view all

मध्य प्रदेश के कड़े चुनावी मुकाबले में कांग्रेस का सेल्फ गोल

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का जिक्र कर एक बार फिर सेल्फ गोल मारा है

Dinesh Gupta

मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का जिक्र कर एक बार फिर सेल्फ गोल मारा है. संघ का जिक्र होने से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इसे चुनावी मुद्दे में बदलना शुरू कर दिया है. शिवराज सिंह चौहान से नाराज कार्यकर्ता इस मुद्दे के कारण धीरे-धीरे चुनाव मैदान में सक्रिय होता जा रहा है.

कांग्रेस ने वचन पत्र में कहा कि सरकारी कर्मचारी नहीं जा सकेंगे शाखा


मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने विधानसभा चुनाव में इस बार घोषणा पत्र को वचन पत्र के नाम से जारी किया है. कांग्रेस के इस वचन पत्र में कहा गया है कि शासकीय परिसरों में संघ की शाखाएं लगाए जाने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा एवं शासकीय सेवकों को शाखा जाने के लिए दी गई छूट को निरस्त किया जाएगा. कांग्रेस के इस वचन पत्र में संघ का जिक्र आते ही बीजेपी ने इस मुद्दे को लपकने में देर नहीं की. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कि संघ की शाखाएं सरकारी कार्यालयों में भी लगेगी और सरकारी कर्मचारी भी आरएसएस की शाखा में हिस्सा लेंगे, कोई इस पर रोक नही लगा सकता.

राकेश सिंह (फोटो: फेसबुक से साभार)

प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष राकेश सिंह ने कहा कि कांग्रेस के विकास के मुद्दे पर चर्चा बचने के लिए संघ के मुद्दे को हवा दे रही है. पूरी कांग्रेस अब इस मामले में बचाव करती नजर आ रही है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को बार-बार इस बात की सफाई देनी पड़ रही है कि कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में संघ पर प्रतिबंध लगाने की बात नहीं की है. उन्होंने कहा कि प्रतिबंध सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के शाखा जाने पर लगाया जाएगा.

प्रदेश कांग्रेस की चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि देश-प्रदेश सभी जगह सरकारी कर्मचारियों के राजनीतिक गतिविधियों पर हिस्से लेने पर रोक है. हम मध्य प्रदेश में सिर्फ इसी नियम का पालन कराने की बात कर रहे हैं. उल्लेखनीय है कि राज्य में वर्ष 2006 से पहले तक सरकारी कर्मचारियों का शाखा जाने पर रोक लगी हुई थी. वर्ष 2000 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक आदेश जारी कर स्पष्ट तौर पर कहा था कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी शाखा जाता है, तो इस आचरण नियमों की अवहेलना माना जाएगा.

ये भी पढ़ें: मध्य प्रदेशः हिंदुत्व के एजेंडे वाले घोषणापत्र से कांग्रेस का खेल बनेगा?

शिवराज सिंह चौहान ने वर्ष 2006 में मुख्यमंत्री बनते ही इस आदेश को निरस्त (रद्द) कर दिया था और शाखा जाने पर लगे प्रतिबंध को भी हटा दिया था. शिवराज सिंह चौहान के इस कदम के बाद राज्य में आएसएस की शाखा में जाने वाले लोगों की संख्या में आश्चर्यजनक तौर पर वृद्धि देखी गई थी.

कांग्रेस की चूक से बीजेपी को मिली संजीवनी

चुनावी वचन पत्र में कांग्रेस की इस चूक ने चुनाव के मूल मुद्दों को पीछे छोड़ दिया है. आएसएस को लेकर कांग्रेस के इरादे सामने आने के बाद सरकार से नाराज बीजेपी कार्यकर्ता अब चुनाव प्रचार के लिए घर से निकलने लगे हैं. बीजेपी के कार्यकर्ताओं की बड़ी नाराजगी एट्रोसिटी एक्ट को लेकर थी. एक्ट में संशोधन का विरोध बीजेपी को कई स्तरों पर झेलना पड़ रहा है. उच्च वर्ग का उसका प्रतिबद्ध वोटर चुनाव में नोटा के उपयोग को हवा दे रहा था.

चुनाव में सपाक्स की मौजूदगी से भी बीजेपी के सामने नई चुनौती खड़ी हुई थी. मंदसौर गोलीकांड के बाद किसानों की नाराजगी के कारण बीजेपी को ग्रामीण क्षेत्र में अपनी सीटें बचाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही हैं. टिकट वितरण से भी पार्टी में बड़े स्तर पर नाराजगी सामने आई है. कई विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के दिग्गज नेता बागी के तौर मैदान में हैं. पिछले तीन दिन से संघ के प्रभावशाली प्रचारक, बीजेपी के बागी नेताओं को मनाने में लगे हुए हैं.

ये भी पढ़ें: मध्य प्रदेश चुनाव: नुक्कड़ नाटकों के जरिए मतदाताओं को लुभाएगी बीजेपी

मतदान के ठीक पहले बदली राजनीतिक हवा ने कांग्रेस को बैकफुट पर खड़ा कर दिया है. कांग्रेस के सामने राम मंदिर का मुद्दा भी चुनौती के तौर पर खड़ा हो गया है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि दिग्विजय सिंह की सक्रियता के कारण इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि चुनाव में इस बार भी अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का मुद्दा तूल पकड़ लेगा. दिग्विजय सिंह यह आशंका भी प्रकट कर चुके हैं कि मध्य प्रदेश में वोटिंग से तीन दिन पहले विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) द्वारा नागपुर और बेंगलूरू में राम मंदिर के लिए जनाग्रह रैली चुनाव को प्रभावित करने के लिए ही निकाली जा रही है.

सेल्फ गोल करने की आदी हैं मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता

मध्य प्रदेश में कांग्रेस पिछले 15 साल से सत्ता से बाहर है. कांग्रेस के लिए यह चुनाव करो या मरो वाला चुनाव है. यह आम धारणा है कि कांग्रेस यदि इस बार भी सत्ता में नहीं आ पाई तो मध्य प्रदेश की स्थिति भी उत्तर प्रदेश और बिहार की तरह हो जाएगी. पिछले एक साल में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरने के लिए जितने भी मुद्दे उठाए वो उल्टे कांग्रेस के गले की फांस बन गए.

दिग्विजय सिंह

व्यापमं के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सीबीआई पर सबूतों को छिपाने के आरोपों संबंधी जो याचिका दायर की थी, उसमें उल्टे अदालत ने दिग्विजय सिंह सहित सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं पर फर्जी दस्तावेज अदालत में पेश करने का मुकदमा कायम करा दिया. यह मुकदमा दायर होने के बाद से ही कांग्रेस ने व्यापमं मामले में चुप्पी साध ली. विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान भी कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर सीध हमला नहीं बोल पा रही है.