समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी के एकतरफा गठबंधन के ऐलान के बाद कांग्रेस को नए सिरे से कवायद करनी पड़ रही है. यूपी में भी कांग्रेस बिहार जैसा महागठबंधन बनाने के की तैयारी में थी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. कांग्रेस एसपी-बीएसपी के ऐलान के बाद बैठक पर बैठक कर रही है. प्रदेश के प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने कई दौर के बाद नेताओं के साथ मिलजुल कर रणनीति तय की है.
कांग्रेस ने तय किया कि सभी जोन में राहुल गांधी की बड़ी रैली आयोजित की जाएगी. एक जोन की रैली में लगभग 6 लोकसभा की सीट कवर हो जाएंगी. प्रदेश के प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने कहा कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सीधी लड़ाई बीजेपी से है. हम लोग सभी लाइक माइंडेंड पार्टी की मदद लेंगे, कांग्रेस उन सभी पार्टियों का सम्मान करती है जो बीजेपी के खिलाफ लड़ रही हैं. कांग्रेस किसी भी दल की आलोचना करने से बच रही है. कांग्रेस छोटी पार्टियों के साथ नया गठबंधन बनाने की कोशिश कर रही है.
कांग्रेस का फोकस
कांग्रेस का फोकस उन सीटों पर ज्यादा है, जहां 2009 में कांग्रेस चुनाव जीत चुकी है. कांग्रेस ने 2009 में 22 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. बाद में फिरोजाबाद उपचुनाव में राजबब्बर ने जीतकर ये आंकड़ा 23 सीट पर पहुंचा दिया था. कांग्रेस इन सभी सीटों पर मजबूत उम्मीदवार खड़ा करने की तैयारी कर रही है. उन सभी पूर्व सासंदों को पार्टी चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही है. इसके अलावा पूर्व विधायकों को लड़ाने की कोशिश हो रही है.
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गोंडा लोकसभा सीट 2009 में बेनी प्रसाद वर्मा ने जीती थी, अब वो पार्टी में नहीं हैं. पूर्व जिला प्रमुख राघव राम मिश्रा का कहना है कि अलग लड़ने से कांग्रेस को फायदा होगा, लोग कांग्रेस की तरफ देख रहे हैं. राघवराम खुद टिकट के दावेदार हैं. इस तरह मुलायम सिंह यादव के धुर विरोधी विश्वनाथ चतुर्वेदी कैसरगंज से टिकट मांग रहे हैं. उनका कहना है कि ब्राह्मण और किसान कांग्रेस की तरफ देख रहा है. जाहिर है कि सब अपने हिसाब से बिसात बिछा रहे हैं. हालांकि कांग्रेस का संगठन कमजोर है. लेकिन इस कमी को शिवपाल यादव की पार्टी पूरा कर सकती है.
शिवपाल पर दांव
कांग्रेस अब शिवपाल यादव की पार्टी पीएसपी के साथ बातचीत कर रही है. पीएसपी के प्रवक्ता चक्रपाणि यादव का कहना है कि अगले कुछ दिनों में कांग्रेस के साथ गठबंधन की बातचीत फाइनल हो जाएगी. हालांकि इसका ऐलान 24 जनवरी को हो सकता है. 24 जनवरी को हापुड़ में शिवपाल यादव बड़ी रैली कर रहे हैं. जिसकी तैयारी में चक्रपाणि यादव लगे हैं. हालांकि सीट का खुलासा नहीं हो रहा है लेकिन पीएसपी दस सीट पर मान सकती है.
कांग्रेस छोटे दलों के साथ बड़ा मोर्चा खड़ा करना चाहती है. जो बीजेपी को हराने में मददगार साबित हो सकते हैं. लेकिन शिवपाल की अदावत अखिलेश यादव से है. पीएसपी समाजवादी पार्टी को कमजोर करने की रणनीति पर काम करेगी. कांग्रेस भले ही एसपी-बीएसपी को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाना चाहती है. लेकिन उसके साथी ऐसा नहीं करने के पाबंद नहीं हैं.
अजित सिंह किधर जाएंगे?
आरएलडी की 5 सीट की मांग को एसपी-बीएसपी ने दरकिनार कर दिया है. समझा जा रहा है कि 2 सीट ही ऑफर की जा रही हैं. जबकि चौधरी अजित सिंह की 5 सीट की मांग नाजायज नहीं थी. बागपत और मथुरा से अजित सिंह और जयंत चौधरी सांसद रह चुके हैं. कैराना से आरएलडी की सांसद हैं. अमरोहा और हाथरस में जाटों की संख्या ज्यादा है.
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कांग्रेस अजित सिंह से संपर्क साध रही है, लेकिन अजित सिंह ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. चौधरी अजित सिंह अभी जमीनी हालात का आकलन कर रहे हैं. जाटलैंड में चौधरी की लोकप्रियता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. 2014 के चुनाव के बाद स्थिति बदली है. कैराना के नतीजे इसका सबूत हैं. इस बात को नजरअंदाज करना एसपी-बीएसपी के लिए फायदे का सौदा नहीं रहेगा. लेकिन अभी चुनाव दूर हैं. राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं. ये दबाव की राजनीति का वक्त चल रहा है.
छोटे दलों पर निगाह
यही नहीं कांग्रेस अपना दल की अनुप्रिया पटेल को भी अपने पाले में खींचने की कोशिश कर रही है. बीजेपी के पास अपना दल को देने के लिए कुछ नहीं है. वहीं कांग्रेस ज्यादा सीट का ऑफर दे रही है. अपना दल का कुर्मी बाहुल्य मध्य यूपी और बुंदेलखंड में प्रभाव है. वहीं ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी को अल्टीमेटम दे दिया है. अगर अति पिछड़ा को अलग कैटेगरी में नहीं किया तो ये पार्टी बीजेपी से अलग हो जाएगी. कांग्रेस अपने जरिए से इन दो नेताओं से बातचीत कर रही है. इनके आने से कांग्रेस का मोर्चा बड़ा बन सकता है.
बीजेपी हराओ अभियान?
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने पार्टी की लाइन तय कर दी है. कांग्रेस गैर बीजेपी पार्टियों की आलोचना से बच रही है. एसपी-बीएसपी पर भी कांग्रेस वार नहीं कर रही है. कांग्रेस इस बात का ख्याल रख रही है कि कोई दल नाराज न हो जाए. 2019 के चुनाव के बाद के समीकरण का पूरा अंदाजा है. पार्टी बीजेपी को हराने के एजेंडे पर ज्यादा ध्यान देने वाली है. कांग्रेस चाहती है कि बीजेपी की सीट कम हो चाहे और दलों की सीट बढ़ जाए.
कांग्रेस अपनी सीट तीन कैटेगरी में विभाजित कर रही हैं. एक जीतने वाली सीट हैं, जहां पार्टी फोकस कर रही है. पार्टी 2009 में रही नंबर दो की सीट पर मजबूत उम्मीदवार तलाश कर रही है. और जहां पार्टी के जीतने की संभावना नहीं है वहां पार्टी बीजेपी को हराने की रणनीति पर काम करने की योजना बना रही है. जिसमें ऐसे उम्मीदवार उतारने की कोशिश की जाएगी जो बीजेपी के वोट को नुकसान पहुंचा सकते हैं. जिसमें बीजेपी के वोट और स्थानीय समीकरण पर ध्यान दिया जाएगा. हालांकि चुनाव में बिसात तो राजनीतिक पार्टियां बिछाती हैं लेकिन अंतिम फैसला जनता को करना है.
2009 में मुलायम ने तोड़ा गठबंधन
कांग्रेस में संगठन एकला चलो का नारा बुलंद कर रही थी. मजबूरन पार्टी को अब अकेला चलना पड़ रहा है, लेकिन चुनाव लड़ने वाले लोग गठबंधन की हिमायत कर रहे थे. अब कांग्रेस 2009 की स्थिति पर है. जब मुलायम सिंह ने गठबंधन करने से इनकार कर दिया था. कांग्रेस को अकेले चुनाव में उतारना पड़ा था. यूपी में तराई की लगभग सभी सीट पर जीत दर्ज की थी.
लखीमपुर से कुशीनगर तक कांग्रेस के पास कुछ सीट छोड़कर सब सीट थीं. किसान कर्जमाफी एक बड़ी वजह थी. मुस्लिम और कुर्मी कांग्रेस के साथ थे, लेकिन इस बार वैसे हालात नहीं हैं. बीजेपी पहले से मजबूत है. केंद्र और राज्य में बीजेपी की सत्ता है. बीजेपी ने तराई की राजनीति में जातीय समीकरण को बैलेंस किया है. पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी बीजेपी में बढ़ी है.
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