view all

पुण्यतिथि विशेष: अखबारों में लेख लिख कर अपना खर्च चलाते थे समाजवादी नेता मधु लिमये

उनके निधन पर मशहूर पत्रकार प्रभाष जोशी ने लिखा था कि ‘ऐसा कोई दूसरा आदमी दिखे तो बताना, उसे मैं सामने रख कर अपने बचे हुए साल जी लूंगा.’

Surendra Kishore

आज जबकि अधिकतर तथाकथित समाजवादी नेताओं के बीच पैसे कमाने की होड़ मची हुई है. मधु लिमये को उनकी पुण्यतिथि पर याद करना अधिक प्रासंगिक हो गया है.

एक मई, 1922 को महाराष्ट्र में जन्मे मधु लिमये बिहार से 4 बार लोकसभा सदस्य चुने गए थे. 8 जनवरी 1995 को एक सामान्य व्यक्ति की तरह उनका निधन हुआ. इस बीच उन्होंने कभी सादगी, संयम और सिद्धांतों का साथ नहीं छोड़ा. जो उचित समझा, वह किया. यह और बात है कि उनके कुछ विचार विवादास्पद रहे, पर उनकी मंशा कभी गलत नहीं थी.


स्वास्थ्य खराब रहने के बावजूद दिल्ली की गर्मी में भी मधु लिमये के आवास में न तो कूलर था और न ही एयर कंडीशन. फ्रीज या टी.वी. भी नहीं. ऐसी कोई सुविधा भी नहीं जो एक निम्न मध्य वर्ग के घरों में भी हुआ करती हैं. यानी सचमुच वे इस गरीब देश की अधिकतर जनता के असली प्रतिनिधि थे. 8 जनवरी 1995 को उनके निधन पर मशहूर पत्रकार प्रभाष जोशी ने लिखा था कि ‘ऐसा कोई दूसरा आदमी दिखे तो बताना, उसे मैं सामने रख कर अपने बचे हुए साल जी लूंगा.’

हालांकि ऐसा ही नाम पूर्व कम्युनिस्ट सांसद ए.के.राय का भी है, जो इन दिनों धनबाद में सामान्य जीवन बिता रहे हैं. कुछ अन्य नेता भी ऐसे होंगे. पुणे में जन्मे मधु लिमये ने देश, समाज और समाजवादी आंदोलन को जितना दिया, उसके मुकाबले उन्होंने अपने लिए कुछ लिया नहीं. जो बड़ी-बड़ी सुविधाएं अपना हक समझ कर पूर्व सांसदगण लेते रहते हैं, उन्हें समय-समय पर बढ़ाते रहने की जोरदार मांग भी करते रहते हैं, मधु जी ने वह सब भी स्वीकार नहीं किया.

मधु लिमये ( बाएं से दूसरे )

इस देश को मधु लिमये जैसे नेताओं की जरूरत है

मधु लिमये स्वतंत्रता सेनानी थे. पर उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी पेंशन स्वीकार नहीं की. उन्होंने पूर्व सांसदों के लिए तय पेंशन लेने से भी इनकार कर दिया. अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित उनके लेखों से जो पारिश्रमिक मिलता था, उसी से उनका खर्च चलता था. जब सक्रिय राजनीति लायक उनका स्वास्थ्य नहीं रहा तो उन्होंने खुद को सिर्फ लिखने- पढ़ने के काम में लगा दिया.

ये भी पढ़ें: जीप घोटाले की अनदेखी ने ही कर दिया था भ्रष्टाचारियों का काम आसान

गरीबी में रहने के बावजूद मधु लिमये में न तो त्याग का कोई अहंकार था और न ही दीनता का कोई भाव. सक्रिय राजनीति से रिटायर हो जाने के बाद उनका रूटीन बदल गया था. सुबह वे लिखते-पढ़ते थे और शाम में लोगों से मिलते-जुलते थे. कोई जिद्दी समाजवादी सुबह के वक्त उनके यहां पहुंच जाता तो वे हाथ जोड़ कर उससे कहते थे कि ‘बाद में आइए, लिखने से ही मेरा घर-खर्च चलता है. मिलने के समय जब कोई उनके पास जाता तो वे बड़े प्यार से मिलते थे और खुद काॅफी बना कर पिलाते थे.

कई बार लोग पूछते हैं कि इस गरीब देश को कैसा नेता चाहिए? इस सवाल पर मधु लिमये जैसे नेता का नाम लिया जा सकता है. यानी ऐसा व्यक्ति जो समाज से जितना ले, उसकी अपेक्षा अधिक समाज को दे. मधु लिमये ने न सिर्फ समाजवादी आंदोलन को मजबूत किया बल्कि उन्होंने संसद की चर्चाओं में भी सराहनीय योगदान दिया. उन्हें मदद करने के लिए उनकी अर्धांगिनी चंपा लिमये भी उनके साथ थीं, जो शादी से पहले चंपा गुप्ते थीं. उनसे संकोची मधु लिमये का 1951 में प्रेम विवाह हुआ था.

राष्ट्र सेवा दल के अध्ययन मंडल में चंपा गुप्ते से मधु लिमये की मुलाकात हुई थी. मधु लिमये वहां भाषण देने जाते थे. चंपा लिमये का भी समाजवादी आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा. वैचारिक समानता के कारण व मधु लिमये की तेजस्विता और गंभीरता के कारण यह विवाह हुआ. चंपा गुप्ते के पिता अमलनेर के प्रसिद्ध वकील थे. उनका परिवार सम्पन्न था. दूसरी ओर मधु लिमये के जीवन में विपन्नता और संघर्ष थे. गोवा सत्याग्रह में मधु लिमये का योगदान महत्वपूर्ण रहा.

बिहार से चुनकर लोकसभा पहुंचे थे मधु लिमये

मधु लिमये को लोकसभा में भेजने का श्रेय बिहार प्रदेश और कुछ समाजवादी नेताओं और कार्यकर्ताओं को था. लोकसभा में जाने के बाद उन्होंने यह दिखा दिया कि किस तरह बिना कोई शोरगुल और हंगामा किए शालीन तरीके से भी संसद में प्रभावशाली ढंग से जनता की आवाज उठाई जा सकती है. पर इसके लिए संसदीय प्रक्रियाओं का गहन अध्ययन जरूरी था, जो उन्होंने धैर्यपूर्वक किया था. मधु जब लोकसभा में खड़ा होते थे, तो सत्ता पक्ष सावधान होकर अपनी सीटों पर बैठ जाता था. कुछ मंत्री आशंकित हो जाते थे.

ये भी पढ़ें: पुण्यतिथि विशेष: ललित नारायण मिश्र हत्याकांड की फिर से जांच कराने की मांग पर अड़े हैं उनके पुत्र

सन् 1964 में मुंगेर में हुए एक उपचुनाव के जरिए मधु लिमये पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर लोकसभा में पहुंचे. दूसरी बार जब वे सन् 1967 में मुंगेर से ही चुनाव लड़ रहे थे तो प्रचार के दौरान उन पर कातिलाना हमला हुआ. उन पर हुए हमले को राम देव सिंह यादव ने नहीं रोका होता तो मधु लिमये का बचना कठिन था.

हालांकि तब वे बुरी तरह घायल हो गए थे. बाद में राम देव सिंह यादव बिहार सरकार के राज्य मंत्री भी बने. मधु लिमये सन् 1973 के उप चुनाव और सन् 1977 के आम चुनाव के जरिए बांका से चुनकर लोकसभा में गए थे.

ये भी पढ़ें: लालू की सजा पर न होता बवाल अगर इस चेतावनी पर किसी ने किया होता गौर

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं )