पर विश्वास करें और इस बात पर भरोसा कि उनका अपने पति रॉबर्ट वाड्रा के वित्तीय संसाधनों से कोई संबंध नहीं है.