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नीतीश का आरक्षण दांव विरोधियों को पटखनी देने की कोशिश है ?

नीतीश कुमार ने निजी क्षेत्रों में आरक्षण का दांव खेलकर अपने विरोधियों को बैकफुट पर लाने की कोशिश की है

Amitesh

बिहार सरकार ने सरकारी नौकरियों में आउटसोर्सिंग में आरक्षण देने के फैसले को मंजूरी दे दी, जिसके बाद आरक्षण पर नए सिरे से बहस तेज हो गई. यहां तक कि नीतीश ने एक कदम आगे बढ़कर प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की वकालत भी कर दी है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस कदम को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि आखिर नीतीश कुमार के इस कदम के पीछे की मंशा क्या थी? क्योंकि इस फैसले को लेकर नीतीश सरकार में सहयोगी बीजेपी के भीतर भी अंतरविरोध देखने को मिला.


उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने नीतीश के सुर में सुर मिलाया लेकिन, राज्यसभा सांसद सीपी ठाकुर ने इस फैसले पर सवाल खड़ा कर दिया. सीपी ठाकुर ने कहा था कि आउटसोर्सिंग में रिजर्वेशन का मैं इसलिए विरोध कर रहा हूं क्योंकि अभी इसकी कोई जरूरत नहीं है. पहले से जो आरक्षण चला आ रहा है उसे ही ठीक से लागू करना चाहिए. उनका मानना था कि सरकार को पिछड़े वर्ग के छात्रों की पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.

सुशील कुमार मोदी (फाइल फोटो)

हालांकि बीजेपी के अलावा एनडीए के बाकी दलों ने भी इसे सीपी ठाकुर का निजी बयान बताकर उससे पल्ला झाड़ लिया. फिर भी आरक्षण पर बहस तेज हो गई. चर्चा के केंद्र में आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर आ गया. शायद नीतीश कुमार यही चाह रहे थे.

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दरअसल,नीतीश की पार्टी में भी नीतीश के आरक्षण को लेकर रुख पर कुछ लोग सवाल खड़े करने लगे थे. जेडीयू के भीतर हाशिए पर चल रहे दो दलित नेताओं ने अभी हाल ही में नीतीश को घेरने की कोशिश की थी. जेडीयू महासचिव श्याम रजक और बिहार विधानसभा के पूर्व स्पीकर उदयनारायण चौधरी ने वंचित वर्ग मोर्चा की तरफ से किए गए एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए थे.

इनकी तरफ से तैयारी हो रही थी कि दलित और वंचित तबके को न्याय दिलाने की मांग को लेकर फिर से जिला और प्रखंड स्तर पर मुहिम चलाने की. इस पूरी कवायद के पीछे दलितों के बड़े नेता के तौर पर अपने आप को उभारने की ही कोशिश थी. लेकिन, अगर ऐसा होगा तो फिर नीतीश कुमार को ही नुकसान उठाना पड़ता.

दूसरी तरफ, नीतीश कुमार से खार खाए बैठे लालू यादव को भी इसी बहाने मौका मिल गया. लालू को लगा कि आरक्षण के मुद्दे पर नीतीश को फिर से घेरा जा सकता है. लिहाजा लालू यादव ने भी आरक्षण के बहाने नीतीश पर हमला करना शुरू कर दिया था.

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लेकिन, नीतीश कुमार ने आउटसोर्सिंग में आरक्षण के मुद्दे के सहारे एक बार फिर से अपने विरोधियों की धार को कुंद कर दिया. नीतीश ने प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की बात उठाकर इस मुद्दे पर लालू समेत सभी विरोधियों को अपनी सुर में सुर मिलाने पर मजबूर कर दिया. ऐसा कर नीतीश कुमार भी एक तीर से कई निशाने करना चाह रहे हैं.

दरअसल, नीतीश कुमार की कोशिश अपने वोट बैंक को भी मजबूत करने की है. लालू यादव के साथ जाने के पहले नीतीश कुमार पिछड़े वर्ग के साथ-साथ अति पिछड़े वर्ग और दलित-महादलित तबके के मसीहा थे. अब लालू से अलग होने के बाद नीतीश कुमार फिर से अपने पुराने सामाजिक समीकरण को साधने की कोशिश में हैं.

एनडीए में शामिल जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की तरफ से रह-रह कर ऐसे बयान आते रहते हैं जो उन्हें परेशान करते रहे हैं. इन दोनों नेताओं से संभावित खतरे को भांप कर ही नीतीश कुमार अब फिर से अपनी जड़ें मजबूत करने में लगे हुए हैं. क्योंकि सियासत के माहिर खिलाड़ी नीतीश को भी पता है. बिहार में विकास और सुशासन के साथ-साथ सोशल इंजीनियरिंग भी जीत की राह पर ले जाने का कारगर हथियार है.