दिल्ली में आप कांग्रेस के गठबंधन का रास्ता साफ हो गया है. दिल्ली कांग्रेस के मुखिया अजय माकन की विदाई का कारण यही माना जा रहा है. हालांकि, स्वास्थ्य का हवाला देकर इस्तीफा दिया गया है, जो औपचारिक कारण बताया गया है.
दिल्ली में आप के साथ गठबंधन के लिए कांग्रेस जमीनी तैयारी कर रही है. कांग्रेस दिल्ली के नेता आप के साथ बातचीत की खिलाफत कर रहे हैं, जिससे केंद्रीय नेतृत्व को परेशानी हो रही थी. अजय माकन आप के खिलाफत में सबसे आगे थे. इसलिए कांग्रेस ने कुछ दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से बयान दिलवाया कि आप के साथ अगर कांग्रेस गठबंधन करती है तो वो इसका समर्थन करती हैं.
रोड़ा बने थे अजय माकन
अजय माकन गठबंधन के खिलाफ सबसे मुखर थे. वो नहीं चाहते थे कि आपके साथ कांग्रेस गठबंधन करे बल्कि कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ने की पैरवी कर रहे थे. अजय माकन दलील दे रहे थे कि कार्यकर्ता यही चाहता है लेकिन अभी कांग्रेस की प्राथमिकता अलग है. कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बीजेपी को बेदखल करना चाहती है. अभी विधानसभा चुनाव में तकरीबन डेढ़ साल बाकी है, जिसकी रणनीति बाद में तय हो सकती है.
हालांकि, पिछले चार साल में अजय माकन दिल्ली में कांग्रेस को मजबूत नहीं कर पाए हैं. उनकी अगुवाई में दिल्ली में पार्टी नगर निगम में तीसरे नंबर पर पहुंच गई है. विधानसभा के चुनाव में वोट बढ़े लेकिन सीट का खाता नहीं खुल पाया है. यही नहीं अजय माकन पर खेमेबंदी का आरोप भी है. दिल्ली के नेताओं को साथ ले चल पाने में असफल साबित हुए हैं. हालांकि पार्टी माकन को केंद्र में एडजस्ट करने का संकेत दे रही है.
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दिल्ली से बनेगा माहौल
कांग्रेस को लग रहा है कि दिल्ली से पार्टी का माहौल बन सकता है. दिल्ली से बना माहौल कई राज्यों में असर कर सकता है. एक तो एसपी, बीएसपी और टीएमसी जैसे दलों पर दबाव बन सकता है, जो अभी कांग्रेस को बाईपास करने की कोशिश कर रहे हैं. इसके अलावा दिल्ली से एक मैसेज जनता के बीच जाएगा कि कांग्रेस की हिमायत में हवा चल रही है. कांग्रेस की धुर विरोधी आप भी पार्टी के साथ आ गई है. बीजेपी की दिल्ली में मुश्किल बढ़ाने के लिए ये गठबंधन जरूरी है.
दोनों की मजबूरी
दिल्ली में साथ चुनाव लड़ना दोनों दलो की मजबूरी है. अगर पिछला नगर निगम चुनाव पैमाना मान लिया जाए, तो साफ है कि बीजेपी का वोट नहीं खिसका है. कांग्रेस और आप के अलग लड़ने का फायदा बीजेपी को मिला है. लोकसभा में मोदी के नाम पर चुनाव होना है, जिसमें केजरीवाल को परेशानी हो सकती है. दिल्ली की सभी 7 सीट पर बीजेपी का कब्जा है. ऐसे में गठबंधन का रास्ता ही दोनों की लाज दिल्ली में बचा सकता है.
करप्शन पर केजरीवाल का साथ
कांग्रेस के ऊपर 2014 में बड़ा आंदोलन केजरीवाल की अगुवाई में हुआ था. अरविंद केजरीवाल ये साबित करने में से सफल रहे कि कांग्रेस करप्ट पार्टी है, जिसका राजनीतिक फायदा बीजेपी को मिला है. केजरीवाल का सर्टिफिकेट कांग्रेस के दामन में लगे दाग को धो सकता है, जो बीजेपी के करप्शन के आरोप को हल्का कर सकता है. प्रधानमंत्री ने करप्शन पर कांग्रेस को घेरा है. अगस्ता से लेकर नेशनल हेराल्ड का मुद्दा बार-बार उठा रहे हैं. राफेल के मसले पर विरोधी दलों में एकजुटता की कमी साफ दिखाई दे रही है. इस मसले पर अरविंद केजरीवाल की आवाज राहुल गांधी के आरोप का वज़न बढ़ा सकती है.
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क्या होगा फार्मूला?
दिल्ली में अभी 4-3 का फॉर्मूला सामने है. आप चार और कांग्रेस तीन सीट पर चुनाव लड़ सकती है. हालांकि, कांग्रेस दिल्ली में चार सीट पर लड़ना चाहती है, जिसमें पूर्वी दिल्ली से संदीप दीक्षित, नई दिल्ली से अजय माकन और पूर्वोत्तर से जेपी अग्रवाल, वहीं कपिल सिब्बल भी चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं. चांदनी चौक सीट और बाहरी दिल्ली की सीट पर तकरार बनी है. ऐसे में 3-4 का फॉर्मूला भी बन सकता है. बदले में हरियाणा में आप को दो सीट मिल सकती है, जो एक के बदले दो का कंपनसेशन हो सकता है.
आप से गठबंधन को राजी नहीं कई नेता
हरियाणा-पंजाब के नेता आप के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते हैं. लेकिन आलाकमान के आगे नतमस्तक हैं. पंजाब में आप के चार सांसद हैं, जिनमें दो बागी चल रहे हैं. ऐसे में आप को कांग्रेस के समर्थन की जरूरत है. आप के पंजाब में 13 उम्मीदवारों में से 7 पार्टी छोड़ चुके हैं. हालांकि, आप पंजाब में मुख्य विरोधी दल है. हरियाणा के प्रदेश के मुखिया अशोंक तंवर भी आप का विरोध अपने दायरे में कर चुके हैं.
जेडीएस और टीडीपी का दबाव
कांग्रेस के ऊपर कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी और टीडीपी के मुखिया चंद्रबाबू का दबाव है. आप को साथ लेकर चलने में कांग्रेस की मजबूरी ये भी है. वहीं केजरीवाल के रिश्ते ममता बनर्जी से अच्छे हैं. जिसकी वजह से ममता को कांग्रेस के नजदीक लाने में मदद मिल सकती है. केजरीवाल की पूरे देश में एक फैन फालोइंग है. हालांकि कांग्रेस को ये फालोवर्स समर्थन करेंगे ये बड़ा सवाल है.
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आप की वजह से कांग्रेस हारी
तीन राज्यों में हाल में हुए चुनाव में आप के कारण कांग्रेस बहुमत हासिल नहीं कर पाई है. राजस्थान और मध्य प्रदेश की कई सीट पर आप के उम्मीदवार कांग्रेस के हार की वजह बन गए. लोकसभा चुनाव में अलग लड़ने से कम मार्जिन वाली सीट कांग्रेस गंवा सकती है, जहां आप वोट कटवा की तरह चुनाव लड़ेगी.
केजरीवाल को फायदा
कांग्रेस के साथ जाने में अरविंद केजरीवाल को फायदा है. केजरीवाल की स्वीकार्यता पूरे देश में बढ़ेगी. केजरीवाल ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन में लगभग सभी नेता को चोर साबित करने का प्रयास किया था. इस वजह से ज्यादातर राजनीतिक दल अरविंद के विरोध में हैं. पहली बार चंद्रबाबू नायडू ने विरोधी दलों की बैठक में बुलाया था. दिल्ली में आप की सरकार की केंद्र से लड़ाई चल रही है. इस मुद्दे पर केजरीवाल को इन दलों का समर्थन मिल सकता है.
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