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मध्यप्रदेश को दिल्ली बनाना चाहते हैं अरविंद केजरीवाल

मध्य प्रदेश में आप के लिए सबसे बड़ी चुनौती जनता में विश्वास का भाव पैदा करने की होगी

Updated On: Nov 06, 2017 03:38 PM IST

Dinesh Gupta
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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मध्यप्रदेश को दिल्ली बनाना चाहते हैं अरविंद केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की इच्छा मध्यप्रदेश को दिल्ली बनाने की है. उन्होंने कहा कि शिवराज सिंह चौहान के विकास से मेरा विकास ज्यादा अच्छा है. पिछले कई दिनों से खामोश चल रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रविवार को भोपाल में दिल खोलकर बोले.

उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज में कार्यकर्त्ताओं से पूछा कि क्या पार्टी को अगले साल मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारना चाहिए? भीड़ ने भी हां कहां और केजरीवाल ने राज्य की सभी 230 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला कर लिया.

हालांकि केजरीवाल की सभा यह संदेश नहीं दे पाई कि वे मध्यप्रदेश में तीसरी ताकत के रूप में उभर सकते हैं. भोपाल के बीएचईएल कारखाने के दशहरा मैदान में केजरीवाल की सभा हुई. केजरीवाल कई घंटे देरी से सभा में पहुंचे. वे शनिवार की रात को भोपाल पहुंचे थे. रविवार को वे प्रदेश भर के कार्यकर्त्ताओं से अलग-अलग बात करते रहे. केजरीवाल ने कहा मध्यप्रदेश के विकास से दिल्ली का विकास ज्यादा अच्छा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के बारे में केजरीवाल कुछ नहीं बोले.

मध्यप्रदेश में तीसरे दल की संभावना?

अरविंद केजरीवाल के करीबी मंत्री गोपाल राय के ऊपर मध्यप्रदेश में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी है. केजरीवाल की सभा में गोपाल राय उतनी भीड़ भी नहीं जुटा पाए जितने वोट उनकी पार्टी को मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों को मिले थे. आप पार्टी, राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ कोई नया मुद्दा भी तलाश नहीं कर पाई. जिन मुद्दों पर कांग्रेस राजनीति कर रही है केजरीवाल भी उन्हीं मुद्दों को पकड़ कर बैठ गए हैं.

मध्यप्रदेश में सालों से दो दलीय राजनीतिक व्यवस्था चल रही है. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी. मतदाताओं के पास कोई ऐसा तीसरा विकल्प नहीं है, जो राज्य में अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में हो. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी अस्तित्व में आने के बाद से ही मध्यप्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रहीं हैं.

Bhopal: Delhi Chief Minister Arvind Kejrival being welcomed with traditional bow& arrow by Party workers during Aam Aadmi Party rally in Bhopal on Sunday. PTI Photo(PTI11_5_2017_000084B)

तस्वीर: पीटीआई

वर्तमान विधानसभा में बहुजन समाज पार्टी के केवल चार विधायक हैं. वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद से ही बहुजन समाज पार्टी की ताकत राज्य में कम होती जा रही है. समाजवादी पार्टी भी कोई उल्लेखनीय उपलब्धि दर्ज नहीं करा पाई है. वर्तमान विधानसभा में एसपी का एक भी विधायक नहीं है.

एसपी के सबसे ज्यादा 8 विधायक वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में जीत कर आए थे. इसके बाद से एसपी लगातार कमजोर होती जा रही है. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों की ही पहचान उत्तरप्रदेश के क्षेत्रीय दलों के तौर पर है. दोनों ही दलों का प्रभाव क्षेत्र भी उत्तरप्रदेश से लगे हुए क्षेत्रों में ज्यादा है.

बीएसपी जहां ग्वालियर-चंबल संभाग में मजबूत स्थिति में रहती हैं, वहीं समाजवादी पार्टी बुंदेलखड इलाके में असर रखती है. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के पास कोई चमत्कारी नेतृत्व राज्य में नहीं है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती सिर्फ चुनाव के समय ही राज्य में दौरा करतीं हैं. एसपी नेता मुलायम सिंह और राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की कोई खास दिलचस्पी मध्यप्रदेश में नजर नहीं आती है. जबकि राज्य में यादव मतदाता कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक स्थिति में हैं.

ऐसे में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल राज्य में अपनी संभावनाएं ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं. वैसे अब तक मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया है.

झोला छाप नेताओं से बनना चाहते हैं विकल्प

मध्यप्रदेश में अरविंद केजरीवाल की टीम में शामिल अधिकांश लोग झोला छाप हैं. नर्मदा बचाओ आंदोलन से निकले हुए हैं. मध्यप्रदेश में पार्टी के संयोजक आलोक अग्रवाल हैं. वे नर्मदा पट्टी में मेधा पाटकर के साथ आंदोलन कर चुके हैं. राज्य में एनजीओ के जरिए नेतागिरी करने वाले लोगों को झोला छाप नेता कहा जाता है. आप के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल ने खंडवा से 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा था. उन्हें सिर्फ 16799 वोट मिले थे. खंडवा नर्मदा पट्टी का क्षेत्र है.

लोकसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने सभी 29 क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे थे. कई स्थानों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को एक प्रतिशत से भी अधिक वोट प्राप्त हुए थे. लोकसभा क्षेत्र आठ विधानसभाओं से मिलकर बना होता है, इस कारण एक प्रतिशत वोट का कोई महत्व नहीं होता है. सबसे ज्यादा 35169 वोट इंदौर में अनिल त्रिवेदी को मिले थे.

अरविंद केजरीवाल की पार्टी पिछले चार साल से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रही है. हर छोटे-बड़े मामले में उनकी पार्टी के लोग धरना-प्रदर्शन भी करते हैं. प्रदर्शन में उपस्थित लोगों की संख्या सैकड़ों में ही होती है. भोपाल में गैस प्रभावित मोर्चा के लोग आम आदमी पार्टी से जुड़े हुए हैं.

Bhopal:  A senior party worker hold placard during Delhi Chief Minister Arvind Kejrival's   rally in Bhopal on Sunday. PTI Photo(PTI11_5_2017_000086B)

भोपाल की रैली में आप समर्थक (पीटीआई)

बेरोजगारों और दिहाड़ी कर्मचारियों पर नजर

मध्यप्रदेश में व्यापक स्तर पर वोटों का विभाजन नहीं होता है. जनता यदि कांग्रेस से नाराज होती है तो भारतीय जनता पार्टी को चुन लेती है. सामान्यत: राज्य का मतदाता यथास्थितिवाद के पक्ष में ज्यादा नजर आता है. यही कारण है कि लगातार पिछले तीन चुनाव से वह भारतीय जनता पार्टी को चुन रही है. राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी लोकप्रियता के शिखर पर है. वे लगातार तेरह साल से राज्य के मुख्यमंत्री हैं.

राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा के चुनाव में चौहान को पार्टी के भीतर ही चुनौती मिलने का खतरा बना हुआ है. राज्य में नौकरशाही के हावी होने के कारण समाज का हर वर्ग सरकार से नाराज चल रहा है. नाराजगी दूर करने के लिए मुख्यमंत्री चौहान द्वारा जो भी दांव खेला जाता हैै, वह उल्टा पड़ता नजर आ रहा है. भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक माने जाने वाला किसान भी सरकार से नाराज चल रहा है. बेरोजगारी भी राज्य में एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है.

आप के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल कहते हैं कि राज्य में बारह लाख से अधिक बेरोजगार हैं. सरकार ने निवेश के तमाम दावे किए. निवेश भी नहीं आया और बेरोजगारों को काम भी नहीं मिला. आप की निगाह सरकारी क्षेत्र में संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों पर भी है. संविदा कर्मचारी पिछले एक साल से अपने नियमितिकरण को लेकर आंदोलन कर रहे हैं.

आप पार्टी के नेता गोपाल राय उन्हें दिल्ली के दिहाड़ी कर्मचारियों की तरह सुविधा देने की बात कर रहे हैं. दिल्ली सरकार का तमाशा देखने के बाद लगता नहीं है कि राज्य में मतदाताओं का बड़ा वर्ग नई पार्टी पर भरोसा करेगा. राज्य में अभी कांग्रेस के अंदर चेहरे को लेकर घमासान मचा हुआ है. कांग्रेस की गतिविधियों से भी जनता में निराशा है. आप के लिए सबसे बड़ी चुनौती जनता में विश्वास का भाव पैदा करने की होगी.

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