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बिहार: नवरात्रों के बाद नीतीश के खिलाफ शरद यादव करेंगे 'बड़ा खेल'

नवरात्र में शरद यादव एक बार फिर से बिहार के दौरे पर निकल रहे हैं. लेकिन, इस बार माता के दरबार में नहीं, जनता के दरबार में हाजिरी लगाने

Amitesh

चुनाव आयोग से झटका खाने के बावजूद जेडीयू नेता शरद यादव अभी हार मानने के मूड में नहीं हैं. शरद यादव अभी भी अपने समर्थकों वाली जेडीयू को असली और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू को नकली जेडीयू बताने में लगे हैं. हालांकि चुनाव आयोग में फिर से उनकी तरफ से अपील की गई है.

नवरात्र में शरद यादव एक बार फिर से बिहार के दौरे पर निकल रहे हैं. लेकिन, इस बार माता के दरबार में नहीं, जनता के दरबार में हाजिरी लगाने. शरद यादव अब सीधे जनता से संवाद कर अपने लिए समर्थन मांग रहे हैं. नीतीश कुमार के कदम को नाजायज बताकर उनकी कोशिश है कुछ सहानुभूति मिल जाए और आने वाले दिनों में उन्हें फिर से कोई नया ठौर मिल जाए.


शरद यादव के करीबी राज्यसभा सांसद अली अनवर ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि इस बार दौरे के केंद्र में मध्य बिहार होगा. 25 सितंबर से 28 सितंबर के बीच शरद यादव बिहार के दौरे पर होंगे, जिसमें वो राजधानी पटना से आरा-बक्सर, सासाराम-कैमूर जिले का दौरा करेंगे. इसके बाद औरंगाबाद से लेकर गया, जहानाबाद और अरवल में भी शरद यादव जनता से सीधा संवाद करेंगे. इस दौरान शरद के निशाने पर नीतीश ही रहने वाले हैं.

शरद यादव की राज्यसभा सदस्यता पर खतरा

दरअसल, शरद यादव खेमे के उस दावे को चुनाव आयोग ने खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने अपने समर्थकों वाले गुट को असली जेडीयू बताया था. चुनाव आयोग ने चुनाव-चिन्ह तीर पर शरद गुट के दावे को भी नकार दिया है. अब नए सिरे से चुनाव आयोग के सामने फिर से दावा किया गया है.

शरद यादव और लालू प्रसाद यादव

लेकिन, लगता है शरद यादव के लिए मुसीबत अभी भी कम होने का नाम नहीं ले रही. शरद यादव की राज्यसभा सदस्यतता पर भी खतरा मंडरा रहा है. पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का हवाला देकर नीतीश खेमे ने शरद यादव और अली अनवर की राज्यसभा सदस्यता खत्म करने की मांग की है. राज्यसभा के सभापति की तरफ से इस बाबत नोटिस भी जारी हो चुका है, जिसका जवाब देने के लिए इन दोनों नेताओं ने एक महीने का वक्त मांगा है.

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शरद यादव और अली अनवर दोनों ने 27 अगस्त को आरजेडी की पटना की रैली में शिरकत की थी. जिसके बाद जेडीयू ने इन दोनों की सदस्यता खत्म करने की मांग की थी.

हालांकि शरद यादव के करीबी सूत्रों के मुताबिक, अब नतीजा जो भी हो लड़ाई आर-पार की ही होनी है. अब समझौते का तो कोई सवाल ही नहीं है. सूत्रों के मुताबिक, शरद यादव का खेमा इस बात की तैयारी में लगा है कि अगर चुनाव आयोग से फिर से झटका मिला तो नई पार्टी बनाकर साझी विरासत बचाने की इस लड़ाई को और गति दी जाएगी.

क्या नई पार्टी बनाएंगे शरद यादव?

शरद गुट की तरफ से 17 सितंबर को दिल्ली में कार्यकारिणी की बैठक बुलाकर अपनी ताकत दिखाने की एक बार फिर से कोशिश की गई है. इस कार्यकारिणी की बैठक में प्रस्ताव पारित कर नीतीश कुमार की जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर नियुक्ति को ही गलत ठहरा दिया गया है. शरद गुट ने गुजरात के विधायक छोटू भाई वसावा को पार्टी का नया कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया है.

इस बैठक के दौरान प्रस्ताव पारित कर नीतीश कुमार की तरफ से बिहार में महागठबंधन तोड़ने के नीतीश कुमार के फैसले को भी रद्द कर दिया गया है. नीतीश कुमार की तरफ से शरद खेमे के जिन नेताओं को निलंबित किया गया था, उन सबका निलंबन भी रद्द कर दिया गया है. शरद गुट का दावा है कि उनकी तरफ से बुलाई गई पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में दिल्ली और यूपी समेत 19 राज्यों के जेडीयू के अध्यक्ष और नेता शामिल हुए. दावा संगठन पर दबदबे का है तो दावा अपने पास बहुमत का भी किया जा रहा है.

अपने समर्थकों के साथ शरद यादव

शरद गुट के साथ इस वक्त अली अनवर, रमई राम, जावेद रजा, अरुण श्रीवास्तव और छोटूभाई वसावा जैसे लोग तो हैं. लेकिन, अपने दावे के मुताबिक शरद खेमा अब तक बिहार में जेडीयू के मौजूदा विधायकों में से किसी को भी अपने पाले में लाने में सफल नहीं हो पाया है.

कार्यकारिणी की बैठक में पास सभी प्रस्तावों पर मुहर लगाने के लिए शरद गुट ने अगले आठ अक्टूबर को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में अब नेशनल काउंसिल की बैठक बुलाई है. इस खुले अधिवेशन को शरद गुट के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है.

शरद गुट ने अगले मार्च तक नए सिरे से पार्टी संगठन को खड़ा करने की तैयारी शुरू कर दी है. मार्च तक पार्टी संगठन का चुनाव करा लेने का संकल्प लिया गया है. लेकिन अंदरखाने शरद गुट के नेता भी इस बात को मान रहे हैं कि उन्हें जेडीयू का चुनाव चिन्ह मिलना नामुमकिन है, लिहाजा मार्च तक बनने वाला नया संगठन ही नई पार्टी के तौर पर उभरकर सामने आ जाएगा.

उसके पहले शरद यादव साझी विरासत के नाम पर विपक्षी दलों को एक करने के सूत्रधार के तौर पर अपने-आप को स्थापित करने में लगे हैं.

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