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पप्पू यादव समेत कई नेता पाला बदलने को तैयार लेकिन टिकट मिलने की गारंटी नहीं!

बिहार से लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले कुल 40 में से आधा दर्जन लड़ाकूओं के बीच कन्फर्म टिकट को लेकर भय और बेचैनी बढ़ती जा रही है.

Kanhaiya Bhelari

जिस गति से महाभारत जंग की समय सीमा घटती जा रही है उससे कई गुणा तेज गति से बिहार से लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले कुल 40 में से आधा दर्जन लड़ाकूओं के बीच कन्फर्म टिकट को लेकर भय और बेचैनी बढ़ती जा रही है. ये लोग मन से अपने पुराने घर का त्याग कर चुके हैं. इंतजार सिर्फ शेल्टर दाता के टावर से सिग्नल मिलने का है.

दूसरे घर में जाने के लिए बेचैन ऐसे चुनावी ‘महारथियों’ के लिए कन्फर्म टिकट की गारंटी की संभावना कम ही दिखती है. आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ऐसे आया राम-गया राम के लिए एक कहावत भी कहते रहे हैं कि ‘जो लोग अपनी जात और जमात छोड़कर दूसरे के पास चले जाते हैं उनका भाव कम हो जाता है. लोग कद्र नहीं करते हैं. वह ईख का रस निकालने वाली कोल्हू के माफिक जिंदगीभर दूआरे-दूआरे परिक्रमा करते रहते हैं.’


बहरहाल, पार्टी छोड़कर भागने वालों की कतार में पहले पायदान पर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का नाम है. विवादास्पद नेचर के नेता पप्पू यादव 2014 का चुनाव मधेपुरा से आरजेडी की टिकट पर जीते थे. लालू यादव के राजनीतिक वारिस बनने के चक्कर में आरजेडी की पहली फैमिली से दुश्मनी मोल ले लिए. अलग पार्टी बनाकर 2015 विधानसभा चुनाव के समय एनडीए के साथ मिलकर अपने राजनीतिक गुरु लालू यादव को ही पटकने में तन-मन से लग गए लेकिन गच्चा खा गए.

पूछ घटती गई!

एनडीए में इनकी पूछ घटती गई. एनडीए नेतृत्व से मैसेज मिल गया है कि जगह मिलने पर आपको पास दिया जाएगा. उनको पता है कि उन्हें आरजेडी में कभी जगह नहीं मिलेगी. सुपौल से सांसद और पत्नी रंजीता रंजन के मार्फत कांग्रेस की सवारी करके संसद के ढुकने का प्रयास कर रहे हैं. लालू यादव ने जेल में जाकर मिलने वाले कांग्रेसी नेताओं से साफ कह दिया है कि पप्पू यादव को अपने घर में बैठने के लिए टूटी कुर्सी भी न दें. पिछले चार साल से मेरे खिलाफ बहुत अनाप-सनाप बोल रहा है. जीतने के बाद फिर बेकाबू हो जाएगा.

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दूसरे पायदान पर दरभंगा से बीजपी सांसद कीर्ति आजाद हैं. अखबारों में छप रही खबरों की मानें तो आजाद अगली 12 फरवरी को देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का दामन थाम लेंगे. आजाद को कोट करते हुए पटना से प्रकाशित एक दैनिक अखबार ने लिखा है कि बीजेपी से नाराज चल रहे सांसद कांग्रेस के टिकट पर दरभंगा से ही अगला लोकसभा चुनाव लड़ेगें. लालू दरबार से छनकर आ रही खबर के मुताबिक आरजेरी दरभंगा सीट को कभी कांग्रेस को नहीं देगी. मोहम्मद अली अशरफ फातमी को आरजेडी 7 बार यहां का उम्मीदवार बना चुकी है और चार बार जीते भी हैं. केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. वह सीवान के ‘साहेब’ के खास आदमी हैं. लालू यादव या उनके बेटे और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव में अभी इतनी नैतिक हिम्मत नहीं उपजी है कि ‘साहेब’ को नाराज कर दें.

वैशाली और खगड़िया लोकसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद रामा किशोर सिंह और चैधरी महबूब अली कैसर भी महागठबंधन के दरबार में टिकट के लिए फरियाद कर रहे हैं. एलजेपी चीफ और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने अपने दोनों सांसदो को डिजीटल मैसेज भेज दिया है कि ‘मेरे अंगने में आप लोगों का कोई काम नहीं है’. रामा किशोर सिंह ने 9 फरवरी को रांची जेल में आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव से मुलाकात की है. आरजेडी सूत्रों का कहना है कि रामा किशोर सिंह ने आरा या शिवहर से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की है. हालांकि इनकी इच्छा पुरी होगी इसमें संदेह है. शहाबाद जोन के चार सीटों में से तीन पर कोई वैकेन्सी नहीं हैं. सासाराम रिजर्व से मीरा कुमार, बक्सर से आरजेडी के जगदानन्द सिंह, काराकाट से आरएलएसपी के उपेन्द्र कुशवाहा है. जातीय समीकरण को ठीक-ठाक रखने के लिए बाकी बची आरा सीट पर किसी भी हालत में यादव को उम्मीदवार बनाना ही है. खबर है कि आरजेडी प्रमुख ने शिवहर सीट को लवली आनन्द को दे दी है.

पल्टी मारने को तैयार!

चौधरी महबूब अली कैसर अपने पुराने घर कांग्रेस में पल्टी मार कर खगड़िया सीट को रिटेन करना चाहते हैं. इसको लेकर कांग्रेस नेतुत्व से उनकी कई राउन्ड की बातचीत भी हो चुकी है. लेकिन लालू यादव वहां से कभी कुशवाहा तो कभी यादव को उम्मीदवार बनाते रहे हैं. कोसी नदी की कैचमेंट एरिया में आने वाले इस क्षेत्र में इन दो जातियों के बाद मल्लाहों की बहुलता है. इसी कारण विकासशील इंसान पार्टी के चीफ मुकेश सहनी की नजर भी खगड़िया लोकसभा सीट पर बनी है. आरजेडी सूत्रों की माने तो पार्टी इस सीट को नहीं छोड़ेगी.

उसी प्रकार जहानाबाद क्षेत्र से आरएलएसपी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे अरुण कुमार भी एनडीए से तलाक लेकर और अलग पार्टी बनाकर अगले महाभारत में महागठबंधन के बंधन में बंधने के लिए बेचैन है. हालांकि अभी तक आरजेडी के टॉवर से सिग्नल नहीं मिला है और मिलने की उम्मीद भी नहीं के बराबर है. नक्सली प्रभावित इस क्षेत्र से अगड़ी जाति से आने वाले किसी व्यक्ति को उम्मीदवार बनाना महागठबंधन खासकर आरजेडी के लिए राजनीतिक रूप से घातक सिद्ध होगा. ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है. अपनी बनी बनाई राजनीतिक हाउस को छोड़कर आने वालो में शत्रुघ्न सिन्हा ही ऐसे सांसद है जिनका महागठबंधन में दिल खोलकर स्वागत है और पटना साहिब से 100 फीसदी उनका टिकट कन्फर्म है.

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सांसदों के अलावा ऐसे भी कई योद्धा हैं जो साल 2014 की महाभारत हारकर 2019 में भागीदारी के लिए दंड बैठक कर रहे थे. पिछले चुनाव में बीजेपी 30, जेडीयू 38, आरजेडी 27 और कांग्रेस ने 12 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे. लेकिन बदलते राजनीतिक परिस्थिति में बीजेपी के 8, जनता दल यूनाइटेड के 18, आरजेडी के 7 और कांग्रेस के 6 योद्धा टिकट की उम्मीद बांधे ‘विरोधियों’ के दरवाजे पर दश्तक दे रहे हैं. इनमें पूर्व बीजपी सांसद और सीनियर आईएस एनके सिंह के छोटे भाई उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह और जनता दल यूनाइडेड नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी प्रमुख हैं. सिंह पुर्णिया और चौधरी जमुई से चुनाव हार गए थे.