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झारखंड: गाय पर राजनीति के चक्कर में आदिवासी परंपराओं से खेल रहे नेता

विवादित बयान देने वाले आदिवासी नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं. ऐसे नेताओं को ये परवाह नहीं है कि इससे झारखंड की सामाजिक समरसता पर बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है

Brajesh Roy

सभ्यता संस्कृति और मान्यताओं के आधार पर देश में 'गौ वध' पर पूर्ण प्रतिबंध लगाते हुए एक तरफ जहां 'गाय' को माता के तौर पर पूजने की बात कही जा रही है वहीं दूसरी तरफ इस विषय पर विवादित बयान देकर कुछ आदिवासी नेता झारखंड में परंपराओं के नाम पर गंदी राजनीति का उदाहरण पेश करने लगे हैं.

बाहरी भीतरी के साथ आदिवासी, गैर आदिवासी की राजनीति के भंवर जाल से उबरने की कोशिश कर रहे झारखंड को ऐसे आदिवासी नेता चुनावी समीकरण के तहत अभी से समाज को आग में झोंककर परंपरा के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने की जुगत लगा रहे हैं.


पहले राज्य के पूर्व मंत्री बंधु तिर्की ने डंके की चोट पर कहा, 'अगले साल 17 फरवरी को काली गाय की बलि देंगे. कोई रोक सकता है तो रोक ले.'

इधर 15 नवंबर को झारखंड राज्य स्थापना दिवस के मुख्य समारोह रांची में देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जब एक आदिवासी बीपीएल महिला को दुधारू पशु योजना के तहत गाय का प्रारूप भेंट कर रहे थे उसी दिन पलामू लातेहार में पूर्व विधायक आदिवासी नेता सूर्य सिंह बेसरा ने भरी सभा में 'गाय' पर विवादित बयान देते हुए कहा 'गाय तुम्हारी माता है तो भैंस क्या है तुम्हारा.....? हम गाय भी खाते हैं और भैंस भी खाते हैं.'

इतना ही नहीं बेसरा ने आरएसएस पर सीधे तंज कसते हुए यह भी चेतावनी दी कि यह नागपुर नहीं छोटनागपुर है.

बंधु तिर्की और सूर्य सिंह बेसरा

कौन हैं बंधु और बेसरा?

दीगर बात यह है कि राज्य के पूर्व मंत्री रहे आदिवासी नेता बंधु तिर्की ने यह विवादित बयान अपने पार्टी ऑफिस में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिया. बंधु तिर्की राज्य के पहले मुख्यमंत्री रह चुके कद्दावर आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडी की पार्टी 'झारखंड विकास मोर्चा' के महासचिव हैं. यह अलग बात है कि इस बयान के दूसरे ही दिन पार्टी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कन्नी काटते हुए साफ कहा कि यह उनकी पार्टी की भावना नहीं हैं बल्कि बंधु तिर्की का निजी बयान है.

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दूसरी तरफ आप यह भी जान लें कि दूसरे बयान देने वाले आदिवासी नेता सूर्य सिंह बेसरा पूर्व विधायक वर्तमान में 'डेमोक्रेटिक एसेंबली ऑफ रिप्रेजेंटटिव बॉडी फॉर आदिवासी राइट्स' में महासचिव पद पर काबिज हैं. अपने विवादित बयान के समर्थन पर बंधु तिर्की ने आदिवासी परंपरा का तर्क दिया तो बेसरा ने आदिवसियों के हक और हुकुक की दुहाई दी.

पशु बलि को लेकर क्या है झारखंड में आदिवासी परंपरा ?

राजी प्रार्थना सभा चालीस पड़हा मुड़मा रांची आदिवासी समाज के धर्म गुरु बंधन तिग्गा का साफ मानना है, 'वर्तमान समय में नेता लोग आदिवासी परंपराओं को समाज के सामने गलत ढंग से रखने का काम कर रहे हैं. समय के साथ परंपराएं भी बदली हैं और उनमें लचीलापन भी आया है. पशु बलि की परंपरा आदिवासी समाज में आर्य-अनार्य के युद्ध का प्रतीक था.

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अपने पूर्वजों की शक्ति को सम्मान देने के लिए और आर्य से युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए अनार्य (आदिवासी) किसी भी पशु, गर्भवती और दुधारू को छोडकर, बलि दिया करते थे. बाद में मुगलों से युद्ध के समय पशु बलि दी जाती थी. वर्तमान सामाजिक परिवेश में बलि परंपरा का पालन भर किया जाता है. आम समाज की भावना को पूरा सम्मान आदिवासी समाज देता रहा है.'

धर्मगुरु बंधन तिग्गा यह भी कहते हैं, 'वर्तमान समय में वैसे आदिवासी नेता ही परंपरा के नाम पर ज्यादा उछल-कूद मचाते हैं जिन्होने 'सरना आदिवासी धर्म' को छोड़कर दूसरे धर्म का दामन थाम लिया है. कोई भी धर्म समाज को आहत कर कभी भी अपनी परंपरा को नहीं चलाता है.'

बीजेपी ने कहा गंदी चाल चली जा रही है

बंधु तिर्की और सूर्य सिंह बेसरा के विवादित बयानों पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. बीजेपी का मानना है कि राज्य में विकास को बाधित करने के लिए राष्ट्र विरोधी ताकतें गंदी चाल चलकर सामाजिक माहौल बिगाड़ने में लगी हैं. प्रदेश बीजेपी के नेता और पार्टी प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने साफ तौर पर कहा, 'हमारी सरकार और राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास यह भली-भांति जानते हैं कि विरोधी 2019 को लेकर किस हद तक नीचे की राजनीति कर सकते हैं. यही वजह है कि रघुवर सरकार ने समय और जन भावनाओं की मांग का सम्मान करते हुए धर्मांतरण बिल को लाने का काम की है.'

अकेले बीजेपी ही नहीं झारखंड में 2019 चुनाव की तैयारी में जुटे लगभग सभी आदिवासी नामधारी दलों ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है. वहीं राज्य के बड़े आदिवासी समूह का नेतृत्व करने वाले प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी 'गाय' पर दिये गये ऐसे विवादित बयानों को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है.

गंदी राजनीति का उदाहरण है ऐसे बयान

दरअसल झारखंड में अगड़ा पिछड़ा और हिन्दू मुस्लिम से कहीं ज्यादा आदिवासी गैर आदिवासी मुद्दा हमेशा से छाया रहा है. राजनीति करने वाले बाहरी भीतरी के इस मुद्दे को अवसर और समय के हिसाब से तूल देना भी वे बखूबी जानते हैं. स्थानीयता, सीएनटी एसपीटी एक्ट के साथ आदिवासी नीति किसी भी सरकार के लिए झारखंड में हमेशा से चुनौती का विषय रहा है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (रायटर)

बावजूद इसके, राजनीतिक अस्थिरता के दौर से बाहर निकलकर और राजनीति की प्रयोगशाला की पहचान से उबरते हुए झारखंड ने पहली दफा बीजेपी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत वाली सरकार को देखा, महसूस किया. प्लानिंग के साथ विकास के पथ पर चल रही वर्तमान सरकार ने झारखंड में विकास की संभावनाओं का रास्ता जरूर दिखा दिया है. वर्तमान सरकार की सराहना भी अब होने लगी है. यही वजह है कि 2019 को लेकर यहां जो राजनीति की बिसात सजने लगी है उसमे अभी से चालें आड़ी-तिरछी चलीं जा रही है.

विवादित बोल बोलने वाले आदिवासी नेता अपने क्षेत्र और अपनी राजनीतिक जरूरतों के मद्देनजर चुनावी खेल खेलने लगे हैं. ऐसे नेताओं को ये परवाह नहीं है कि उनके विवादित बयानों से झारखंड की सामाजिक समरसता पर बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है, बस सब कुछ अपने फायदे के लिए. आशंका सिर्फ यही है कि आने वाले समय में कोई बड़ी बात न हो जाए. सरकार के साथ समाज को भी ऐसे लोगों पर नजर रखने की जरूरत है.