view all

राजौरी गार्डन नतीजों के साथ शुरू होती है 'आप' की उलटी गिनती

राजौरी गार्डन का संदेश है कि जनता की अदालत आप को सजा देना चाहती है.

Pramod Joshi

दिल्ली की राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव के परिणामों से आम आदमी पार्टी की उलटी गिनती शुरू हो गई है. एमसीडी के चुनाव में यही प्रवृत्ति जारी रही तो माना जाएगा कि ‘नई राजनीति’ का यह प्रयोग बहुत जल्दी मिट्टी में मिल गया.

उप-चुनावों के बाकी परिणाम एक तरफ और दिल्ली की राजौरी गार्डन सीट के परिणाम दूसरी तरफ हैं. जिस तरह से 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम नाटकीय थे उतने ही चौंकाने वाले परिणाम राजौरी गार्डन सीट के हैं.


आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया मानते हैं कि यह हार इसलिए हुई क्योंकि इस इलाके की जनता जरनैल सिंह के पार्टी छोड़कर जाने से नाराज थी. यानी पार्टी कहना चाहती है कि यह पूरी दिल्ली का मूड नहीं है केवल राजौरी गार्डन की जनता नाराज है.

इस सफाई के बाद भी इन परिणामों का सीधा असर एमसीडी के चुनावों पर पड़ेगा. एमसीडी के चुनाव का माहौल लोकसभा या विधानसभा के चुनावों जैसा बन चुका है.

आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी की हार से ज्यादा बड़ी बात इस पार्टी को मिले वोट हैं. जहां बीजेपी के प्रत्याशी मनजिंदर सिंह सिरसा को 50 फीसदी से ज्यादा और कांग्रेस की प्रत्याशी मीनाक्षी चंदेला को 35 फीसदी के आसपास वोट मिले हैं वहीं आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी हरजीत सिंह को करीब 12 फीसदी वोट ही मिल पाए हैं.

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने पार्टी की हार स्वीकर कर ली है

जरनैल सिंह का जाना 

सन 2015 में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी जरनैल सिंह को यहां 54,916 वोट मिले थे जो कुल पड़े वोटों का 46.55 फीसदी था. उनके मुकाबले बीजेपी के प्रत्याशी मनजिंदर सिंह सिरसा को 44,880 वोट मिले थे जो कुल वोटों का 38.04 फीसदी था और कांग्रेस की प्रत्याशी मीनाक्षी चंदेला को 12 फीसदी वोट मिले थे.

इस बार न केवल आम आदमी पार्टी की हार हुई है, बल्कि वोट पाने में वह तीसरे नम्बर पर पहुंच गई है जिस नंबर पर पिछली बार कांग्रेस पार्टी थी. इसका मतलब क्या यह निकाला जाए कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के अंत की शुरूआत हो गई है?

इस बारे में निश्चित रूप से कोई राय एमसीडी के चुनाव परिणाम आने के बाद ही बनानी होगी पर निश्चित रूप से यह पार्टी के लिए भारी धक्का है. संयोग से पार्टी ने ईवीएम को लेकर शिकायतों का जो सिलसिला शुरू कर दिया है वो भी इशारा कर रहा है कि पार्टी ने हार के बहाने तलाशने शुरू कर दिए हैं.

आम आदमी पार्टी को हाल में पंजाब और गोवा में पराजय का सामना करना पड़ा है. पंजाब में वह अपनी जीत को लेकर इतनी आश्वस्त थी कि अरविंद केजरीवाल ने शपथ ग्रहण समारोह और चुनावी वायदों को पूरा करने का तारीख-वार कार्यक्रम घोषित कर दिया था.

बहरहाल इस हार का पहला निष्कर्ष यही है कि पार्टी ने राजनीति में जिस शुचिता और ईमानदारी का दावा किया था वह हवा-हवाई हो चुका है.

ये चुनाव नतीजे आने वाले समय में पार्टी के भीतर केजरीवाल की पकड़ भी तय करेगी

ये भी पढ़ें: पार्टी का सिरदर्द बने बागी और निर्दलीय

आप की पोल खुली

यह पार्टी सत्ता के गलियारों में परम्परागत पार्टियों से भी ज्यादा खराब साबित हुई. उसका सारा जोर प्रचार और मीडिया के इस्तेमाल पर केंद्रित है. सबसे बड़ी कमजोरी है उसका आंतरिक लोकतंत्र जिसके कारण उसके कार्यकर्ता लगातार पार्टी छोड़ते रहते हैं.

पार्टी ने एमसीडी के चुनावों पर अपनी निगाहें गड़ा रखीं थीं, पर राजौरी गार्डन की हार और शुंगलू समिति की सिफारिशों का पुलिंदा खुलने से आम आदमी पार्टी के लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है.

पार्टी पर अब दो-तरफा मार है. एक तरफ बीजेपी और दूसरी तरफ कांग्रेस. शुंगलू रपट पिछले साल के अंत में दाखिल कर दी गई थी पर वह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं थी. दिल्ली कांग्रेस ने आरटीआई के मार्फत इसे हासिल करके सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करा दिया है.

शुंगलू समिति ने कुछ ऐसी बातों की तरफ इशारा किया है जिनसे ‘आप सरकार’ की नैतिकता मिट्टी में मिलती नजर आती है. पंजाब और गोवा में अपमानजनक हार के बाद उसके सिर पर दिल्ली में धूल चाटने का खतरा डोलने लगा है.

पार्टी केंद्र सरकार के साथ अधिकारों की कानून लड़ाई लड़ रही है. अधिकारों का फैसला सुप्रीम कोर्ट से होगा. फिलहाल राजौरी गार्डन का संदेश है कि जनता की अदालत उसे सजा देना चाहती है.