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2019 की लड़ाई के लिए कांग्रेस को कैडर बेस्ड पार्टी में बदल रहे हैं राहुल गांधी

राहुल गांधी जानते हैं कि अगला लोकसभा चुनाव मोदी-शाह के खिलाफ लड़ना है इसलिए वो संगठन को मजबूत करने की कोशिश और कवायद में जुटे हैं

Syed Mojiz Imam

कांग्रेस का कैडर बीजेपी की तरह मजबूत नहीं रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी के भीतर कैडर को मजबूती से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके लिए कार्यकर्ताओं का डाटा बेस तैयार किया जा रहा है. इसके बाद हर कार्यकर्ता को पार्टी के वाट्सऐप ग्रुप और एसएमएस के जरिए जोड़ा जाएगा. गाहे-बगाहे पार्टी के बड़े नेता वर्कर को फोन कर के जमीनी हालात का भी पता करते रहेंगे.

कांग्रेस के ऑडियो विजुअल प्रचार माध्यम को फोन के जरिए कार्यकर्ता को भेजा जाएगा. कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग का बंदोबस्त किया जा रहा है जिससे कार्यकर्ता को पार्टी की विचारधारा और कार्यक्रम के बारे में सही तरीके से जानकारी मुहैया कराई जाएगी. कांग्रेस नेहरू-गांधी की विचारधारा को जनता के पास ले जाने के लिए योजना बना रही है, जिसमें कार्यकर्ता को ही संचार का माध्यम बनाया जाएगा, जिससे कार्यकर्ता गली-मोहल्ले में जनता को समझाने में कामयाब हो सके.


पार्टी की ओर से कार्यकर्ताओं के लिए एक बुकलेट देने की तैयारी हो रही है, जिससे कार्यकर्ता को किसी और संचार माध्यम का सहारा न लेना पड़े. कार्यक्रम महत्वाकांक्षी है लेकिन 2019 के चुनाव से पहले इस तरह की किसी भी योजना पर सवाल खड़ा किया जा रहा है क्योंकि समय कम है.

राहुल गांधी ने 2019 के आम चुनाव को देखते हुए अशोक गहलोत को नई जिम्मेदारी सौंपी है

बीजेपी और कांग्रेस में फर्क है. बीजेपी का संगठन महासचिव आरएसएस बैकग्राउंड से आता है, जो संगठन के कामकाज में दक्ष होता है. राहुल गांधी ने सोच समझकर अशोक गहलोत को जिम्मेदारी दी है. जो कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसआईयू से पार्टी का काम कर रहे हैं.अशोक गहलोत संगठन में कमिटेड कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी करने में राहुल गांधी की मदद करेंगे.

डाटाबेस दिलाएगा पद और इनाम

कई राज्यों में डाटाबेस तैयार करने की कवायद चल रही है. यह काम डेटा एनालिटिक्स डिपार्टमेंट की निगरानी में चल रहा है. फ़र्स्टपोस्ट ने पहले ही जानकारी दी थी कि पार्टी ने शक्ति एेप लॉन्च किया है. अभी हर ब्लॉक से 400 कार्यकर्ताओं को सीधे पार्टी के डेटाबेस से जोड़ा जा रहा है, जिसमें शर्त है कि हर बूथ से कम से कम दो कार्यकर्ताओं को जोड़ा जाएगा. हर जिले में टारगेट तय कर दिया गया है. इस तरह का सदस्यता अभियान पहली बार चल रहा है.

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इस सदस्यता अभियान की खूबी है कि एक मोबाइल फोन से एक ही व्यक्ति जुड़ सकता है. इसमें फर्जीवाड़े की गुंजाइश कम है. जिसमें जो कार्यकर्ता सबसे ज्यादा कार्यकर्ताओं को डाटाबेस से जोड़ेगा उसको सीधे राहुल गांधी से मिलने का वक्त मिलेगा. यानी राहुल गांधी से मिलने की कीमत भी तय कर दी गयी है. यह भी कहा जा रहा है कि जो वर्कर इस डिजिटल अभियान में पहले नंबर पर आएगा उसे ही ब्लॉक कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाएगा. इस तरह जिले की कमान देने की भी कवायद की जा रही है.

माना जाता है कि कांग्रेस के वर्कर बीजेपी के कार्यकर्ता की तरह फोकस्ड और अनुशासित नहीं हैं

कांग्रेस कार्यकर्ता को देगी ट्रेनिंग

कांग्रेस अपने कैडर को मजबूत करने के लिए कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग भी दे रही है. यह काम न्याय पंचायत स्तर से शुरू होकर प्रदेश स्तर तक किया जा रहा है. खासकर चुनाव में जा रहे राज्यों में यह काम तेजी से चल रहा है. जिले के ट्रेनिंग वर्कशॉप में विधायक दल के नेता और प्रदेश अध्यक्ष भी मौजूद रहते हैं. वर्कशाप में यह बताया जा रहा है कि यूपीए की पूर्ववर्ती सरकारों ने क्या किया और वर्तमान सरकार क्या कर रही है? कांग्रेस के बड़े नेताओं की सोच क्या थी? पार्टी की विचारधारा क्या है? खासकर आर्थिक और सामाजिक नीति क्या है?

कार्यकर्ताओं से भी इन मुद्दों पर फीडबैक लिया जा रहा है. इस कार्यक्रम से जुड़े एक नेता का कहना है कि इससे कार्यकर्ता का मनोबल बढ़ता है. दूसरा नेता भी इससे हर कार्यकर्ता से रूबरू हो जाता है. डाटाबेस होने के कारण जब चाहे उस कार्यकर्ता से किसी भी मुद्दे पर फीडबैक लिया जा सकता है.

दलित और पिछड़ों पर फोकस

कांग्रेस को आभास हो गया है कि 2019 के चुनाव में दलित और पिछड़े मतदाता काफी महत्वपूर्ण हैं. इसलिए दलित और पिछड़ों पर पार्टी ज्यादा फोकस कर रही है. कांग्रेस में अलग से दलित पिछड़ों और अल्पसंख्यक कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी जा रही है. जिससे पार्टी की पहुंच इन समाज के भीतर बन सके. खासकर यूपीए सरकार के दौरान चलाई जा रही सामाजिक योजनाओं के बारे में बताना. सबसे महत्वपूर्ण आरटीई (शिक्षा का अधिकार) और राइट टू फूड (भोजन का अधिकार) का कानून पार्टी के मुख्य एजेंडे में शामिल है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बताएगी कि यह कानून यूपीए सरकार लाई थी लेकिन इसको ठीक से लागू नहीं किया गया है.

कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने पार्टी और संगठन में बदलाव की नई शुरुआत की है (फोटो: रॉयटर)

यूथ कांग्रेस एनएसआईयू में पहले से ट्रेनिंग अभियान

यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई में इस तरह की ट्रेनिंग पहले से चल रही है. एनएसयूआई छात्रों को पार्टी की विचारधारा से जोड़ने के लिए वर्कशॉप करता रहता है. जिसमें गांधी और नेहरू की विचारधारा को समझाने की कोशिश की जाती है. एनएसयूआई इस तरह का वर्कशॉप प्रदेश स्तर पर करता रहा है. एनएसयूआई के नार्थ विंग के ट्रेनिंग इंचार्ज आसिफ़ जाह का कहना है कि मूलरूप से छात्र को कांग्रेस की विचारधार को बताना और सरकार की नाकामियों से आगाह करना है. मसलन सरकार किस तरह शिक्षा का निजीकरण कर रही है. जिससे छात्र के लिए पढ़ना मुश्किल हो सकता है.

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कांग्रेस के नेता कोई भी दावे कर रहे हों लेकिन यह बात दीगर है कि बीजेपी और मोदी सरकार को सत्ता में लाने में यूथ का योगदान सबसे ज्यादा है. इसलिए कांग्रेस का फोकस यूथ पर है.

पांच साल से नहीं लगा कांग्रेस का ट्रेनिंग कैंप

कांग्रेस में बाकायदा ट्रेनिंग के लिए अलग विभाग बनाया गया है. लेकिन पिछले 5 साल से कोई भी ट्रेनिग का कैंप नहीं लगा है. जबकि 2014 के चुनाव हारने के बाद पार्टी में परिवर्तन की बात लगातार उठ रही थी. उसके बाद भी सबसे बड़े कार्यक्रम को तरजीह नहीं दी गई है. इस ट्रेनिंग की शुरुआत भी जिला स्तर के सक्रिय कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से होती थी. जिसके बाद तेज-तर्रार कार्यकर्ताओं का चयन प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर के कैंप की ट्रेनिंग के लिए किया जाता था. राहुल गांधी इस कार्यक्रम को ही दोबारा खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं.

राहुल गांधी को लगता है कि संगठन को मजबूत बनाकर ही नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी को  2019 में हराया जा सकता है

कैडर बनाम मॉस बेस्ड पार्टी

कांग्रेस पार्टी के भीतर इस बात के लिए जद्दोजहद होता रहा है. 2014 की चुनावी हार के बाद राहुल गांधी ने कई बैठकों में कहा कि अगर पार्टी का कैडर मजबूत होता तो शायद दहाई के आंकड़ों में न पहुंचते. हालांकि वरिष्ठ नेताओं का कहना था कि कांग्रेस मास बेस्ड पार्टी है. जनता ही कांग्रेस की वर्कर है लेकिन एतराज के बावजूद राहुल गांधी कैडर खड़ा करने की कोशिश यूथ और एनएसयूआई के जरिए करते रहे हैं.

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तमाम लोगों का दावा है कि चुनावी हवा के रूख से जीत और हार तय होते हैं. लेकिन बीजेपी के कैडर ने इसे गलत साबित कर दिया है. त्रिपुरा के चुनाव से यह साबित हो गया कि वर्कर अगर मजबूत हो तो अनहोनी होनी में बदल सकती है.

वर्कर का हो रहा प्रमोशन

राहुल गांधी ने पिछले साल दिसंबर में अध्यक्ष बनने के बाद कई लोगों को पार्टी के पदों पर नियुक्त किया है. राजीव सातंव को गुजरात का प्रभारी बनाया है, जो यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं. अनुग्रह नारायण सिंह को उत्तराखंड का प्रभारी बनाया है. जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र यूनियन के अध्यक्ष रह चुके हैं. इसके अलावा इलाहाबाद उत्तर से विधायक भी रहे हैं. यह सिर्फ बानगी भर है. राहुल गांधी भी समझ रहे हैं कि 2019 का चुनाव मोदी-शाह के खिलाफ लड़ना है. चुनौती कठिन है इसलिए वो संगठन को मजबूत करने की कोशिश और कवायद कर रहे हैं.