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मोदी और नीतीश: मंच से परे दास्तां और भी है...

आखिरकार नीतीश के पास अपने मौजूदा साथियों आरजेडी और कांग्रेस से असहज होने के पर्याप्त कारण भी तो हैं.

Sanjay Singh

पटना का जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा गुरुवार की सुबह दो नेताओं के बीच हेल-मेल की एक विरल घटना का गवाह बना. ये दो नेता थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो कभी गठबंधन के साथी रहे. फिर राजनीतिक दुश्मन बने और अब दोबारा एक-दूजे को दोस्त नजर आ रहे थे.

यह राजनीतिक शिष्टाचार का तकाजा है कि प्रधानमंत्री किसी राज्य के आधिकारिक दौरे पर पहुंचे तो उस राज्य का मुख्यमंत्री उनकी आगवानी करे.


हवाई अड्डे पर दोनों दल के वरिष्ठ नेताओं सहित बाकी लोगों ने जो देखा वह इस बात के इशारे कर रहा था कि दोनों नेताओं के होठों पर तैरती मुस्कान और हैंडशेक महज शालीनता और रस्म-अदायगी भर का मामला नहीं.

नोटबंदी में मिले बिछड़े दोस्त

इस शालीनता में दोस्ती की नई कोपले फूट रही थी. लंबे समय तक कायम रहने वाले भावी रिश्ते की फिर से नींव पड़ रही थी.

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पाठकों को वह वक्त याद होगा जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नीतीश कुमार रेलमंत्री थे. गुजरात के तब के मुख्यमंत्री मोदी के साथ उनकी खूब निभती थी. लेकिन पटना में दोनों इस बात को लेकर सचेत दिखे कि कम से कम इस घड़ी दोनों का हेल-मेल फिजूल की अटकलबाजी को हवा ना दे कि उसका कोई राजनीतिक मायने-मतलब भी है.

मोदी और नीतीश हवाई अड्डे से अलग-अलग कार में निकले और गांधी मैदान में फिर मिले. जहां गुरु गोविन्द सिंह की 350वीं जन्मतिथि के उपलक्ष्य में तख्त श्री हरमंदिर साहिब की नकल बनायी गई है.

यहां याद करें कि पटना आखिर दसवें सिख गुरु की जन्मभूमि है. नीतीश ने गांधी मैदान में एक बार फिर नरेंद्र मोदी की आगवानी की और उन्हें मंच तक ले गये. भगवा पटका बांधे दोनों एक-दूसरे के करीब बैठे और एक-दूसरे की बात-बात पर पुरजोर मुस्कुरा रहे थे.

कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद पटना के हैं, वे भी दोनों नेताओं के पास बैठे और उनकी बातचीत में कभी-कभार शामिल होते नजर आये.

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मोदी के नोटबंदी के फैसले को मिले नीतीश के समर्थन ने दोनों नेताओं के बीच निजी और राजनीतिक रिश्ते बदल दिए है. बिहार के मुख्यमंत्री ने नोटबंदी को बिलाशर्त समर्थन दिया. मुद्दे पर विपक्ष की हवा निकाल दी और विपक्ष के विरोध-प्रदर्शन की नैतिकता पर सवाल खड़े हो गए.

राजनीति में दोस्ती-दुश्मनी का फार्मूला

अपनी तरफ से मोदी ने सार्वजनिक रूप से नीतीश और नवीन पटनायक का आभार माना. लोग मोदी-नीतीश की इस दोस्ती के भविष्य पर सवाल उठा रहे थे. मोदी के नोटबंदी पर नीतीश के समर्थन का शुक्रिया अदा करने से ऐसे सवाल उठने बंद हो गए.

आखिर, राजनीति में ना तो कोई हमेशा के लिए दोस्त होता है और ना ही दुश्मन.

2014 के लोकसभा चुनावों के वक्त मोदी और नीतीश के बीच दिखी कड़वाहट का रत्तीभर हिस्सा भी इस बार नजर नहीं आया. जैसे दोनों बीती बातों को भुला देना चाहते हों.

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जब नीतीश बोलने के लिए उठे तो उन्होंने मोदी का जिक्र करते हुए कहा कि वे 12 सालों तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. हालांकि बाद में उन्होंने अपने इस कथन को शराबबंदी से जोड़ दिया तो भी सुनने वालों के लिए उनका संदेश बहुत साफ था.

बदले में मोदी ने भी नीतीश की भरपूर तारीफ की. नीतीश कुमार ने प्रकाश पर्व में निजी दिलचस्पी ली. मोदी ने कहा कि इस दौरान नीतीश की संगठन और प्रशासनिक काबिलियत दिखी.

नीतीश की इसी काबिलियत के कारण प्रकाश पर्व में दुनिया भर से श्रृद्धालुओं का यहां आना सहज हो पाया.

कुछ तो बात है

दोनों की एक-दूजे की सराहना में आपसदारी थी. नहीं जान पड़ रहा था कि यह रस्म-अदायगी भर है. मोदी ने नीतीश का जिक्र एक बार फिर किया कि 'देश को आगे बढ़ाने में बिहार बहुत बड़ा काम करेगा.'

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इस कार्यक्रम में पंजाब के मुख्यमंत्री और अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल की मौजूदगी भी इस मौके का सियासी महत्व बढ़ाते हैं. राजनीतिक समझ कहती है कि उनके बिना यह आयोजन कभी पूरा नहीं माना जाता. बादल भारतीय राजनीति के एक बड़े नेता हैं. एनडीए में हमेशा से उनकी एक खास जगह रही है. अकाली के साथ जेडीयू और शिवसेना ही बीजेपी के मूल सहयोगी रहे हैं.

आखिरी बार किसी सार्वजनिक मंच पर नीतीश और मोदी बादल की ही रैली में नजर आए थे. यह रैली 2009 में जालंधर में हुई थी. इस रैली में मोदी-नीतीश दोस्त की तरह हाथ मिलाते, हंसते-मुस्कुराते नजर आए थे.

इस रैली की तस्वीर एक साल बाद पटना के दैनिक अखबारों में दोबारा छा गई थी. तब नीतीश के मन में मोदी के लिए घृणा की हद तक नफरत सामने आई थी. मोदी बीजेपी कार्यकारिणी में भाग लेने पटना आने वाले थे. बहरहाल, यह कहानी तो सबको मालूम ही है.

2010 में बिहार में आई बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच करोड़ रुपए का चेक भेजा था. इस सहायता राशि को नीतीश ने लौटा दिया था.

मोदी और नीतीश के रिश्तों में लौटी मिठास अगस्त 2016 में भी नजर आई थी. तब नीतीश बिहार बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए विशेष पैकेज मांगने दिल्ली गए थे. वहां मोदी से उन्होंने मुलाकात की और नमामि गंगे प्रोजेक्ट की जमकर तारीफ भी की.

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तो क्या प्रकाश पर्व में बादल की मौजूदगी मोदी-नीतीश के रिश्तों को और गहरा कर पाएगी? ऐसा रिश्ता जो पहले से कहीं ज्यादा मजबूत और सार्थक संबंध बन पाए. आखिरकार नीतीश के पास अपने मौजूदा साथियों आरजेडी और कांग्रेस से असहज होने के पर्याप्त कारण भी तो हैं.