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कैबिनेट फेरबदल: क्या बाहरी लोगों को मंत्री पद देने से संगठन में असंतोष पनप सकता है?

इस फेरबदल की दिलचस्प बात ये है कि, कैबिनेट विस्तार में मंत्री पद गंवाने वाले छह मंत्रियों, कलराज मिश्रा, राजीव प्रताप रूडी, बंडारू दत्तात्रेय, फग्गन सिंह कुलस्ते, संजीव बलियान और महेंद्र पांडे, में से कोई भी नौकरशाह या टेक्नोक्रेट नहीं था

Sanjay Singh

मोदी कैबिनेट का हिस्सा बनकर राष्ट्रपति भवन में शपथ लेने वाले नौ नए मंत्रियों में चार रिटायर्ड नौकरशाह भी शामिल हैं. खास बात ये है कि मंत्री बने इन रिटायर्ड नौकरशाहों में से दो लोग अभी सांसद भी नहीं हैं. फिलहाल इन सभी नौ नए मंत्रियों पर अच्छे 'प्रदर्शन का भारी दबाव होगा, ताकि सरकार की नीतियों और योजनाओं को मंजिल तक पहुंचाया जा सके. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने नए मंत्रियों के तौर पर जिस तरह के लोगों का चयन किया है, उससे कहीं न कहीं ये संदेश भी जा रहा है कि, बीजेपी की ब्रिगेड में प्रतिभा की कमी है.

दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से राजकुमार सिंह और अल्फोंस कन्ननथानम जैसे पूर्व आईएएस, हरदीप सिंह पुरी जैसे पूर्व आईएफएस और सत्यपाल सिंह जैसे पूर्व आईपीएस की क्षमताओं पर हद से ज्यादा विश्वास जताया है, उससे इस बात को भी बल मिल रहा है कि मोदी को अपनी पार्टी के युवा नेताओं की क्षमताओं और प्रतिभा पर ज्यादा विश्वास नहीं है. इससे पार्टी नेताओं के एक वर्ग के बीच असंतोष पनप सकता है.


लेकिन पार्टी की मौजूदा संरचना में असंतोष के सुर ज्यादा बुलंद हो पाएंगे ऐसी संभावना कम ही है. क्योंकि फिलहाल सत्ता, शक्ति और सारे अधिकारों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का प्रभुत्व है. चुनावों में एक के बाद एक मिल रही कामयाबियों का श्रेय भी सिर्फ मोदी और शाह के खाते में जा रहा है. ऐसे में असंतुष्ट खेमा अपनी शिकायतों को खुलकर सबके सामने रखने से परहेज ही करेगा.

बागी माने जाने वाले भी बने मंत्री

अब जरा निम्नलिखित बातों पर गौर करें - पूर्व केंद्रीय गृह सचिव राजकुमार सिंह 2014 के संसदीय चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे और बाद में आरा सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के कुछ नेताओं से खफा होकर वो बागी बन गए थे.

उन्होंने चुनौती देते हुए कहा था कि अगर उनके बयान और गतिविधियां पार्टी विरोधी हैं और अगर उन्होंने पार्टी का अनुशासन तोड़ा है तो, पार्टी नेतृत्व उन्हें निष्कासित करने की हिम्मत दिखाए. उस वक्त ज्यादातर लोगों ने उनका सियासी करियर खत्म होने की भविष्यवाणी तक कर दी थी. लेकिन राजकुमार सिंह ने सबको गलत साबित कर दिया. उन्होंने जबरदस्त तरीके से वापसी करते हुए मोदी सरकार में मंत्री पद हासिल किया.

हरदीप सिंह पुरी और अल्फोंस कन्ननथानम संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. ऐसे में पार्टी नेतृत्व पर दोनों को छह महीने की अनिवार्य समय खत्म होने से पहले राज्यसभा में पहुंचाने की जिम्मेदारी है. एक राजनयिक के रूप में पुरी का रिकॉर्ड जबरदस्त रहा है. वो अजित डोवाल के विवेकानंद फाउंडेशन से भी जुड़े रहे हैं. छात्र जीवन से ही पुरी पर बीजेपी (तत्कालीन जनसंघ) के विचारों और नीतियों का प्रभाव रहा है, लेकिन मोदी कैबिनेट के तीसरे और संभवत: आखिरी विस्तार में उनकी एंट्री की अलग ही कहानी है.

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पुरी जहां सिख समुदाय से हैं, वहीं अल्फोंस केरल के ईसाई हैं. दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के उपाध्यक्ष के रूप में अल्फोंस ने राष्ट्रीय राजधानी में खूब नाम कमाया था. उस वक्त उन्हें "डेमोलिशन मैन" कहकर पुकारा जाता था. बीजेपी और मोदी सरकार में उनकी एंट्री केरल के ईसाई समुदाय को लुभाने के उद्देश्य से की गई है. इसके अलावा बीजेपी नेतृत्व अल्फोंस को केरल में पार्टी के चेहरे के तौर पर भी पेश करना चाहता है.

मुंबई के पुलिस कमिश्नर रह चुके सत्यपाल सिंह ने 2014 के संसदीय चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थामा था. बागपत सीट पर आरएलडी प्रमुख अजित सिंह को करारी शिकस्त देकर वो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय नया चेहरा बनकर उभरे. सत्यपाल को एक दूसरे जाट नेता संजीव बालियान की जगह मंत्री बनाया गया है.

मंत्री पद के लिए नए लोगों के चयन के पीछे पीएम मोदी का 4 P फॉर्मूला माना जा रहा है. फर्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने 4 P फॉर्मूला और उसकी ताकत समझाई. उन्होंने बताया कि, "4 P यानी पैशन (जुनून), प्रोफीसिएंसी (दक्षता), प्रोफेशनल अक्यूमन (व्यावसायिक कौशल) और पोलिटिकल प्रोग्रेस (राजनीतिक विकास)." लेकिन अब सवाल ये उठता है कि मंत्री पद के लिए जिन लोगों का चयन नहीं हुआ है, उनमें क्या 4 P वाली योग्यताएं नहीं हैं.?

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दिलचस्प बात ये है कि, कैबिनेट के फेरबदल में मंत्री पद गंवाने वाले छह मंत्रियों, कलराज मिश्रा, राजीव प्रताप रूडी, बंडारू दत्तात्रेय, फग्गन सिंह कुलस्ते, संजीव बलियान और महेंद्र पांडे, में से कोई भी नौकरशाह या टेक्नोक्रेट नहीं था. इन सभी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत बीजेपी और संघ परिवार से की थी. पीएम मोदी हालांकि बतौर रेल मंत्री सुरेश प्रभु के प्रदर्शन से भी नाखुश थे, लेकिन उन्हें मंत्रिमंडल से नहीं हटाया. चार्टर्ड एकाउंटेंट की पढ़ाई कर चुके सुरेश प्रभु का तबादला अब दूसरे मंत्रालय में कर दिया गया है.

एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, “पीएम मोदी अपनी कैबिनेट के लिए मंत्रियों का चुनाव उनके पिछले प्रदर्शन और उनमें भविष्य की क्षमताएं देखकर करते हैं. प्रधानमंत्री ने अपने ट्रैक रिकॉर्ड को जारी रखते हुए इस बार भी मंत्रियों का चुनाव उनके प्रदर्शन और योग्यताओं को देखकर किया है, ताकि न्यू इंडिया के विजन को साकार किया जा सके. मोदी की तमन्ना है कि न्यू इंडिया की नींव विकास और सुशासन पर रखी जाए. समाज के ग़रीब, शोषित, पीड़ित और वंचित वर्गों पर ध्यान केंद्रित किया जाए. नए मंत्रियों को रणनीति के तहत खास मंत्रालयों में नियुक्त किया गया है, ताकि हर दलित और दमित व्यक्ति तक विकास की बयार पहुंंच सके. तकरीबन सभी नए मंत्री समाज के अलग-अलग क्षेत्रों से संबंध रखते हैं, और जबरदस्त पेशेवर क्षमताओं और दक्षताओं से लैस हैं. इनमें से कुछ मंत्रियों के पास लंबा और समृद्ध प्रशासनिक अनुभव भी है, जिसका फायदा यकीनन सरकार को होगा.”

ऊंची डिग्रियां और अनुभव रखते हैं सारे मंत्री

सभी नौ नए मंत्रियों के साथ सबसे अच्छी बात ये हैं कि उनके पास अच्छी शैक्षिक योग्यता है, और वो कई वर्षों तक जमीनी स्तर पर काम कर चुके हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्र प्रभार वाले जिन चार राज्यमंत्रियों को तरक्की देकर कैबिनेट मंत्री बनाया है, उनमें पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमन सबसे ज्यादा काबिल और पेशेवर हैं. जबकि बाकी दो नए कैबिनेट मंत्रियों धर्मेंद्र प्रधान और मुख्तार अब्बास नकवी जमीनी स्तर की राजनीति करके इस मुकाम तक पहुंचे हैं. इसमें जरा भी संदेह नहीं कि, कैबिनेट में जगह बनाने वाले मंत्रियों की तरक्की में  संबंधित मंत्रालयों और संगठनात्मक कार्यों में उनके प्रदर्शन का सबसे बड़ा रोल रहा.

धर्मेंद्र प्रधान ने पेट्रोलियम मंत्री रहते हुए उज्ज्वला और अन्य योजनाओं के जरिए खूब शोहरत बटोरी. लेकिन धर्मेंद्र प्रधान को कैबिनेट मंत्री बनाए जाने की कई वजहों में एक वजह ये भी है कि बीजेपी उन्हें ओडिशा में मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाना चाहती है. ताकि 2004 से लगातार मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर कब्जा जमाए बैठे नवीन पटनायक को कड़ी चुनौती दी जा सके. कैबिनेट मंत्री के तौर पर धर्मेंद्र प्रधान की तरक्की की वजह दरअसल बीजेपी की ओडिशा में विस्तारवादी योजना ही है.

वेंकैया नायडू के सक्रिय राजनीति से निकलकर उपराष्ट्रपति बनने के बाद, अब निर्मला सीतारमन में दक्षिण भारत (कर्नाटक के अलावा) में बीजेपी का चेहरे बनने का माद्दा है. निर्मला सीतारमन तमिलनाडु की रहने वाली हैं. वो प्रधानमंत्री मोदी, वित्त मंत्री अरुण जेटली और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की विश्वासपात्र भी हैं. इसके अलावा निर्मला पार्टी की मुखर प्रवक्ता भी रह चुकी हैं. साथ ही गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए अरुण जेटली की टीम में उन्हें सह-प्रभारी की जिम्मेदारी भी मिली हुई है.

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पीयूष गोयल ने ऊर्जा, कोयला और खनन मंत्रालय में अपने जबरदस्त कामकाज के माध्यम से मोदी और शाह को प्रभावित किया. इसके अलावा संगठनात्मक कार्यों में भी गोयल ने अच्छा प्रदर्शन किया. जिसके इनाम के तौर पर उनकी तरक्की हुई और उन्हें कैबिनेट में जगह मिली. ऐसी संभावना है कि तरक्की पाकर कैबिनेट रैंक में पहुंचे गोयल को जल्द ही किसी और महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो की जिम्मेदारी भी मिल सकती है. इसके अलावा उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति में भी सक्रिय किया जा सकता है.

वहीं नकवी की तरक्की का मतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में अब एक मुस्लिम सदस्य का भी प्रतिनिधित्व होगा. नकवी अपनी अटल, अविरोधी और विवादों सेे दूर रहने वाली छवि के लिए जाने जाते हैं. उनके पास बतौर राज्यमंत्री संसदीय और अल्पसंख्यक मामलों का अच्छा अनुभव है.