view all

लालू यादव दोषी करार: क्या अब बिहार की राजनीति लालू विहीन हो जाएगी?

लालू यादव को देवघर केस में भी अभी पिछले ही दिनों सजा सुनाई गई है जिसके बाद वो रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं.

Amitesh

चारा घोटाले के एक और मामले में आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव दोषी करार दिए गए हैं. सीबीआई की विशेष अदालत ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के साथ-साथ दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को  5 साल की सजा सुनाई है. इस मामले में सीबीआई अदालत ने 50 आरोपियों को दोषी करार दिया है जबकि 6 दूसरे आरोपियों को बरी कर दिया है.

लालू यादव को चाईबासा केस में सजा सुनाई गई है, जिसमें लगभग 34 करोड़ रुपए की अवैध निकासी को लेकर केस चल रहा था. लालू यादव को देवघर केस में भी अभी पिछले ही दिनों सजा सुनाई गई है जिसके बाद वो रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं.


झारखंड के चाईबासा कोषागार से अवैध निकासी का मामला 1992-93 का है जब लालू यादव अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री थे.

लालू यादव अब तक चारा घोटाले के तीन मामले में दोषी ठहराए जा चुके हैं. जबकि अन्य तीन मामलों में उनके खिलाफ अभी भी सुनवाई चल रही है.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाले के सभी मामलों में अलग-अलग सुनवाई का आदेश दिया था और इन सभी मामलों की सुनवाई भी जल्द करने को कहा था. उसके बाद से ही लालू लगातार सीबीआई की विशेष अदालत के चक्कर लगाते रहे हैं. अब एक-एक कर आ रहे फैसले लालू की मुश्किलें बढ़ाते जा रहे हैं.

लेकिन, लालू की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं. लालू यादव के लिए मुश्किल है कि अलग-अलग मामलों में उनके परिवार के बाकी सदस्य भी जांच के दायरे में हैं. भ्रष्टाचार के कई दूसरे मामले भी लालू के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं. जिन भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर लालू यादव का साथ छोड़कर नीतीश कुमार फिर से बीजेपी के साथ हो गए, उसी मामले में लालू यादव के परिवार के दूसरे सदस्य भी अभी जांच के शिकंजे में हैं. लालू के बेटे तेजस्वी यादव, राज्यसभा सांसद और लालू की  बेटी मीसा भारती या फिर पत्नी राबड़ी देवी के ऊपर भी जांच की तलवार लटक रही है.

अब क्या होगा आरजेडी का ?

यही बात बिहार की सियासत में इस वक्त चर्चा का विषय बना हुई है क्योंकि एक के बाद एक मामले में लालू को हो रही जेल के चलते बिहार की सियासत पर इसका असर पड़ना लाजिमी है. यह असर लालू की पार्टी और परिवार के भीतर भी होगी.

ये भी पढ़ें: चारा घोटाला: क्या है चाईबासा कोषागार फर्जी निकासी मामला?

लालू की गैर-मौजूदगी में पार्टी की बागडोर किसके हाथों में होगी. इस बात से लालू ने पहले ही पर्दा उठा दिया है. लेकिन, तेजस्वी यादव क्या वाकई में पार्टी के लिए संकटमोचन का काम कर पाएंगे यह लाख टके का सवाल है. संकट में फंसे परिवार के दूसरे सदस्य पार्टी को लालू के बिना कैसे आगे बढ़ा पाएंगे, यह भी बड़ा सवाल बना हुआ है.

लालू यादव को इस बात का अंदाजा था कि चारा घोटाले के मामले में उनको परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. लालू ने बहुत ही चतुराई से पार्टी संगठन के चुनाव को पिछले साल ही निपटा दिया था. लालू यादव को आरजेडी का फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया और बिहार की कमान लालू के करीबी रामचंद्र पूर्वे को दे दी गई.

उधर, लालू ने बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर छोटे बेटे तेजस्वी यादव को बैठाकर संकेत दे दिया है कि उनका उत्तराधिकारी कोई और नहीं बल्कि तेजस्वी यादव हैं. पार्टी की तरफ से बिहार में अगले चुनाव में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर तेजस्वी के नाम को आगे बढ़ाकर भी उत्तराधिकार की लड़ाई को खत्म करने की कोशिश भी की गई है. लेकिन सियासत में पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता का हस्तांतरण इतना आसान नहीं होता, जितना दिख रहा है.

तेजस्वी के सामने सबसे बड़ी समस्या लालू यादव की गैर मौजूदगी में पूरी पार्टी को एकजुट रखने की होगी. अब्दुल बारी सिद्दीकी सरीखे पार्टी के कई सीनियर नेताओं की तेजस्वी के अधीन काम करने को लेकर नाखुशी पहले भी सामने आ चुकी है. ऐसे में लालू के जेल जाने के बाद पार्टी के फैसले लेने में सहमति बनाने पर तेजस्वी को परेशानी हो सकती है. अगर तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के मामले में खुद शिकंजा कसा तो पार्टी और परिवार के लिए मुश्किलें और भी बढ़ सकती हैं.

तेजप्रताप को संभालना होगा मुश्किल !

दूसरी तरफ, परिवार के भीतर तेजस्वी के साथ-साथ लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं. तेजप्रताप की आरजेडी के भीतर अलग ही फैन फॉलोइंग है. उनके ठेंठ-गंवई अंदाज को आरजेडी कार्यकर्ता लालू के पुराने अंदाज से जोड़कर देखते हैं.

ये बात अलग है कि तेजप्रताप की भाषा राजनीतिक मर्यादा की सीमाएं भी लांघती रहती हैं. लेकिन, लालू यादव की गैर-मौजूदगी में तेजप्रताप जैसे लोगों के बयानों पर डैमेज कंट्रोल करना पार्टी और परिवार दोनों के लिए परेशानी वाला होगा.

ये भी पढ़ें: पहले करात अब येचुरी: लेफ्ट की न समझ आने वाली राजनीति कब बदलेगी

इसके अलावा लालू यादव की बेटी मीसा भारती राज्यसभा सांसद हैं. उनकी भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जगजाहिर है. ऐसे में तेजस्वी को अपने विरोधियों के साथ-साथ पार्टी और परिवार के बीच के वर्चस्व विवाद से निपटना पड़ सकता है.

लेकिन, लालू यादव के फिर से भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने के बाद अब बिहार की सियासत में भी गहरा असर होने वाला है. इस वक्त नीतीश कुमार और बीजेपी बिहार में मिलकर सरकार चला रहे हैं. इस वक्त एनडीए के साथ रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी भी हैं. फिलहाल बिहार सरकार के साथ नंबर है. लेकिन, लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से ही सियासी बिसात बिछनी शुरू हो गई है.

कांग्रेस-आरजेडी का समीकरण अब कैसा होगा ?

लालू को सजा के बाद कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल होगी. जिस सजायाफ्ता लालू यादव के मसले पर 2013 में राहुल गांधी ने पार्टी उपाध्यक्ष रहते कड़े तेवर दिखाए थे, अब क्या राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के बाद अपना नजरिया बदल लेंगे? क्या राहुल गांधी चारा घोटाले के दूसरे मामले में दोषी लालू के साथ लोकसभा चुनाव में आगे बढ़ पाएंगे? फिलहाल संकेत तो ऐसे ही लग रहे हैं. पिछले महीने तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की मुलाकात के बाद इस तरह के कयास लगाए जा रहे हैं.

बिहार में कांग्रेस लंबे समय से लालू यादव की पार्टी आरजेडी पर निर्भर रहती आई है. अब लालू यादव को सजा होने के बावजूद बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के बीच गठबंधन पर बात आगे बढ़ सकती है. इस वक्त कांग्रेस के साथ न खुलकर अखिलेश यादव ही आना चाह रहे हैं और न ही मायावती. सीपीएम ने भी कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने से इनकार ही कर दिया है. ऐसे में दागी लालू के साथ हाथ मिलाने के अलावा राहुल गांधी के पास कोई दूसरा चारा नहीं दिख रहा है.

फिलहाल लोकसभा चुनाव में तो अभी एक साल का वक्त बचा है. लेकिन, लालू को हो रही एक के बाद एक सजा ने लालू और आरजेडी को मुश्किल में डाल दिया है. इसका सीधा असर बिहार की सियासत पर पड़ने वाला है.