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दिल्ली में जल्द बन सकती है नई कांग्रेस कमिटी, सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरणों पर होगा ध्यान

पार्टी सूत्रों का कहना है कि कुछ अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के साथ तीन या चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति हो सकती है ताकि समाज के प्रमुख वर्गों को प्रदेश संगठन में शीर्ष स्तर पर प्रतिनिधित्व मिल सके

Bhasha

कांग्रेस की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष अजय माकन के इस्तीफा देने के बाद अब नई प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जल्द गठित होने के आसार हैं जिसमें सामाजिक, राजनीतिक और क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखे जाने की संभावना है.

पार्टी सूत्रों का कहना है कि कुछ अन्य राज्यों की तरह दिल्ली में भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के साथ तीन या चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति हो सकती है ताकि समाज के प्रमुख वर्गों को प्रदेश संगठन में शीर्ष स्तर पर प्रतिनिधित्व मिल सके.


माकन के बाद दिल्ली पीसीसी के अध्यक्ष को लेकर जिन नामों को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं उनमें पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम प्रमुख है. उनके अलावा योगानंद शास्त्री, राजकुमार वर्मा, हारून यूसुफ और महाबल मिश्रा के नामों की भी चर्चा है.

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पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हाल के कुछ राज्यों में पीसीसी में अध्यक्ष के साथ तीन या चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए हैं ताकि समाज के सभी वर्गों को संगठन में प्रतिनिधित्व मिले. इस बात की प्रबल संभावना है कि दिल्ली पीसीसी का यही स्वरूप हो सकता है.’ इस बीच, ऐसी भी चर्चा है कि माकन को कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन में जगह दी जा सकती है और वह आगामी लोकसभा चुनाव भी लड़ सकते हैं.

लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किया जाएगा पीसीसी का गठन

करीब चार वर्ष तक दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष रहने के बाद उन्होंने पद छोड़ा है. वैसे, नए पीसीसी का गठन दिल्ली में मौजूदा राजनीतिक समीकरण और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर किया जाएगा.

लंबे समय से अटकलें हैं कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो सकता है. इस लिहाज से भी नई पीसीसी की भूमिका अहम हो सकती है. वैसे, प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष रहते हुए माकन ने आम आदमी पार्टी (आप) के साथ गठबंधन का खुलकर विरोध किया था.

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शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली में लगातार तीन बार सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस की स्थिति 2013 के विधानसभा चुनाव में काफी खराब हो गई जब वह मात्र आठ सीटों पर सिमट गई. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में वह दिल्ली में खाता भी नहीं खोल सकी.