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लालू यादव को रिम्स जाने से क्यों लग रहा था डर?

मेडिकल बोर्ड में मौजूद मूत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. जमाल पर आरोप लगा था कि उन्होंने स्टोन निकालने के लिए एक महिला की बांई किडनी की जगह दांई किडनी का ऑपरेशन कर दिया था

Anand Dutta

राजनीतिक गहमागहमी के बीच तमतमाए लालू प्रसाद यादव मंगलवार एक मई को दिल्ली के एम्स से वापस रांची के रिम्स में भर्ती हो गए. रास्ते में लगभग सभी स्टेशनों पर आरजेडी समर्थकों ने नारेबाजी के साथ उनका जोरदार स्वागत किया. रांची में राजधानी एक्सप्रेस सुबह 9 बजे पहुंची. पहले जहां यह ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर रुकती थी, लालू यादव की वजह से इसे एक नंबर पर लाया गया.

रांची के सदर डीएसपी विकासचंद्र श्रीवास्तव के नेतृत्व में लगभग 25 पुलिसकर्मियों की के साथ लालू स्ट्रेचर पर उतरे, एंबुलेंस मैं बैठे और सीधे रिम्स पहुंचे. कार्यकर्ताओं की मौजूदगी को देखते हुए रिम्स लगभग 25 और पुलिसबल को तैनात कर दिया गया था. उन्होंने बताया कि लालू यादव की सुरक्षा में 30 जवान, 15 हवलदार, नौ दारोगा और दो डीएसपी को लगाया गया है.


लालू यादव को कार्डियो विभाग ले जाया गया और रूम नंबर 3 में रखा गया है. उनका इलाज मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ उमेश प्रसाद की अध्यक्षता में चल रहा है. चेकअप के बाद डॉ उमेश प्रसाद ने रिम्स निदेशक के साथ बैठक कर उन्हें लालू के सेहत से जुड़ी जानकारी दी. निदेशक का कहना है कि लंबे सफर के बाद लालू रांची पहुंचे है इसीलिए स्वस्थ में थोड़ी गिरावट है, लेकिन स्थिति लगभग सामान्य है.

निदेशक ने बताया कि इसके लिए 5 सदस्यीय डॉक्टर की टीम बनाई गई है. जिसमे मेडिसिन के उमेश प्रसाद, न्यूरो के डॉ अनिल कुमार, यूरोलॉजी के डॉ अरशद जमाल, सर्जरी के आर जी बाखला लालू की जांच करेंगे. रिम्स निदेशक ने बताया कि एम्स के रिपोर्ट का अध्ययन किया जा चुका है इसी के गाइडलाइन पर रिम्स मे ईलाज शुरू होगा. अगर जरूरत पड़ी तो एम्स से सलाह भी ली जाएगी. फिलहाल उनके पैरों में सूजन है, बीपी ठीक है, शुगर 219 बढ़ी हुईं है.

इस बीच सभी के मन में सवाल यह उठ रहा है कि आखिर लालू यादव यहां क्यों नहीं रहना चाहते हैं. जानकारों का मानना है कि अगर एम्स के बाद अब अगर रिम्स के डॉक्टर ने भी उन्हें छुट्टी दे दी, तो फिर से उन्हें बिरसा मुंडा कारागार में जाना होगा. शायद लालू यादव इसी डर से एम्स से नहीं लौटना चाहते हैं.

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वहीं आरजेडी का मानना है कि रिम्स में लालू प्रसाद का सही से इलाज नहीं किया जा रहा, वहां उनकी जान को खतरा है, वर्तमान सरकार राजनीतिक रंजिश की वजह से लालू को बर्बाद करना चाहती है, ऐसे में यहां रहना उनके लिए ठीक नहीं है.

लालू के मुताबिक यह एक सियासी साजिश के तहत किया गया है और अगर उन्हें कुछ होता है तो इसके लिए एम्स प्रबंधन जिम्मेवार होगा. किडनी और हार्ट में दिक्कत के बाद लालू यादव को एम्स में भर्ती कराया गया था. इलाज का खर्चा जेल प्रशासन को उठाता है.

RIMS, RANCHI

आइए टटोलते हैं रिम्स को

जहां तक रिम्स में सुविधा की बात है, भले ही लालू यादव को कार्डियोलॉजी के प्राइवेट वार्ड में रखा गया है, लेकिन बाकी मरीजों के लिए हालात बहुत ठीक नहीं रहते हैं. चूंकि क्षमता से लगभग 10 गुणा अधिक मरीज भर्ती रहते हैं, ऐसे में अधिकतर मरीजों का इलाज फर्श और बरामदे पर ही किया जाता है.

आरजेडी प्रमुख के इलाज के लिए पांच डॉक्टरों का मेडिकल बोर्ड बनाया गया है. लेकिन इस बोर्ड के एक डॉक्टर मूत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. जमाल पर आरोप लगा था कि उन्होंने स्टोन निकालने के लिए एक महिला का बाएं की जगह दाएं किडनी का ऑपरेशन कर दिया था. जिसके बाद उन्हें इस लापरवाही के लिए निलंबित कर दिया गया था.

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वहीं बीते शनिवार को यहां लिफ्टमैन की गलती से लिफ्ट में ही एक गर्भवती महिला की मौत हो गई. रिम्स प्रबंधन ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को दी गई जानकारी में बताया है कि रिम्स में 10 लिफ्ट मरीजों के उपयोग के लिए चालू हालत में है. जबकि, रिम्स में बमुश्किल एक से दो लिफ्ट ही मरीजों के लिए संचालित है.

रिम्स में आग लगने से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है. चूंकि हॉस्पिटल की पुरानी बिल्डिंग में कहीं भी सेंट्रल फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं है. वहीं, हॉस्पिटल के कई डिपार्टमेंट्स आज भी बिना एनओसी के ही चल रहे हैं. बीते रविवार को फिजियोथेरेपी सेंटर में आग लग गई थी. किसी तरह आग पर काबू तो पा लिया गया लेकिन आग से निपटने के लिए रिम्स में पर्याप्त संसाधन नहीं हैं.

27 मार्च को मोबाइल फूड टेस्टिंग लेबोरेटरी ने रिम्स में मरीजों के भोजन में इस्तेमाल किए जा रहे खाद्य पदार्थों के नमूनों की जांच की थी. जांच में हल्दी पाउडर एवं सरसों तेल के नमूने फेल हो गए. इनमें मेटानिल येलो कलर पाया गया. स्टेट फूड एनालिस्ट चतुर्भुज मीणा ने बताया कि जांच में पाया गया कि दोनों नमूनों में जो रंग मिलाए गए हैं, वह कार्सिनोजेनिक है. कार्सिनोजेनिक के उपयोग से कैंसर होता है.

वहीं इस साल रिम्स के लिए कुल 374 करोड़ रुपए का बजट गवर्निंग बॉडी ने पास किया है. बावजूद इसके व्यवस्था एक मामूली हॉस्पिटल की तरह ही दिखती है. यही वजह है कि बीते साल केवल अगस्त माह में 133 बच्चों के मरने की खबर चर्चा में थी. एनएचआरसी ने जांच का आदेश दिया, लेकिन नतीजा आज तक सामने नहीं आ पाया है.

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सरकार की तरफ से मरीजों को दो समय का खाना मुहैया कराया जाता है, लेकिन इसकी गुणवत्ता और समय पर उपलब्ध न होने को लेकर आए दिन हंगामा होता रहता है. सफाई और लिफ्ट की स्थिति हमेशा से ही बदतर रही है. हां, इसका ऑंकोलॉजी वार्ड जरूर आपको प्राइवेट हॉस्पीटल का एहसास कराएगा, जहां हर्ट और कैंसर के मरीजों का इलाज किया जाता है. बीते अक्टूबर माह से निदेशक का पद खाली है. असिस्टेंट प्रोफेसरों के 60 पद खाली हैं.

राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) की अधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक इसकी स्थापना सन 1960 में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के नाम पर की गई थी. सन 1964 में यहां मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई. इस वक्त 150 सीट पीजी मेडिकल के लिए यहां उपलब्ध हैं. हरेक सरकारी अस्पताल की तरह यहां भी क्षमता से लगभग दस गुणा ज्यादा मरीजों का इलाज किया जाता है.

आरजेडी ने कहा, लालू यादव को रिम्स में टहलने तक में हो रही है परेशानी 

इधर तेजस्वी यादव के सलाहकार संजय यादव का कहना है कि जब लालू यादव की तबियत ठीक थी तो जेल के बजाए रिम्स क्यों भेज दिया. मरीज कह रहा उसकी तबीयत खराब है, और डॉक्टर कह रहे हैं कि सब ठीक है. रिम्स में उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया गया है. टहलने तक में परेशानी होती है. भला शुगर के पेशेंट को बिना टहलने कैसे रहने दिया जा सकता है.

दूसरी बात रिम्स से एम्स इसलिए रेफर किया गया कि वहां किडनी के इलाज वास्ते नेफ्रोलॉजिस्ट नहीं है. उनकी किडनी में अभी भी परेशानी है. रिम्स में नेफ्रोलॉजिस्ट अभी भी नहीं हैं, फिर क्यों भेजा गया. तीसरी बात एम्स में भी लालू प्रसाद झारखंड पुलिस की निगरानी में ही थे, रांची में भी उसकी निगरानी में ही रहेंगे, भला फिर एम्स में रखने में क्या परेशानी थी.

पिछली बार तबियत खराब होने के बावजूद जेल से रिम्स लाने में प्रशासन को 5 घंटे लग गए थे. जेल प्रशासन और पुलिस के तमाम कार्रवाईयों के बीच. अगर कुछ भी गड़बड़ होता है तो रांची से दिल्ली जाने में समय का अंदाजा खुद ही लगाया जा सकता है. मानसिक तौर पर तो उनको परेशान किया ही जा रहा था, अब शारिरिक तौर पर भी परेशान किया जा रहा है.