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चित्रकूट उपचुनाव: शिवराज के सामने लोकप्रियता बचाने की चुनौती

चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी में शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं.

Dinesh Gupta

चित्रकूट विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने मामा की लोकप्रिय छवि को बचाने की चुनौती खड़ी कर दी है. चित्रकूट में जिस आदिवासी गांव में शिवराज सिंह चौहान रूके थे, उस गांव में भी बीजेपी उम्मीदवार को कांगे्रस उम्मीदवार से कम वोट ही मिले हैं. चुनाव के नतीजे आने के बाद बीजेपी में शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं. पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार चौहान अकेले ही उनका बचाव करते नजर आ रहे हैं.

वहीं, कांग्रेस में उत्साह का माहौल है. इस उत्साहपूर्ण माहौल के बीच राज्य के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिल्ली में बैठक कर अपनी अगली रणनीति तैयार करने में लग गए हैं. कांग्रेसी यदि मुख्यमंत्री के तौर पर किसी एक चेहरे पर सहमत हो जाते हैं तो बीजेपी के लिए अगला विधानसभा चुनाव कठिनाईयों से भरा होगा. कांग्रेसियों को अगले चुनाव में अपनी पार्टी की संभावनाएं तो दिखाई दे रही हैं लेकिन, सभी मुख्यमंत्री कौन होगा, इस जाल में फंसे नजर आ रहे हैं. बीएसपी और एसपी का साथ यदि कांग्रेस को मिल गया तो बीजेपी और मुख्यमंत्री चौहान के लिए चुनौती पहाड़ जैसी होगी?


पार्टी की ओर से बेफ्रिक हैं शिवराज

लगातार तेरह साल तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने यह अच्छी तरह समझ लिया है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को किस तरह साधना है. राज्य स्तर के किन नेताओं को किस सीमा तक महत्व देना है. पिछले तेरह साल में शिवराज सिंह चौहान ने केंद्रीय नेतृत्व से कोई टकराव नहीं लिया. लालकृष्ण आडवाणी का दौर हो या फिर राजनाथ सिंह का, मुख्यमंत्री चौहान सभी को शीशे में उतारने सफल रहे.

जिन दिनों आडवाणी का दौर था, उन दिनों मध्यप्रदेश में होने वाले अधिकांश कार्यक्रमों में वे ही मुख्य अतिथि होते थे. राजनाथ सिंह भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ख्लिाफ कोई शिकायत नहीं सुनते थे. वैंकैया नायडू और प्रदेश के प्रभारी रहे अनंत कुमार से भी शिवराज सिंह चौहान का अच्छा तालमेल था.

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सुषमा स्वराज, शिवराज सिंह चौहान द्वारा छोड़ी गई विदिशा संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करतीं हैं. पार्टी की राज्य इकाई में चौहान के कद वाला कोई नेता भी मौजूद नहीं हैं. एकमात्र केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ही हैं, जो उन्हें चुनौती देने की स्थिति में हो सकते हैं. लेकिन, तोमर ने शिवराज सिंह चौहान से तालमेल बैठा लिया है.

कैलाश विजयवर्गीय पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी जरूर हैं लेकिन असंतुष्ट उनके पीछे खड़े होने को तैयार नहीं हैं. यही स्थिति सांसद अनूप मिश्रा की है. वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे हैं. पिछले कुछ दिनों से विजयवर्गीय और मिश्रा दोनों ही अप्रत्यक्ष तौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर हमला बोल रहे हैं. हमला भावांतर योजना को ढाल बनाकर किया जा रहा है.

चौहान की सरकार द्वारा लागू की गई भावातांर योजना से किसानों में भ्रम की स्थिति आज भी बनी हुई है. इस योजना के कारण मंडियों में व्यापारियों का गठजोड़ हो गया. इस गठजोड़ में उन्होंने न्यूनतम दरों पर किसानों की उपज खरीदी. व्यापारियों द्वारा कम दाम दिए जाने के बाद किसानों को बहुत बड़ा नुकसान होने वाला नहीं है. नुकसान की भरपाई भावातंर योजना में की जाना है. किसान की नाराजगी उपज के पूरे दाम मौके पर ही न मिलने को लेकर है. भाजपा के असंतुष्ट नेता इसे हवा दे रहे हैं. चित्रकृट उप चुनाव के परिणामों के जरिए भावातंर योजना की सफलता पर भी सवाल खड़े किए गए हैं. भावातांर के अलावा जीएसटी को भी कांग्रेस की जीत की वजह बताया जा रहा है.

मुंगावली और कोलारस में होगी अग्नि परीक्षा

चित्रकूट की जीत से उत्साहित कांग्रेसी इसे हांडी के एक चावल के तौर देखकर खुश हो रहे हैं. जबकि उन्हें पता है कि चित्रकूट परंपरागत तौर कांग्रेस की सुरक्षित माने जाने वाली सीट है. कांग्रेसियों के उत्साहित होने की मुख्य वजह मुख्यमंत्री की रणनीति का विफल होना रहा है. अपवाद स्वरूप कुछ मामलों में छोड़ दिया जाए तो शिवराज सिंह चौहान ने कई कांग्रेसी गढ़ों को धराशायी किया है. हजारों करोड़ रूपए की घोषणाएं और मामा की पहचान उन्हें हमेशा ही सफलता दिलाती रही है. चित्रकूट की हार को उन्होंने विनम्रता से स्वीकार भी किया है.

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विधानसभा चुनाव के पहले उनकी एक अग्निपरीक्षा मुंगावली और कोलारस विधानसभा के उपचुनाव में होना है. दोनों ही विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के कब्जे वाले हैं. दोनों क्षेत्र कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के निजी प्रभाव क्षेत्र वाले हैं. चित्रकूट में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का मुकाबला अजय सिंह के प्रभाव क्षेत्र में था. महैर उपचुनाव में अजय सिंह कांग्रेस के गढ़ में अपनी साख नहीं बचा पाए थे. इस बार उन्होंने पार्टी के वोट बढ़ाकर बदला ले लिया.

चित्रकूट के उपचुनाव में कांग्रेस के सभी क्षत्रप प्रचार के लिए गए थे. जबकि वहां उनके समर्थकों की संख्या ज्यादा नहीं थी. वहां जातिगत आधार वोटों का विभाजन भी नहीं हुआ. आदिवासी भी कांग्रेस के साथ बना रहा. कोलारस और मुंगावली में जातिगत समीकरण भी काम करेंगे. बीजेपी यदि सिंधिया को घेरने में सफल हो जाती है तो विधानसभा के आम चुनाव में वह मतदाताओं पर मनोवैज्ञानिक असर डालने में काफी हद तक सफल हो जाएगी. कांग्रेस की एकजुटता भी चुनाव परिणामों की दिशा निर्धारित करेगी.

कांग्रेस में एक बार फिर एकता के डबरा फॉर्मूले पर विचार होने लगा है. डबरा में वर्ष 1993 के विधानसभा चुनाव के पूर्व सभी कांग्रेसी एक मंच पर एकत्रित हुए थे. सभी गुटों के नेताओं को एक मंच पर लाने का काम स्वर्गीय माधवराव सिंधिया ने किया था.

अखिलेश और मायावती की भूमिका तय करेगी दिशा

चित्रकूट के उपचुनाव में कांग्रेस की जीत पर सबसे ज्यादा खुशी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जाहिर की थी. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा कि ये परिणाम जनता के मन में भाजपा के प्रति बढ़ते अविश्वास और विरोध का प्रतीक हैं. उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे विंध्य के चित्रकूट क्षेत्र में समाजवादी पार्टी का कोई खास असर नहीं है. लेकिन, चुनाव में सपा अथवा बसपा के उम्मीदवार की मौजूदगी वोटों का विभाजन जरूर करा देता है.

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चित्रकूट के उप चुनाव में दोनों ही दलों के उम्मीदवार मैदान में नहीं थे. इसका फायदा कांग्रेस को अच्छी बढ़त के तौर पर मिला. कह सकते हैं कि चित्रकूट में कांग्रेस, एसपी और बीएसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी. मुंगावली और कोलारस में भी यदि यही प्रयोग अपनाया जाता है तो भी बीजेपी के लिए सफर मुश्किल भरा होगा. आम चुनाव में एसपी और बीएसपी का गठबंधन भी कांग्रेस के साथ बनने की संभावनाएं बढ जाएंगी.

दोनों दल मध्यप्रदेश में लगभग पचास सीटों के चुनाव परिणाम प्रभावित करते हैं. पिछले दो चुनावों से बसपा और सपा की मौजूदगी का लाभ भाजपा को मिला था. महाकौशल के आदिवासी इलाके में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को भी संभालना कांग्रेस के लिए बढ़ी चुनौती होगा.