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खुद को पीएम कैंडिडेट की तरह प्रोजेक्ट कर मायावती ने मोदी के साथ राहुल को भी दी चुनौती

मायावती मोदी, बीजेपी और आरएसएस की काफी आलोचना कर रही थीं, लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कांग्रेस को भी नहीं बख्शा

Sanjay Singh

मायावती ने जब से राजनीतिक शक्ति हासिल की है, तब से हमेशा ही उनका जन्मदिन उनके और उनके राजनीतिक दल- बहुजन समाज पार्टी के लिए खास रहा है. लेकिन उनका 63वां जन्मदिन और भी खास था. जैसा कि उन्होंने कहा कि यह ठीक उस समय मनाया जा रहा है, जब कुछ ही समय बाद संसदीय चुनाव होने वाले हैं और उन्होंने हाल ही में अपने पुराने जानी-दुश्मन समाजवादी पार्टी से गठजोड़ करके भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है. लखनऊ में बीएसपी के महलनुमा के मुख्यालय में मीडिया को संबोधित करते हुए वह खुद से काफी खुश दिखाई दे रही थीं.

उनके पास इसकी वजह भी है- हाल ही में उन्होंने अपनी राजनीति को नया आकार दिया है- पिछले संसदीय चुनाव में बिना खाता खोले लोकसभा में उनके शून्य सांसद थे. 403 सदस्यीय यूपी विधानसभा में उनके सिर्फ 19 विधायक जीते, जो कि कुल सदस्य संख्या का पांच प्रतिशत से भी कम है. वह भी उस विधानसभा में जिसमें सात साल पहले उन्होंने पूर्ण बहुमत से सरकार चलाई थी. इस सबसे गुजरने के बाद आज वह तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों के गठबंधन में सबसे अधिक मांग में हैं.


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मोदी बनाम माया के तौर पर देखती हैं अगला चुनाव 

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में और इसके माध्यम से बाहरी संसार में सभी संबंधित लोगों के लिए उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण घोषणा की है, कि वह आगामी संसदीय चुनाव को नरेंद्र मोदी बनाम मायावती चुनाव के रूप में देखती हैं. भले ही अपनी बात कहने के लिए उन्होंने ठीक इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया है.

अब तक यह बात उनके नए दोस्त बने सहयोगी दल, अजीत जोगी या चौटाला या कुमारस्वामी या अपनी ही पार्टी के नेता कहते रहते थे, कि वह प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार हैं, जो नरेंद्र मोदी के लिए सीधी चुनौती है. लेकिन मंगलवार को उन्होंने सोचा कि समझदारी इसी में है कि अब समय आ गया है कि आगे बढ़कर खुद को मोदी के लिए मुख्य चुनौती देने वाला घोषित करें.

हालांकि, वह मोदी को चुनौती दे रही हैं, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए भी यह संदेश सीधा और सपाट था और प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा रखने वाले ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू जैसों के लिए भी था.

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'यह चुनाव ये तय करने के लिए हो रहा है कि कौन प्रधानमंत्री होगा…' यूपी और देश के बाकी हिस्सों में अपने मतदाताओं व समर्थकों से बीएसपी और उसके सहयोगियों को वोट देने की अपील करते हुए (बीएसपी को आगे रखते हुए और इस बिंदु पर अपने सहयोगियों का नाम नहीं लिया) कहा, 'एसपी और बीएसपी के गठबंधन को कामयाब बनाएं और खुद के नेतृत्व में (उनके नेतृत्व में) सरकार बनाएं. यह मेरे जन्मदिन का सबसे बड़ा तोहफा होगा.'

मायावती का बीएसपी-एसपी कार्यकर्ताओं को संदेश- भूल जाओ और माफ कर दो

अपनी उम्मीदवारी को और आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि इस बार प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश से होगा. ऐसा कहते समय, वह सुविधाजनक ढंग से भूल गईं या इस तथ्य की अनदेखी कर दी कि मोदी बनारस से सांसद हैं और राहुल गांधी भी यूपी के अमेठी से ही सांसद हैं. इसके बाद उन्होंने एक बार फिर अपनी आत्मकथा 'मेरे संघर्षमय जीवन और बीएसपी मूवमेंट का सफरनामा' रिलीज की.

मायावती ने अपनी प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा को जाहिर करने के लगभग एक घंटे बाद, अपने नए साथी बने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव से मिलीं, जो पिछले संसदीय चुनाव में अपने पिता मुलायम सिंह यादव के लिए सर्वोच्च पद की वकालत कर रहे थे. अखिलेश जन्मदिन की बधाई देने के लिए बीसपी सुप्रीमो के घर पहुंचे थे. चूंकि अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और मायावती के जन्मदिन की तारीख 15 जनवरी एक ही है, इसलिए ऐसी भी अटकलें थीं कि बहनजी और भाभीजी के लिए एसपी-बीएसपी कार्यकर्ताओं द्वारा संयुक्त समारोह का आयोजन किया सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

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मायावती का बीएसपी और एसपी कार्यकर्ताओं के लिए संदेश था, भूल जाओ और माफ कर दो, (गेस्टहाउस कांड, जब लखनऊ में स्टेट गेस्टहाउस में 2 जून 1995 को हुई घटना में समाजवादी पार्टी के सहयोगी कांशीराम और मायावती पर एसपी के गुंडों द्वारा हमला किया गया था, क्योंकि उनको लगता था कि वह मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लेंगी).

कांग्रेस को अपने अंदाज में किनारे लगाया

वह निश्चित रूप से मोदी, बीजेपी और आरएसएस की काफी आलोचना कर रही थीं, लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने कांग्रेस को भी नहीं बख्शा. उन्होंने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस की नवगठित सरकार पर शुरुआती हफ्तों में ही ठीक से काम नहीं करने का आरोप लगाया. राहुल गांधी की पसंदीदा कर्ज माफी योजना का फायदा देने के लिए किसानों के चयन के फॉर्मूले को लेकर भी उनकी आलोचना करते हुए मायावती ने इन तीन राज्यों में इसके क्रियान्वयन में विफलताओं की ओर इशारा करते हुए कहा कि कर्जमाफी कृषि संकट का समाधान नहीं है और यह भी कहा कि कर्ज माफी का फायदा केवल चुनिंदा किसानों को मिलता है.

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि चंद दिनों पहले तक कांग्रेस को एसपी-बीएसपी गठबंधन का हिस्सा होने की बड़ी उम्मीद थी और यहां तक कि इसका नाम भी महागठबंधन रखा था. राहुल गांधी ने अनगिनत बार महागठबंधन को लेकर आशावाद भी जताया था, लेकिन मायावती ने अपने जाने-पहचाने अंदाज में कांग्रेस को झटका दे दिया. मोदी को निशाने पर रखते हुए उन्होंने कांग्रेस को केंद्र और राज्यों में दशकों के अपने राजनीतिक जीवनकाल में गरीबों, दलितों, आदिवासियों के लिए कोई ठोस काम नहीं करने का दोषी ठहराते हुए खरी-खरी सुनाई. वह समझा रही थीं कि कांग्रेस में विकल्प तलाशने के बजाय एक नया विकल्प देते हुए क्यों उन्हें एक मौका दिया जाना चाहिए. उनका कहना था कि कांग्रेस ऐसी पार्टी है, जिसका लोगों की उम्मीदों को पूरा नहीं करने का इतिहास रहा है.

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इसके बाद अपनी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को और मजबूत करने के लिए वह राष्ट्रीय राजधानी में अपना जन्मदिन मनाने और उत्तर प्रदेश के बाहर के सहयोगियों के साथ विचार-विमर्श करने के लिए दिल्ली चली गईं. अन्य राज्यों के बीएसपी नेताओं को शाम तक दिल्ली पहुंचने के लिए कहा गया ताकि वह उनका अभिवादन कर सकें और वक्त मिला तो अगले चुनावों के लिए आगे बढ़ने का मार्गदर्शन ले सकें. वह एक हफ्ते दिल्ली में रहेंगी, मौजूदा और भावी सहयोगियों के साथ बातचीत करेंगी और फिर पार्टी पदाधिकारियों के साथ अंतिम दौर की बैठक के लिए अगले हफ्ते लखनऊ लौट जाएंगी.