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नीतीश के बाद जेडीयू का क्या होगा? ऐसी ही फिक्र ममता, मायावती और नवीन की भी है

ऐसी कई पार्टियां हैं, जिनके साथ ये समस्या है कि एक मुख्य चेहरे के अलावा पार्टी में कोई बड़ा नेता है ही नहीं. पार्टी से अगर उस एक मुख्य चेहरे को हटा दिया जाए तो पूरी पार्टी का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा

Vivek Anand

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक में एक अजीब बात कह दी. नीतीश ने वहां मौजूद लोगों से सवाल कर दिया, ‘अगर मैं मर जाऊं तो पार्टी का क्या होगा?’ उनके इस सवाल से बैठक में सन्नाटा पसर गया. लोगों को समझ नहीं आया कि नीतीश के मुंह से ऐसी बात क्यों निकल गई? अपने मरने की बात करके वो क्या कहना चाह रहे हैं?

बैठक के दौरान दो मौके ऐसे आए जब नीतीश कुमार ने बातों ही बातों में अपने मरने की बात कह दी. बाद में वहां मौजूद नेताओं ने ये बात मानी कि नीतीश कुमार ने इसके पहले ऐसी बातें कभी नहीं की थीं.


बैठक के बाद पार्टी की कुछ महिला नेताओं ने नीतीश कुमार से मुलाकात करके पूछा कि आखिर उनके मुंह से ऐसी बात क्यों निकली? वो क्यों अपने मरने की बातें कर रहे हैं? चिंतित महिला नेताओं ने उनसे गुजारिश की वो ऐसी बातें न किया करें. इस पर नीतीश कुमार ने कहा कि कौन जानता है कि आगे क्या होने वाला है. हालांकि उन्होंने माना कि उनके मुंह से ऐसी बातें यूं ही निकल गई थी. इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है.

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दरअसल नीतीश कुमार बिहार के बदले राजनीतिक माहौल और बिहार में शराबबंदी के अपने फैसले के बारे में बोल रहे थे. नीतीश कुमार बोले, 'जब तक मैं जिंदा हूं, बिहार में पूर्ण शराबबंदी के फैसले को वापस नहीं लिया जा सकता. अगर किसी को मेरे इस फैसले से आपत्ति है तो वो मुझे मार सकते हैं. उन्हें मुझे मार लेने दो. लेकिन मैं अपने फैसले से पलटने वाला नहीं हूं.’

कई बार भावुकता में सच्ची बात भी कह जाते हैं राजनेता

ये बड़ी नॉर्मल सी बात है. अगर कोई राजनेता अपने किसी फैसले के प्रति प्रतिबद्धता दिखाना चाहता है तो ऐसी बातें मुंह से निकल जाती है. ऐसी ही बातें पिछले दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी बोलीं थी.

दुर्गा प्रतिमा विसर्जन और मुहर्रम के एक ही दिन पड़ने पर उन्होंने मूर्ति विसर्जन पर एक दिन की रोक लगा दी थी. लेकिन कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ आया. इस पर ममता बनर्जी ने बिफरते हुए कहा था, 'कोई मेरा गला काट सकता है, लेकिन मुझे यह नहीं बता सकता है कि क्या करना है और क्या नहीं करना है. शांति बनाए रखने के लिए मैं वह सब करूंगी जो भी मुझे करना चाहिए.' हालांकि ममता बनर्जी के इस बयान के बाद भी इस मुद्दे पर उनकी आलोचना कम नहीं हुई थी.

दरअसल ऐसे नेता भावुकता में ये बयान तो दे देते हैं कि उनके बाद पार्टी का क्या होगा. लेकिन ये भी एक सच्चाई ही है कि ऐसी कई पार्टियां हैं, जिनके साथ ये समस्या है कि एक मुख्य चेहरे के अलावा पार्टी में कोई बड़ा नेता है ही नहीं. पार्टी से अगर उस एक मुख्य चेहरे को हटा दिया जाए तो पूरी पार्टी का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा.

नीतीश की विरासत कौन संभालेगा?

नीतीश कुमार ने एक भावुकता भरे पल में भले ही ये कह दिया हो कि उनके बाद पार्टी का क्या होगा. लेकिन उनकी बात में ये कड़वी सच्चाई तो है ही कि जेडीयू में उनकी बराबरी का कोई दूसरा नेता नहीं है और उनके बगैर पूरी पार्टी ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगी.

हालांकि जेडीयू के समर्थकों को चिंता नहीं करनी चाहिए. 66 साल के नीतीश कुमार पूरी तरह से फिट हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए बिहार जेडीयू के अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा, ‘हमें अभी कम से कम अगले 10 सालों तक इस बात की चिंता नहीं है कि उनकी जगह कौन लेगा. मुख्यमंत्री की कही बात को सही संदर्भ में लिया जाना चाहिए. दरअसल उन्होंने पार्टी के सभी नेताओं से यह आग्रह किया कि वे और सक्षम बनें और अपना काम ईमानदारी से करें, जिससे उन्हें और बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी जा सके.'

ये बात सही है कि नीतीश कुमार के रहते जेडीयू को नेतृत्व के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है. लेकिन सवाल है कि क्या ऐसा मानकर पार्टी के भविष्य के लीडरशिप के बारे में सोचना ही नहीं चाहिए? किसी न किसी मौके पर तो ये सवाल जरूर उठेगा कि नीतीश की राजनीतिक विरासत को कौन संभालेगा?

इस सवाल पर पार्टी में अचानक से खालीपन आ जाता है. जेडीयू में शरद यादव दूसरे बड़े चेहरे थे, जो अपना अलग खेमा बना चुके हैं. अगर नहीं भी बनाते तो भी नीतीश की विरासत संभालने की बात उनके लिए अटपटी होती. इसलिए जेडीयू में 'नीतीश के बाद कौन' का सवाल अधूरा ही रह जाता है.

ये सवाल इसलिए भी अहम हो जाता है कि तमिलनाडु में ऐसे ही सवाल के हकीकत बन जाने पर एआईएडीएमके का हश्र हम देख चुके हैं. जयललिता के निधन के बाद पार्टी जिस मुश्किल परिस्थिति से गुजर रही है, वो आज तक बरकरार है. ऐसी स्थिति किसी भी ऐसी पार्टी के साथ आ सकती है, जहां पर नेतृत्व का सवाल एक ही चेहरे के इर्द गिर्द आकर अटक जाता है.

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तृणमूल कांग्रेस में ममता के बाद कौन?

टीएमसी के साथ भी यही हालात है. ममता बनर्जी के बाद पार्टी की बागडोर किसके हाथ होगी, ये सवाल भी कुछ वैसा ही है. 61 साल की ममता बनर्जी अपनेआप को गैरबीजेपी दलों के बड़े चेहरे के तौर पर तैयार कर रही हैं. लेकिन पार्टी में उनके बाद की जगह खाली ही है.

टीएमसी के संस्थापक सदस्यों में से एक मुकुल रॉय ने हाल ही में पहले पार्टी छोड़ी फिर उन्हें पार्टी ने छोड़ दिया. एक वक्त में ममता बनर्जी का दाहिना हाथ माने जाने वाले मुकुल रॉय के बीजेपी ज्वाइन करने की भी चर्चा है.

टीएमसी में ममता बनर्जी के उत्तराधिकारी के तौर पर एक बार उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी का नाम सामने आया था. 2011 में पार्टी के युवा मोर्चा की कमान देकर ममता ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार करना शुरू किया था. 2014 में वो नॉर्थ चौबीस परगना से टीएमसी के सांसद भी चुने गए. लेकिन 29 साल के अभिषेक बनर्जी को राजनीति में ऊंचा कद पाने के लिए अभी और इंतजार करना पड़ेगा. फिलहाल टीएमसी में ममता के बाद कोई नहीं है.

मायावती के बाद 'बहुजन' का भला कौन करेगा?

बहुजन समाज पार्टी में मायावती के बाद कौन? इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं मिलता. 2008 में एक बार उन्होंने पार्टी में अपने उत्तराधिकारी को लेकर थोड़ी चर्चा जरूर की थी. उस वक्त उन्होंने अपनी हत्या की साजिश रचे जाने की बात कहके राजनीतिक सनसनी मचा दी थी.

पार्टी में उनके करीब दूसरा कोई नेता नहीं है. पिछले दिनों यूपी चुनावों में करारी हार के बाद उन्होंने पार्टी में अपने भाई आनंद कुमार को आगे जरूर बढ़ाया है. अप्रैल में उन्होंने अपने भाई को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने ये भी ऐलान कर दिया कि वो विधायक या सांसद नहीं बनेंगे.

पिछले दिनों एक रैली में मायावती ने आनंद कुमार के बेटे और अपने भतीजे आकाश को भी जनता के सामने भविष्य के नेता के तौर पर खड़ा किया. मायावती की इन कोशिशों से लग रहा है कि एक समय में अपने सबसे भरोसेमंद नेता रहे सतीश चंद्र मिश्रा को छोड़कर वो अपनी राजनीतिक विरासत परिवार में बांटने की कोशिश में लग गई हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू सिंह कुशवाहा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे पार्टी के बड़े चेहरों से धोखा पाने या धोखा देने के बाद वो अपने परिवार के सदस्यों पर ही भरोसा कर रही हैं. लेकिन बीएसपी में उनके सामने किसी और को खड़ा करने में अब भी लंबा वक्त लगेगा.

नवीन पटनायक के बाद कौन संभालेगा B.J.D की कुर्सी?

ओडिशा में नवीन पटनायक 2000 से 2014 तक लगातार चार बार विधानसभा में अपनी पार्टी को जीत दिला चुके हैं. लेकिन उनके बाद बीजू जनता दल की राजनीतिक विरासत को कौन संभालेगा इस बारे में अब तक कुछ साफ नहीं है.

एक साल पहले उनकी खराब सेहत की बात पर उनके उत्तराधिकारी को लेकर खूब चर्चा चली थी. 2014 में भी उठी एक ऐसी ही चर्चा के बाद उनके भतीजे अरुण पटनायक का नाम उठा था. कहा गया था कि बीजेडी की राजनीतिक विरासत उनके कंधे ही आएगी. लेकिन 2015 में उन्होंने राजनीति में उतरने से इनकार कर दिया.

बिहार में लालू यादव अपनी राजनीतिक विरासत अपने दो बेटों को देकर निंश्चित हैं. हालांकि इस बंटवारे की एक हस्सेदार मीसा भारती भी हैं. नीतीश की जेडीयू में विरासत का सवाल अब तक पैदा नहीं हुआ है. नीतीश कुमार राजनीति के हल्के-फुल्के पलों में अपने बाद पार्टी के भविष्य को लेकर फिक्रमंद हुए हैं. लेकिन इस बात पर सच में गंभीरता से सोचने की जरूरत है.