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लालू यादव की 5 गलती: क्यों नीतीश कुमार को नहीं समझ पाए?

लालू यादव की नियति क्या होगी, यह थोड़ा ठहरकर देखने वाली बात है.

Debobrat Ghose

दिन ढले चलने वाला वह सियासा ड्रामा अपनी नाटकीयता में नजर को बांध लेने वाले किसी टेलीविजनी धारावाहिक से कम ना था. बुधवार की शाम लालू यादव ने 20 माह पुराने गठबंधन के अपने साथी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हत्या का आरोप मढ़ा जबकि नीतीश कुमार ने लालू यादव को अचंभित करते हुए एक आश्चर्यजनक फैसले लिया और राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा.

इस्तीफा देकर नीतीश कुमार ने उस महागठबंधन की ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी जो बिहार में 2015 के विधानसभा चुनावों के बाद दो नावों पर पैर रखकर सत्ता की सवारी कर रहा था.


नीतीश कुमार पर कीचड़ उछालने और अपने बेटे को भ्रष्टाचार के आरोपों से बचाने की बेचैनी में लालू यादव ने कहा, 'भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 307 के तहत नीतीश कुमार 1991 से ही हत्या के मामले में आरोपी हैं. इस आरोप में उन्हें फांसी या फिर उम्रकैद की सजा हो सकती है. हम इसके बारे में जानते थे. नीतीश कुमार पर लगा आरोप तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप से कहीं ज्यादा बड़ा और संगीन है.'

लालू-तेजस्वी के भ्रष्टाचार के आरोप थे नीतीश के गले की फांस

बहरहाल, सच्चाई यह है कि बेदाग छवि वाले बिहार के मुख्यमंत्री राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. वे इंतजार में थे कि कब सही मौका मिले और वे लालू यादव और उनके कुनबे से अपना पिण्ड छुड़ा लें.

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हो सकता है, बिहार विधानसभा के चुनावों के दौरान आरजेडी और कांग्रेस से हाथ मिलाना नीतीश कुमार की एक मजबूरी रही हो क्योंकि जेडीयू अकेले अपने दम पर वैसी कामयाबी हासिल नहीं कर पाती कि खुद की सरकार बना ले. लेकिन इसके बाद लालू यादव ने शासन में हस्तक्षेप करना शुरु किया, उनके और उनके बेटे उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप सामने आये और ये दोनों बातें नीतीश कुमार के गले की जैसे फांस बन गईं.

नीतीश कुमार का नाम उन गिने-चुने नेताओं में शुमार किया जाता है जो सियासी जोखिम उठाने का माद्दा रखते हैं. उन्होंने हाथ आये मौके को लपका और पद से इस्तीफा दे दिया.

लालू ने ये सोचा भी नहीं होगा

चाहे लालू इस बात को ना मानें लेकिन उन्होंने सपने में भी ना सोचा होगा कि नीतीश कुमार सरकार से इस्तीफा दे देंगे और दरअसल लालू से चूक इसी मुकाम पर हुई.

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नीतीश कुमार के इस्तीफे के तुरंत बाद फर्स्टपोस्ट से इंडिया टुडे (हिन्दी) के पूर्व संपादक जगदीश उपासने ने कहा कि 'नीतीश कुमार देश के उन चंद नेताओं में से एक हैं जिनकी छवि साफ-सुथरी है, जो इतने साहसी हैं कि सियासी जोखिम उठा सकें. नीतीश ने पहले भी ऐसा किया है. जेडीयू एक क्षेत्रीय पार्टी है, एक सूबे बिहार तक ही उसका दायरा है. इसके बावजूद अगर उसे देश भर में लोग पहचानते तो हैं तो इसलिए कि नीतीश कुमार की छवि बेदाग और गलती ना बर्दाश्त करने वाले नेता की है. पीएम मोदी की तरह नीतीश कुमार भी भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, उन्होंने नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राईक सरीखे नरेंद्र मोदी के कदमों का समर्थन किया था. इन बातों को ध्यान में रखते हुए इस बात की पूरी संभावना बनती है कि बीजेपी नीतीश को बाहर से समर्थन दे.'

लालू यादब अब भी कोशिश में थे कि नीतीश कुमार को परे रखते हुए किसी तरह महागठबंधन को बचा लिया जाए लेकिन वे जिस खेल के माहिर हैं आखिरकार उसी खेल में मात खा गये.

मुकाबला इस बात का चल रहा था कि दोनों में ज्यादा चतुर नेता कौन है. तो क्या इस मुकाबले में नीतीश कुमार ने लालू यादव को पटखनी दे दी है ? आखिर लालू यादव से क्या चूक हुई जो उन्हें वह दिन देखना पड़ा जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी ना था?

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ये पांच गलतियां हुईं लालू से

नीतीश कुमार को तौलने में लालू यादव से पांच गलतियां हुईं--

1. लालू यादव कभी यह अनुमान नहीं लगा पाये कि नीतीश कुमार अपनी सरकार से इस्तीफा भी दे सकते हैं. लालू ने मान रखा था कि नीतीश महागठबंधन से दामन छुड़ाने की हिम्मत नहीं कर पायेंगे क्योंकि आरजेडी और कांग्रेस के समर्थन के बिना जेडीयू के लिए चुनाव में बहुमत जुटाना संभव नहीं.

2. लालू यादव की सोच में था कि नीतीश कुमार सियासत का सेक्युलर खेमा नहीं छोड़ेंगे क्योंकि देश की राजनीति में उन्हें भाजपा-विहीन सेक्युलर खेमा का नेता माना जाता है और नीतीश कुमार की एक महत्वाकांक्षा राष्ट्रीय स्तर का नेता बनकर उभरने की है.

3. अगर नीतीश सेक्युलर खेमा छोड़ते भी हैं तो इस सूरत में उन्हें यादव और मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन खोना पड़ेगा जबकि लालू यादव को इन दोनों तबकों का समर्थन हासिल है.

4. नीतीश कुमार लालू यादव और आरजेडी के समर्थन के बिना सरकार चलाने में समर्थ नहीं होंगे.

5. चूंकि नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले के सामने आने पर भी उनके खिलाफ कुछ नहीं कहा था इसलिए लालू यादव ने सोचा कि बेटे तेजस्वी यादव ने अपनी तरफ से सफाई पेश कर दी तो सबकुछ एकबारगी सुलझ जायेगा. यह सोच उलटी पड़ गई.

नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद लालू यादव ने कहा कि नीतीश ने तो बीते वक्त में यह कहा था कि 'मिट्टी में मिल जायेंगे, बीजेपी से हाथ नहीं मिलायेंगे, संघ-मुक्त भारत बनायेंगे, सो वे अगर बीजेपी से हाथ मिलाते हैं तो मुंह की खायेंगे.'

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लेकिन सोच के इस मुकाम पर लालू यादव गलती कर गये, वे सामने नजर आ रही इबारत को पढ़ने में नाकाम रहे. लालू यादव को समझ लेना चाहिए था कि नीतीश कुमार ने बतौर मुख्यमंत्री अपने पहले कार्यकाल में गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार और असामाजिक तत्वों के खिलाफ अपनी मंशा का साफ-साफ इजहार किया था. लालू-राबड़ी के राज में बिहार जिस दुर्दशा में पहुंचा था, वक्त बीतने के साथ उस स्थिति में सुधार आया है.

नीतीश कुमार मौके की तलाश में थे

जगदीश उपासने बताते हैं कि 'नीतीश कुमार शुरुआत से ही अपनी छवि को लेकर बहुत सचेत रहे हैं. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का एक भी मामला नहीं है जबकि लालू यादव और उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले हैं. इसलिए दोनों का रास्ता अलग होना ही था, नीतीश कुमार लालू यादव से पिण्ड छुड़ाने का सही मौका तलाश रहे थे.'

राजनीति विज्ञानी प्रो. एमडी नलपत का कहना है कि 'बीजेपी 2019 के चुनावों को नजर में रखते हुए नीतीश कुमार का समर्थन कर रही है. महागठबंधन की यह टूट बीजेपी के लिए फायदेमंद होगी. बिहार में महागठबंधन के टूटने का असर यूपी की सियासत पर भी नजर आएगा. नजर आएगा कि इस किस्म का गठबंधन (जिसकी जड़ें जनता दल में हैं) ज्यादा दिन तक नहीं टिकने वाले.'

फिलहाल बिहार का सियासी ड्रामा संवैधानिक रंगमंच पर जा चढ़ा है और इस रंगमंच पर नये सिरे से बनी साझेदारी नयी सरकार बना रही है. ऐसे में लालू यादव की नियति क्या होगी, यह थोड़ा ठहरकर देखने वाली बात है.