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2019 के बाद क्यों गांधी परिवार भारतीय राजनीति में हो सकता है गैरजरूरी?

अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस के हाथ से अपनी दस में से आठ सीटें निकल गईं

Updated On: Mar 16, 2017 07:46 AM IST

Akshaya Mishra

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2019 के बाद क्यों गांधी परिवार भारतीय राजनीति में हो सकता है गैरजरूरी?

डूबती कांग्रेस की नैया को पार लगाने की कोशिश में गांधी परिवार की नाकामी के बारे में पहले ही बहुत कुछ कहा जा चुका है. पार्टी पिछले 25 सालों से नीचे जा रही है जिसका कारण इतना साफ है कि फिर से बताने की जरूरत नहीं है. इस हालत के लिए सही तौर पर पार्टी का सर्वोच्च परिवार ही कसूरवार है.

हालिया चुनावी में शिकस्तों के बाद सवाल खड़ा हो रहा है कि ये गांधी नाम देश की राजनैतिक बिसात से आखिरकार खत्म होने वाला है. वैसे इस बात का अनुमान तो 2019 के आम चुनावों के बाद अच्छी तरह लग ही जाएगा.

रायबरेली-अमेठी सीट पर भी खतरा

इस अनुमान की सही वजह भी है. पार्टी राज्यों में बहुत ही तेजी से अपना आधार खोती जा रही है. लोकसभा में कांग्रेस के 44 सदस्य हैं, लेकिन इस पार्टी ने जिस निकम्मेपन का मुजाहिरा किया है वो साफ जाहिर करता है कि अगले आम चुनावों में ये संख्या और भी कम हो सकती है.

Rahul-Sonia

राहुल और सोनिया गांधी

अगर गांधी परिवार के अमेठी और रायबरेली जैसी खानदानी विधानसभाओं के नतीजों को इशारा मानें तो साफ नजर आता है कि राहुल गांधी और सोनिया दोनों ही अपनी संसदीय सीट गंवाने वाले हैं.

अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस के हाथ से अपनी दस में से आठ सीटें निकल गईं. इन आठ सीटों में से बीजेपी ने छह और समाजवादी पार्टी ने दो पर कब्जा जमा लिया.

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राहुल के संसदीय क्षेत्र अमेठी में कांग्रेस नाकाम रही. सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस ने पांच में से दो सीटें जीतीं. 2012 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने दस में से आठ सीटें गवां दीं थीं.

अगर घाटा खाने का रुझान ऐसे ही जारी रहा तो 2019 के चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की अपनी सीटें भी छिन जाएंगी.

ऐसी सूरतेहाल में कांग्रेस चलाने के लिए जो भी नैतिक आभामंडल इन दोनों के पास बचा है, कांग्रेस उसे भी खो देगी. इससे भी बुरा ये होगा कि वो क्षेत्रीय नेता भी गांधी परिवार को राष्ट्रीय नेता नहीं मानेंगे जो कि अपने दम पर इनसे कहीं अधिक ज्यादा मजबूत नेता हैं.

उत्तर प्रदेश में करारी हार के बाद राहुल पर भी उंगली उठनी लाजमी है. एसपी के साथ गठबंधन के बाद कांग्रेस को एक मजबूत दल के रूप में देखा जा रहा था.

अपने क्षेत्र में गैर जरूरी प्रियंका

परिवार की सबसे बड़ी समस्या ये है कि उसके पास अब कोई तुरुप का पत्ता नहीं बचा है. राहुल नाकाम साबित हो चुके हैं. सोनिया कुछ कर नहीं रही हैं.

Priyanka Gandhi

प्रियंका गांधी कब राजनीति में सक्रिय होंगी ये कोई नहीं जानता

पार्टी के भीतर से ही नेता चुनने वाली कांग्रेस के लिए प्रियंका तो इस्तेमाल से पहले ही एक चूका हुआ हथियार हो चुकी हैं. अमेठी और रायबरेली जैसे संसदीय क्षेत्र, जिनकी प्रियंका ने खुद जिम्मेदारी ली थी वो भी बराबर उनके गैरजरूरी होते जाने की कहानी कह रहे हैं.

प्रियंका से जुड़ी नएपन वाली बात भी अब खत्म हो चुकी हैं. अगर वो पार्टी की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर ले भी लें तो उससे भी कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला.

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कांग्रेस के सर्वोच्च परिवार के लिए विकल्प ज्यादा नहीं हैं. पार्टी करीबी घेरे से थोड़ा बाहर निकल कर भी नेता ढूंढ सकती है लेकिन वो नेता भी अब योग्यता के नजरिए से थोथा चना ही रह गए हैं. पार्टी संभावित नेताओं को तैयार नहीं करने की भारी कीमत चुका रही है.

कोई पार्टी कांग्रेस से नहीं करेगी गठबंधन

कांग्रेस भरोसे के लायक चुनावी सहयोगी न होने की बदनामी तेजी से कमा रही है. यही पश्चिम बंगाल में हुआ जो फिर उत्तर-प्रदेश में भी दोहराया गया.

Gonda: Congress vice president Rahul Gandhi waves to the crowd during an election rally in Gonda district on Saturday. PTI Photo (PTI2_25_2017_000174B)

राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार हार का स्वाद चख रही है

पार्टी को फिर से बनाने और उसके आधार का निर्माण करने की दिशा में सबसे ऊपर के नेता के तौर पर संजीदगी की कमी को अगर एक नजर में रखें तो आप राहुल गांधी को ही सबसे पहले देख लें. कांग्रेस के साथ गठबंधन करने वाली कोई भी पार्टी बहुत बड़ा खतरा उठाएगी.

इसलिए अब से राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को अपनी पैर-घिस्सू चाल के साथ अकेले ही चलना होगा. दूसरों की बैसाखियों पर चढ़ कर फिर से ऊपर आना तो अब नामुमकिन है.

कुल मिलाकर, ये कांग्रेस और उसके सर्वोच्च परिवार के लिए एक गंभीर स्थिति है. दोनो ही बेमानी होने की कगार पर खड़े हैं. हो सकता है 2019 के बाद राजनीति के खिलाड़ियों के तौर तो कोई उनकी चर्चा भी न करे.

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