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मध्य प्रदेश चुनाव: क्या एक तरफ से 'रोटी ज्यादा सिक' गई है, पलटेगी इस बार सरकार?

अगर शिवराज चौहान को जनता फिर से अगले पांच साल के लिए चुनती है, तो इसका मतलब रोटी को एक तरफ ज्यादा सेंकना होगा

Ajay Singh

तीखा हो, मजाहिया हो, ज़हरीला और बेहद शोर-शराबे वाला हो, सोशल मीडिया पर आज का सियासी संवाद चाहे जैसा भी हो, वो ग्रामीण भारत की गलियों-नुक्कड़ों के चुटीली और पैनी बातों के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता. मध्य प्रदेश के दतिया में शहर के शोर-शराबे और तेज-तर्रार जिंदगी से दूर एक गांव के अलमस्त बाशिंदे ने मुझे इसका बखूबी एहसास कराया. जब मैंने उस गांववाले से पूछा कि आखिर मध्य प्रदेश विधानसभा में किसकी हवा बह रही है, तो उसका जवाब था, 'रोटी दोनों तरफ से सेंकना चाहिए. एक तरफ ज्यादा सेंकने से जल जाती है.'

उस ग्रामीण ने किसी का नाम नहीं लिया. न तो किसी नेता का और न ही किसी पार्टी का. लेकिन, बिना कोई नाम लिए भी उसने तीन बार से चुनाव जीत रहे शिवराज चौहान को लेकर दुविधा को बड़े मजे से जता दिया. मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को होने वाले चुनाव में शिवराज चौहान इस बार चौथी दफा मुख्यमंत्री बनने के लिए जोर लगा रहे हैं. वो इतने लोकप्रिय रहे हैं तभी पिछले 13 साल से मध्य प्रदेश पर राज कर रहे हैं. लेकिन उनकी ये उपलब्धि ही अबकी बार उनकी सबसे बड़ी चुनौती बन गई है. अगर शिवराज चौहान को जनता फिर से अगले पांच साल के लिए चुनती है, तो इसका मतलब रोटी को एक तरफ ज्यादा सेंकना होगा. तो, अब रोटी को दूसरी तरफ सेंकने का वक्त आ गया है.


जमीनी तौर पर शिवराज के लिए चुनौती बड़ी है

किसी गांव वाले की मजाक में कही गई बहुत गहरी बात की बुनियाद से लोगों के सियासी बर्ताव का अनुमान लगाना अक्लमंदी नहीं होगी. खास तौर से तब और जब विधानसभा चुनाव में आर्थिक, धार्मिक, सियासी और सामाजिक मुद्दों के पेंच आपस में उलझे हुए हों. लेकिन, आप राज्य में जमीनी तौर पर समाज के अलग-अलग तबकों के लोगों से मिलें, तो यही एहसास होता है कि इस बार शिवराज चौहान के लिए चुनौती बड़ी है. कम से कम चंबल के बीहड़ों वाले ग्वालियर और आस-पास के इलाकों के साथ बुंदेलखंड के लोगों के बारे में तो ये बात कही जा सकती है.

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अब दतिया की मशहूर तांत्रिक अनुष्ठान वाली पीतांबरा पीठ को ही लें. इस सीट की नुमाइंदगी बीजेपी के कद्दावर मंत्री नरोत्तम मिश्रा करते हैं. एक अलसाई सी दोपहरी में पीतांबरा पीठ के बरामदे में बैठे पुजारी सियासी गप-शप में वक्त काट रहे थे. वो ये अंदाजा लगा रहे थे कि विधानसभा चुनाव के नतीजे क्या होंगे. उनका ये मानना था कि शिवराज चौहान इस बार मुश्किल में हैं. हालांकि जब मैंने उनकी बातचीत में दखल दिया, तो बड़े चौकन्ने हो गए. तब उन्होंने अपनी हिचकिचाहट छुपाते हुए साफ तौर से कहा कि बीजेपी के लिए इस बार एंटी-इन्कमबेंसी की चुनौती बड़ी है.

पुरातात्विक महत्व की इमारतों के बीच अवैध खुदाई

दतिया से दूर राज्य के दूसरे कोने में स्थित ग्वालियर इलाके का मुरैना जिला चंबल के बीहड़ों और गए जमाने के डकैतों के लिए मशहूर है. ज्यादा पुरानी बात नहीं जब यहां डकैतों, जिन्हें स्थानीय लोग बागी कहते थे, खुलेआम घूमते थे. आज से चार दशक पहले इन बीहड़ों तक पहुंचना ज्यादातर लोगों के लिए नामुमकिन सा था. इस इलाके में खूंखार डकैतों जैसे माधो सिंह, मोहर सिंह, तहसीलदार सिंह, माखन सिंह और पान सिंह तोमर की तूती बोलती थी. कुछ साल पहले पान सिंह तोमर पर बनी फिल्म ने इस इलाके की चुनौतियों की तरफ लोगों का ध्यान खींचा था. इस फिल्म में पान सिंह तोमर का किरदार इरफान खान ने निभाया था.

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मजे की बात है कि इन बीहड़ों में ही शानदार ऐतिहासिक धरोहरें भी देखने को मिलती हैं. ये ऐतिहासिक ठिकाने किसी भी पुरातत्वविद् के लिए खुदाई और संरक्षण का काम करने का खजाना हैं. यहां कई बहुत ही शानदार ऐतिहासिक इमारतें हैं. ग्वालियर से करीब 50 किलोमीर दूर एक कतार में बसे बटेश्वर, परावली और मितावली गांवों में 300 से 600 ईस्वी की इमारतों के खंडहर मिलते हैं. बटेश्वर में भगवान शिव का एक विशाल मंदिर है. इसके इर्द-गिर्द 300 छोटे-छोटे मंदिर हैं. इस जगह की खुदाई बड़े उत्साही पुरातत्वविद् के के मुहम्मद ने की थी. उन्होंने अपने अकेले के बूते पर इस इमारत के बड़े हिस्से का ढहने और खंडहर बनने से बचाया था. ऊपर से देखें तो ये जगह कंबोडिया के अंकोरवाट जैसी लगती है. वहीं, मितावली में एक पहाड़ी के ऊपर बना शिव का मंदिर, देश के संसद भवन जैसा दिखता है.

मैंने यहां मुरैना के पुरातात्विक महत्व का जिक्र जान-बूझकर किया. मेरा मकसद यहां की राजनीति और समाज पर गहरा असर डालने वाले एक बड़े मुद्दे को उठाने का था. जब मैं इन शानदार खंडहरों की खूबसूरती निहार रहा था, तो अचानक एक बड़े धमाके से मैं चौंक उठा. मैंने वहां मौजूद एएएसआई के एक कर्मचारी से पूछा कि, 'आखिर ये क्या है?' उस कर्मचारी ने जवाब दिया कि, 'ये धमाका पास की पहाड़ी में चल रही पत्थरों की खुदाई की वजह से हुआ है, जो पूरी तरीके से अवैध है.' उस एएसआई कर्मचारी ने ये भी कहा कि पुरातात्विक सर्वे ने कई बार राज्य सरकार को अवैध खनन के पुरातात्विक इमारतों और ठिकानों पर पड़ रहे बुरे असर के बारे में लिखकर आगाह किया है. फिर भी अवैध खनन का काम खुलेआम चल रहा है.

अवैध खनन से आम आदमी की जिंदगी तबाह, सरकार भी उतनी ही दोषी

ये बात किसी से छुपी नहीं है कि इस पूरे इलाके में पत्थरों और बालू की अवैध खुदाई का माफिया सक्रिय है. ये लोग नियम-कायदों की धज्जियां उड़ा रहे हैं. इसमें कुछ हद तक योगदान बीजेपी के नेताओं का भी है, जिनमें कई मंत्री भी शामिल हैं. ग्वालियर के पास बालू माफिया ने एक ट्रेनी आईपीएस अफसर को भी मार डाला था. फिर भी राज्य के प्रशासन में इन आपराधिक कारोबार के खिलाफ एक्शन लेने की जुम्बिश तक नहीं हुई.

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इसकी वजह साफ है. अवैध कारोबार की ये अर्थव्यवस्था सैकड़ों करोड़ रुपयों की है. जो सियासी सरपरस्ती में खूब फल-फूल रही है. अब चूंकि राज्य में पिछले 15 साल से बीजेपी की सरकार है, तो राज्य के नेतृत्व को इस खनन माफिया से सबसे ज्यादा फायदा हुआ है. बटेश्वर के एक निवासी ने मुझसे कहा कि, 'कई बार तो धमाकों की वजह से सोना मुश्किल हो जाता है.' इसके बावजूद चुनावी माहौल में अवैध खनन का ये कारोबार बदस्तूर जारी है. इससे साफ है कि खनन माफिया का इस इलाके में कैसा राज चल रहा है.

आज चंबल के बीहड़ों में खनन माफिया का आतंक इस कदर फैला हुआ है कि वो डकैतों के गिरोह से भी ज्यादा खतरनाक हो गए हैं. सामाजिक और पर्यावरण पर असर की बात करें तो इस खनन माफिया ने अफसरों और नेताओं से सांठ-गांठ करके आम लोगों की जिंदगी तबाह कर दी है. ये भी हकीकत है कि मध्य प्रदेश की सरकार इस अपराध में बराबर की शरीक है. ये बात विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ जा रही है. बीजेपी की मुश्किल इसलिए और बढ़ गई है कि कभी ग्वालियर व्यापम घोटाले के केंद्र के तौर पर भी सामने आया था. व्यापम घोटाले के दौरान पूरे राज्य में नौकरियों में भर्ती का फर्जी अभियान बड़े पैमाने पर चलाया गया था.

सभी संकेत इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि बीजेपी की पिछली तीन बार की सरकारों की ये गड़बड़ियां ही, उस ग्रामीण की चुटीली बात की बुनियाद बनी हैं, जिसने कहा था कि, 'रोटी एक तरफ ज्यादा सिंक गई है.'