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तीन राज्यों की जीत के बाद कांग्रेस के जोश में पलीता न लगा दे कर्नाटक का सियासी ड्रामा

3 राज्यों में मिली जीत से कांग्रेस ने देश की सियासत में जोरदार वापसी की है. लेकिन कर्नाटक का सियासी ड्रामा कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में मुश्किल खड़ी कर सकता है.

Kinshuk Praval

कर्नाटक में कांग्रेस के पास 80 विधायक हैं. लेकिन इनमें 4 विधायकों पर बागी होने का आरोप लग रहा है. इन 4 बागियों की वजह से कर्नाटक में कुर्सी की कुश्ती क्लेश के चलते क्लाइमैक्स तक आ पहुंची है. इस ड्रामे में सस्पेंस बरकरार है लेकिन उससे पहले जबर्दस्त एक्शन भी दिखा. दो विधायक एक दूसरे पर टूट पड़े. नतीजतन एक MLA हॉस्पिटल में भर्ती है. कांग्रेस सफाई दे रही है कि छाती में दर्द की वजह से भर्ती हुए हैं लेकिन ये नहीं बता पा रही है कि छाती में दर्द किस वजह से हुआ. शायद इस वजह से कि कहीं लोकसभा चुनाव के संभावित सहयोगियों के पेट में न दर्द हो जाए.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जब किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए मास्टर-स्ट्रोक चला. कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन देकर सबको हैरानी में डाल दिया. मोदी विरोध के चलते कांग्रेस ने जेडीएस के साथ गठबंधन कर डाला. सब हैरान रह गए कि कर्नाटक की राजनीति में ऐसा भी हो सकता है क्योंकि जो एचडी देवगौड़ा कभी सिद्धारमैया के राजनीतिक गुरु थे लेकिन बाद में वही राजनीतिक शत्रु भी बन गए. कांग्रेस और जेडीएस ने जमकर एक दूसरे पर चुनाव में आरोपों के हमले किए थे लेकिन नतीजों के बाद कुमारस्वामी को सीएम तक बना डाला.


अब उसी गठबंधन की सरकार पर खतरा मंडरा रहा है. आरोप बीजेपी पर लगाया जा रहा है. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लग रहा है. बीजेपी पर ऑपरेशन लोटस चलाने का आरोप लग रहा है. इन सियासी कसरतों के बीच कांग्रेस और बीजेपी के विधायकों की होटल-रिजॉर्ट दौड़ हो रही है. बीजेपी अपने विधायकों को गुरुग्राम के रिजॉर्ट में ठहराती है तो कांग्रेस बंगलुरु के रिजॉर्ट में. इन सारी कवायदों के बीच एक नए घटनाक्रम ने कर्नाटक कांग्रेस में कोहराम मचा दिया है. जहां कांग्रेस विधायक दल की बैठक में से 4 विधायक नदारद रहे तो वहीं रिजॉर्ट में दो विधायकों के बीच जमकर मारपीट की खबर है. ये कांग्रेस के भीतर की कलह और गठबंधन को लेकर विधायकों के बीच उपजे असंतोष की कहानी कह रही है.

अब कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया ने चार बागी विधायकों को नोटिस भेजा है और उनसे 18 जनवरी को हुई विधायक दल की पिछली बैठक में शामिल न होने की वजह पूछी है. तो साथ ही उनके खिलाफ एंटी-डिफेक्शन कानून के तहत कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी है.

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लेकिन विधायकों के बीच मारपीट ये संकेत दे रही है कि सिद्धारमैया के नेतृत्व में विधायकों के बीच सबकुछ सामान्य नहीं है. कहीं तो कुछ तो गड़बड़ है. क्या ये डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच सबकुछ सामान्य है? आखिर किसकी वजह से कर्नाटक में गठबंधन की सरकार पर बार-बार आंच आ रही है? क्या कांग्रेस की अंदरूनी कलह की वजह से गठबंधन की सरकार गिरने की कगार पर पहुंच चुकी है और आरोप बीजेपी पर मढ़ा जा रहा है?

हालांकि बीजेपी पर विधायकों को करोड़ों रुपए देकर खरीदने का आरोप लगाया जा रहा है लेकिन बागी हुए विधायकों के साथ विधायकों की मारपीट कहानी कुछ और ही बयां करती है.

विधायक दल की बैठक लगातार दूसरी बार बुलाने के पीछे ऐसा लगता है कि सिद्धारमैया अपने विधायकों को लेकर खुद ही आश्वस्त नहीं हैं. तभी रिजॉर्ट में भेजने के बाद भी विधायकों के बीच महाभारत छिड़ी हुई है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस के कुछ विधायक नाराज चल रहे हैं. आखिर ये विधायक किससे नाराज हैं? ये गठबंधन से नाराज हैं या फिर राज्य में पार्टी नेतृत्व से? इन विधायकों के कांग्रेस से टूटने से राज्य की गठबंधन सरकार अल्पमत में आ सकती है.

अभी कांग्रेस-जेडीएस के पास 224 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा में 118 विधायकों का समर्थन है लेकिन कांग्रेस के विधायकों के अलग होने से गठबंधन की सरकार गिर सकती है. इसी डर और आशंका के चलते बीजेपी पर ऑपरेशन लोटस चलाने का आरोप लगाया जा रहा है और कांग्रेस अपने विधायकों को रिजॉर्ट में बंद किए हुए है. वहीं बीजेपी का इस मसले पर कहना है कि कांग्रेस काफी गड़बड़ चल रही है जो उसकी कमजोरी को साबित कर रहे हैं.

कर्नाटक में जेडीएस के साथ गठबंधन कर कांग्रेस ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी सहयोगियों के बीच एक संदेश भेजने का काम किया था. ये बताने की कोशिश की कि कांग्रेस सिर्फ सत्ता के लिए ही गठबंधन नहीं करती बल्कि वो राज्य की राजनीतिक पार्टियों को भी सत्ता का मौका देने का ‘बड़ा दिल’ रखती है. 37 सीटों वाली जेडीएस को सरकार बनाने के लिए समर्थन देकर कांग्रेस ने बीजेपी की सरकार बनने से तो रोक दिया लेकिन अब इसी गठबंधन को लेकर नए नए सियासी ड्रामे सामने आ रहे हैं. कभी कुमारस्वामी रो पड़ते हैं तो कभी सरकार के बार-बार गिरने के हालात बन जाते हैं. क्या ये कांग्रेस के उन विधायकों का सत्ता प्रेम और पद-लोलुपता नहीं है जो कि गठबंधन की सरकार में अपना धैर्य खो रहे हैं?

दरअसल, कांग्रेस आलाकमान के दबाव में ही पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया जेडीएस को समर्थन देने के लिए राजी हुए थे. दोनों के बीच सरकार बनने के बाद से खींचतान भी लगातार जारी है. कई मुद्दों पर दोनों का विरोध खुलकर सामने आ चुका है. ऐसे में कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार संकटमोचक की भूमिका में हैं और उनके ऊपर गठबंधन की सरकार बचाने की बड़ी जिम्मेदारी है और वो गठबंधन और पार्टी में संतुलन बनाने का काम कर रहे हैं.

कांग्रेस नहीं चाहती कि लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक में किसी भी सूरत में गठबंधन की सरकार पर कोई आंच आए क्योंकि इससे कांग्रेस की साख पर असर पड़ेगा. यही वजह है कि वो मध्यप्रदेश में भी लगातार बीजेपी पर सरकार गिराने का आरोप लगा रही है. लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई है जबकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस अल्पमत में है. उसे पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ है. कुल 114 सीटों के साथ उसने समाजवादी पार्टी और बहुजनसमाज पार्टी के समर्थन के बूते सरकार बनाई है. ऐसे में अगर मध्यप्रदेश में कांग्रेस पर मायावती दबाव बनाती हैं तो उसके लिए किसी और को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

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3 राज्यों में मिली जीत से कांग्रेस ने देश की सियासत में जोरदार वापसी की है. लेकिन कर्नाटक का सियासी ड्रामा कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में मुश्किल खड़ी कर सकता है. कांग्रेस के भीतर ही उठते विरोध के सुर सिर्फ कर्नाटक में नहीं हैं बल्कि उड़ीसा में भी तब दिखाई दिए जब पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीकांत जेना ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर सवाल उठाए हैं.