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एमसीडी चुनाव 2017: कापसहेड़ा के बिहारी मजदूरों को है 'पुरवईया' मनोज तिवारी का इंतजार

मनोज तिवारी की आवाज और चेहरा दोनों ही इस इलाके में जाना पहचाना है.

Pallavi Rebbapragada

दिल्ली का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, जहां से उड़कर हवाईजहाज दुनिया के हर कोने में पहुंच जाते हैं, उसी के अगल-बगल बसा कापसहेड़ा बॉर्डर सदियों से वहीं खड़ा है.

आज भी इसके पैर गरीबी और गंदगी की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं.


यह बॉर्डर है, इसके एक पार गुडगांव कि ऊंची-ऊंची इमारतें हैं और दूसरे पार अजनबियों के छोटे-बड़े घरों का भंडार द्वारका है. इसी बॉर्डर का एक गांव सोनिया गांधी कैंप-समालखा भी है. जब सड़क इस गांव की तरफ मुड़ती है तो टूटनी शुरू होती है और फिर थक कर खत्म ही हो जाती है.

अंदर हल्के भूरे रंग की मिटटी वाले रास्ते हैं जिनका साथ स्लेटी रंग के नाले खूब निभाते हैं. लगभग दो दशकों से, यह इलाका बिहार से दिल्ली आने वाले मजदूरों का घर बन रहा है. यहां करीब 1300 पक्के वोटर बिहारी हैं और 600 उत्तर प्रदेश से आये हुए प्रवासी हैं.

कापसहेड़ा में ज्यादातर प्रवासी बिहारी मजदूरों का समूह रहता है

मनोज तिवारी से उम्मीदें

कुछ दिन पहले, जब बीजेपी ने मनोज तिवारी को दिल्ली में अपना अध्यक्ष बनाया तो यहां के लोगों में उनसे मिलने कि उत्सुकता जागी. जल्द ही दिल्ली में एमसीडी के चुनाव लड़े जाएंगे.

इस गांव के प्रधान किशोरी यादव कहते हैं, 'फिलहाल तो यहां कोई नहीं आता. आम-आदमी पार्टी के कर्नल देविंदर सेहरावत यहां से 2015 में चुनाव जीते थे, वह भी हमसे नहीं मिलते. जब हममें से एक सौ पचास लोग मोटरसाइकिल लेकर उनसे मिलने गए तब भी नहीं मिले.'

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किशोरी यादव आगे कहते हैं, 'इस गांव का हाल बुरा है. यहां ढेरों लकड़ी के गोदाम हैं, जहां बाल मजदूरी एक आम सी बात है. सड़कों के किनारों पर गांजे का दम मारते हुए लोग भी उतने ही आम हैं. अगर कोई नालियों में से निकलते मच्छरों की वजह से बीमार पड़ जाए तो पास में केवल एक प्राइवेट अस्पताल है जहां एक सुई लगाने के 1000 से 1500 रुपए खर्च हो जाते हैं.'

गांव के प्रधान यादव जी समझाते हुए कहते हैं, 'पानी की मोटर शमशान घाट में है. लगभग 3000 झुग्गियों का कनेक्शन भी शमशान की लाइन से जुड़ा हुआ है. 'हर साल डेंगी और मलेरिया से लोग मरने की कगार पर आ जाते हैं. अगर इधर एमसीडी के  टैंकर का साफ पानी पहुंच पाए तो कई लोग एक साथ स्वस्थ हो जाएंगे.

यादव जी इस बात पर भी जोर डालते हैं कि, वह साथ-साथ इस बात पर भी रौशनी डालते हैं कि यह जमीन पहले संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर के लिए नियुक्त की गयी थी, मगर वह उत्तरी दिल्ली के समयपुर बादली में बनवाया गया. खाली जमीन को गांव के लोगों और धीरे-धीरे प्रवासियों ने अपना बना लिया.

इस इलाके में रहने वाले ज्यादातर लोग नशे का शिकार हैं

आप-कांग्रेस ने दिया धोखा

किशोरी यादव के मुताबिक, 'आज ये लोग इस जमीन को अपना मानते हैं और कोर्ट में इसी बात पर केस भी चल रहा है. हमें किराया समय से नहीं मिलता और आये दिन इसी बात पर गुंडागर्दी होती है.'

वे मानते हैं, मनोज तिवारी की आवाज और चेहरा दोनों ही इस इलाके में जाना पहचाना है. छोटे-छोटे कमरो के अंदर जाएंगे तो उनके पोस्टर भी लटके मिलेंगे. कुछ दिन पहले मनोज तिवारी ने ये घोषणा की थी कि बीजेपी उन्हीं लोगों को प्रत्याशी बनाएगी जो दिल्ली से प्रेम करते होंगे और साथ-साथ पीएम मोदी की नीतियों के भी समर्थक होंगे.

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हां, तिवारी जी जहां एक तरफ स्टेज-शो कर के वोटरों के मन में उम्मीदों के कमल खिला रहे हैं वहीं दूसरी तरफ किशोरी जी यहां उनका ध्यान आकर्षित करने कि हर कोशिश कर रहे हैं.

'हमें अब सिर्फ बीजेपी से उम्मीदें हैं. कांग्रेस और आम-आदमी पार्टी दोनों ने हीं हमें धोखा दिया है', वो कहते हैं.

जब फर्स्ट़पोस्ट हिंदी ने मनोज तिवारी से बात करनी चाही तो जवाब के बदले उन्होंने अपनी भाषणों की ढेर सारी वीडियो हमें भेजीं लेकिन फोन नहीं उठाया.

मंच से उतर कर जमीन पर आइये मनोज तिवारी जी, जनता आपका इंतजार कर रही है.