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बढ़ती जातीय हिंसा से मुश्किल में पड़ सकती है बीजेपी!

इस जातीय हिंसा का सीधा नुकसान बीजेपी को इसलिए हो सकता है क्योंकि केंद्र और राज्य में दोनों जगह बीजेपी की सरकार है

Amitesh

महाराष्ट्र के पुणे में हिंसा के बाद पूरे महाराष्ट्र में बंद का आह्वान किया गया है. एक साथ कई दलित संगठनों ने बंद किया है. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर के संगठन बहुजन महासंघ समेत करीब 250 दलित संगठनों की तरफ से आयोजित बंद का असर भी दिखा, पुणे के अलावा मुंबई और औरंगाबाद समेत कई शहरों में बंद का खासा असर देखने को मिल रहा है. 18 जिलों में बंद का प्रभाव सबसे ज्यादा है.

भीमा-कोरेगांव युद्ध में अंग्रेजों ने पेशवा को हराया था


प्रकाश अंबेडकर का आरोप है कि पुणे की हिंसा के पीछे हिंदू एकता अघाड़ी समूह शामिल है. अब अंबेडकर के आह्वान पर पूरे प्रदेश में बंद का आह्वान कर दिया गया, अब बंद के बाद बवाल ज्यादा बड़ा हो गया है.

दरअसल, पेशवा पर दलितों की विजय के प्रतीक भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ को लेकर मराठा और दलितों के बीच का संघर्ष इस कदर हिंसक हो जाएगा, इसका अंदाजा सरकार को भी नहीं था. अगर इस तरह का अंदाजा सरकार को होता तो समय रहते कदम उठाए गए होते. लेकिन, हिंसा और विवाद की आशंका का अंदाजा नहीं होना ही सरकार की विफलता को दिखा रहा है.

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भीमा-कोरेगांव युद्ध में दलितों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर पेशवा को हराया था. जिसकी वर्षगांठ हर साल मनाई जाती है. लेकिन, भीमा-कोरेगांव में इस साल 200वीं वर्षगांठ मनाए जाने की जानकारी क्या सरकार को पहले से नहीं थी. क्या सरकार को वक्त की नजाकत को भांपते हुए एहतियातन बेहतर कदम नहीं उठाने चाहिए थे.

ये चंद सवाल हैं जो सीधे महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार को कठघरे में खड़ा करने के लिए काफी हैं.

शायद इस बात का अंदाजा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी है. लिहाजा, उनकी तरफ से भी डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू कर दी गई. मुख्यमंत्री फडणवीस ने पुणे की हिंसा की जांच के लिए न्यायिक आयोग के गठन करने का ऐलान किया है. साथ ही हिंसा में युवक के मारे जाने के मामले की सीबीआई जांच कराने को भी कहा है. इससे पहले मारे गए युवक के परिजनों को दस लाख रुपए की आर्थिक मदद देने की बात कह कर फडणवीस की तरफ से हाथ से फिसलते हालात को काबू में रखने की कोशिश हो रही है.

लेकिन, देवेंद्र फडणवीस के बयान के बावजूद इस मसले पर अब सियासत भी खूब तेज हो गई है. संसद के भीतर और बाहर लगातार इस मसले पर विपक्षी दलों का हमला तेज हो गया है. और तो और दलितों के मुद्दे पर सरकार को अपनों का भी साथ नहीं मिल पा रहा है.

बीजेपी के लिए इस लड़ाई में ज्यादा नुकसान क्यों है?

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पुणे हिंसा के पीछे आरएसएस-बीजेपी की साजिश बता दिया. लोकसभा के भीतर इस मसले को उठाते हुए कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी पूरा दोष बीजेपी के ऊपर मढ़ दिया. खड़गे ने इसे समाज में फूट डालने की कोशिश तक बता दिया.

हालांकि पलटवार बीजेपी की तरफ से भी हुआ. संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने कहा कि आग बुझाने के बजाय भड़काने का काम मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी कर रही है. जिसे देश बर्दाश्त नहीं करेगा.

पुणे की हिंसा बीजेपी के लिए और भी ज्यादा चिंता की बात हो गई है. क्योंकि इस वक्त केंद्र और राज्य दोनों ही जगह बीजेपी की सरकार है. ऐसे में विपक्षी दलों की तरफ से दलितों पर हिंसा के मुद्दे को उठाकर सरकार को घेरने की कोशिश की जा रही है. कोशिश बीजेपी के दलित प्रेम की हवा निकालने की है.

सरकार की तरफ से लगातार बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की विचारधारा को बीजेपी की विचारधारा के करीब दिखाने की कवायद हो रही है. अंबेडकर मेमोरियल के जरिए बीजेपी दलितों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश लगातार कर रही है. इसका असर यूपी में देखने को भी मिला था जब यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त दलितों ने बीएसपी का साथ छोड़ बड़ी तादाद में बीजेपी का साथ दिया था.

लेकिन, दूसरे हिस्सों में बीजेपी की तरफ से की जा रही इस कवायद को पुणे जैसी हिंसा की घटना झटका दे सकती हैं. नेताओं की तरफ से एक-दूसरे पर आरोप लगाए जा रहे हैं. बीजपी-कांग्रेस पुणे हिंसा को लेकर घेरेबंदी में जुटी हुई हैं.

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लेकिन, सवाल यही है कि आखिर इस तरह की घेरेबंदी से किसका ज्यादा नुकसान हो रहा है. इसका जवाब तो बीजेपी ही होगा, क्योंकि बीजेपी ही इस वक्त सत्ता में है.

 महाराष्ट्र में भी हो रही है मराठा आरक्षण की मांग

सवाल है कि आखिर बीजेपी जातीय घेरेबंदी और गोलबंदी को क्यों नहीं तोड़ पा रही है. गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक लगातार हो रही जातीय गोलबंदी बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. हाल ही में खत्म हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में पटेलों की नाराजगी और उस पर बीजेपी की बढ़ती परेशानी के पीछे जातीय गोलबंदी ही रही. बीजेपी और उसके नेता यह बात कहते रह गए कि कांग्रेस जातीय आधार पर समाज को बांटना चाहती है, लेकिन, पटेल आंदोलन और उसके बाद के हालात ने पटेलों को काफी हद तक नाराज कर दिया. असर चुनाव परिणाम पर भी दिखा.

तो क्या हालात अब महाराष्ट्र में भी वैसे ही होंगे. यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि महाराष्ट्र में पहले से ही गुजरात में पटेलों की ही तर्ज पर मराठा आरक्षण को लेकर आंदोलन चलाया जा रहा है. मराठा पहले से ही दोबारा आंदोलन तेज करने की धमकी दे रहे हैं. लेकिन, दूसरी तरफ, अब मराठा और दलितों के बीच लड़ाई ने पूरी लड़ाई को ही नया सियासी रंग दे दिया है. ऐसी सूरत में जातीय राजनीति के दलदल में बीजेपी के फंसने का डर है, क्योंकि इससे हिंदुत्व के एजेंडे पर चलने वाली बीजेपी को नुकसान ही उठाना पड़ेगा.