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लालू राज में स्कूटर पर ढोए जाते थे सांड, सीएजी की रिपोर्ट में हुआ था खुलासा!

याद रहे कि 90 के दशक में सीएजी की रपट में कहा गया था कि स्कूटर पर सांड ढोए गए हैं. यानी सांड की ढुलाई के बिल में जिस वाहन का नंबर दिया गया था, वह ट्रक नहीं बल्कि स्कूटर का नंबर था

Surendra Kishore

एक तरफ सरकारी वीर्य तंतु उत्पादन केंद्रों के 44 में से 22 सांड चारे के बिना मर गए, दूसरी ओर बिहार के पशुपालन माफिया नाजायज तरीके से अरबों रुपए सरकारी खजानों से निकाल ले गए. पूरे पशुपालन विभाग की दुर्दशा कर देने वाले ‘सत्ताधारियों’ ने बजट से अधिक पैसे सरकारी खजानों से निकाल लिए.

बिहार के चारा घोटाले से पहले तो ऐसी करतूत की शायद ही किसी को खबर हो कि बजट से भी अधिक पैसे निकाले जा सकते हैं. घोटालेबाजों का यह अभिनव करतब था जिसे सीबीआई और अदालत ने पकड़ा.


जिस चारा घोटाले में लोकतंत्र के लगभग सभी स्तंभों का थोड़ा-बहुत योगदान रहा हो, वहां भला असंभव क्या था! पटना हाईकोर्ट ने 1996 में चारा घोटाले की जांच का भार सीबीआई को सौंपते समय कहा भी था कि ‘उच्चस्तरीय साजिश के बगैर यह घोटाला संभव नहीं था’. जांच का बिहार सरकार ने विरोध किया था. बिहार सरकार ने अपनी ओर से लीपापोती के लिए जो तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी, उनमें से दो अफसर बाद में चारा घोटाले के ही आरोप में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए थे.

सन 1991-92 में बिहार सरकार के पशुपालन विभाग का कुल बजट 59 करोड़ 10 लाख रुपए का था. पर उस अवधि में घोटालेबाजों ने 129 करोड़ 82 लाख रुपए सरकारी खजानों से निकाल लिए. ऐसा उन लोगों ने फर्जी बिलों के आधार पर किया. उन्हें कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था. क्योंकि उन्हें उच्चस्तरीय संरक्षण जो हासिल था!

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सन 1995-96 वित्तीय वर्ष में 228 करोड़ 61 लाख रुपए निकाल लिए गए. जबकि, उस साल का पशुपालन विभाग का बजट मात्र 82 करोड़ 12 लाख रुपए का था. बीच के वर्षों में भी इसी तरह जालसाजी करके अतिरिक्त निकासी हुई.

एक बार डोरंडा (रांची) के कोषागार पदाधिकारी ने भारी निकासी देख कर ऐसे बिलों के भुगतान पर रोक लगा दी तो पटना सचिवालय से उसे चिट्ठियां मिलीं. एक चिट्ठी वित्त विभाग के संयुक्त सचिव ने 1993 में लिखी थी. संयुक्त सचिव ने भुगतान जारी रखने का निदेश दिया. साथ ही 17 दिसंबर, 1993 को राज्य कोषागार पदाधिकारी ने डोरंडा कोषागार अधिकारी को ऐसी ही चिट्ठी लिखी. जाहिर है कि ऐसी चिट्ठियां किसके निर्देश से लिखी जा रही थीं.

ऐसी चिट्ठियों के बाद कोषागार पदाधिकारी अपनी रोक हटा लेने को मजबूर हो गए. फिर तो फर्जी निकासी और भी तेज हो गई. याद रहे कि राज्य सरकार अन्य विभागों की समय-समय पर समीक्षा करती थी, पर पशुपालन विभाग की नहीं. बिहार सरकार ने अपने विभागों को यह आदेश दे रखा था कि हर महीने वो पूरे साल के बजट की सिर्फ 8 फीसदी राशि की ही निकासी करें. पर पशुपालन विभाग को इस बंधन से छूट मिली हुई थी. बहाना था कि पशुओं की जान बचाने के लिए ऐसी छूट जरूरी थी. पर ऐसी ही छूट स्वास्थ्य विभाग को भी नहीं थी जहां मनुष्य की जान बचाने के लिए कभी-कभी अधिक खर्चें की जरूरत पड़ती है.

पर, एक विडंबना देखिए. जिस अवधि में पशुपालन विभाग के अरबों रुपए निकाले जा रहे थे, उस अवधि में इस विभाग के कामों की दुर्दशा हो रही थी. उस अवधि में पशुपालन विभाग ने कोई नई विकास योजना नहीं शुरू की. इतना ही नहीं, पहले से जारी योजनाएं भी एक-एक कर के अनुत्पादक होती चली गईं. सन 1990 से 1995 के बीच अनावश्यक मात्रा में दवाएं खरीदी गईं.

पर साथ-साथ पशुओं की बर्बादी भी होती गई. सरकारी वीर्य तंतु उत्पादन केंद्रों को उपलब्ध कराए गए 44 साड़ों में से 22 मर गए. जबकि 11 गैर-उत्पादक हो गए. 2 सांड टी.बी से ग्रस्त हो गए. बाकी 2 तरल नाइट्रोजन के अभाव में उपयोग में नहीं लाए जा सके. 7 स्थानांतरित कर दिए गए.

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राज्य के मवेशी प्रजनन केंद्रों में मवेशियों की संख्या कम होती चली गई. उस अवधि में उनकी संख्या 354 से घटकर 229 रह गई. आलोच्य अवधि में दूध नहीं देने वाली गाय-भैंस की संख्या 30 फीसदी से बढ़कर 56 फीसदी हो गई. सरकारी मवेशी प्रजनन केंद्रों में बछड़ों की मृत्यृ दर 30 फीसदी से बढ़कर 100 फीसदी हो गई. क्योंकि, उन्हें पोषणहीन भोजन दिया जाता था.

उक्त अवधि में राज्य के छह सरकारी चारा उत्पादन केंद्रों की 3207 एकड़ भूमि में से मात्र 1376 एकड़ में चारा उगाया गया. कृत्रिम गर्भाधान लक्ष्य में 59 फीसदी की कमी आई. इसके बावजूद ऊपर से नीचे तक राज्य सरकार के किसी अंग में हरकत नहीं आई.

तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने जब पशुपालन घोटाले की सीबीआई जांच की 17 अगस्त, 1990 को मुख्यमंत्री लालू यादव से सिफारिश की तो उनका विभाग ही उनसे छीन लिया गया. याद रहे कि उससे पहले मिली सीएजी की रपट में कहा गया था कि स्कूटर पर सांड ढोए गए हैं. यानी सांड की ढुलाई के बिल में जिस वाहन का नंबर दिया गया था, वह ट्रक नहीं बल्कि स्कूटर का नंबर था.