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हिमाचल चुनाव 2017: दागी उम्मीदवारों ने लगाया हिमाचल की खुशहाली पर बट्टा

उत्तर प्रदेश और बिहार तो राजनीति में माफियागीरी और गुंडागर्दी के लिए कुख्यात रहे हैं मगर हिमाचल जैसे शांतिपूर्ण राज्य में इतने सारे उम्मीदवारों का आपराधिक रिकार्ड चिंताजनक है

Anant Mittal

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों में कम से कम 61 उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड सामने आया है. ऐसा प्रदेश द्वारा खुशहाली में देश का अव्वल राज्य होने का तमगा हासिल किए जाने के बावजूद है. इससे सवाल यह पैदा होता है कि अपराध क्या मनुष्य की ऐसी कमजोरी है जो खुशहाली के बावजूद हावी हो जाती है या राजनीति का चरित्र ही आपराधिक होता जा रहा है? या फिर यह उम्मीदवार, राजनीतिक विरोधियों द्वारा आपराधिक मामलों में फंसाने के साजिश के शिकार हैं?

उत्तर प्रदेश और बिहार तो राजनीति में माफियागिरी और गुंडागर्दी के लिए कुख्यात रहे हैं मगर हिमाचल जैसे शांतिपूर्ण राज्य में इतने सारे उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड चिंताजनक है. ताज्जुब यह है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी कुर्सी के दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, दोनों ही भ्रष्टाचार और पद के दुरूपयोग के आरोप झेल रहे हैं. इसके बावजूद एक-दूसरे पर उंगली उठाने से बाज नहीं आ रहे.


युवाओं को चुनना होगा बुजुर्ग सीएम

विडंबना यह है कि 46 फीसद युवा मतदाताओं वाले हिमाचल को अपने लिए 70 साल से भी अधिक उम्र का मुख्यमंत्री चुनना होगा. क्योंकि कांग्रेस और बीजेपी की ओर से घोषित मुख्यमंत्री पद के दोनों ही उम्मीदवारों की उम्र 70 साल से अधिक है. धूमल जहां 73 साल के हैं वहीं वीरभद्र 83 साल के हो रहे हैं. धूमल को बीजेपी ने इसी हफ्ते अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया है. इसके पीछे राज्य में बीजेपी को बिना स्थानीय चेहरे के चुनाव में पिछड़ने से बचाने और ठाकुर मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने की रणनीति प्रतीत हो रही है.

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हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तय मंत्री पद के लिए योग्य उम्मीदवार की उम्र सीमा अधिकतम 75 वर्ष पूरे होने में धूमल के पास सिर्फ दो ही साल बचे हैं. वैसे राज्य में इस चुनाव में 179 उम्मीदवारों की उम्र 51 वर्ष से 80 साल के बीच है. साथ ही 155 उम्मीदवार 25 से 50 साल के बीच की उम्र के हैं.

तस्वीर: पीटीआई

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स के अनुसार हिमाचल में कुल 338 उम्मीदवारों का ब्यौरा खंगालने पर इन 61 यानी 18 फीसद उम्मीदवारों पर अपराध दर्ज होने का तथ्य उजागर हुआ है. यह विवरण इन्होंने चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में बताया है. ताज्जुब यह है कि इनमें से भी आधे से अधिक यानी 31 उम्मीदवारों पर गंभीर अपराध दर्ज हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने इसी हफ्ते केंद्र सरकार से उन 1581 मामलों के निपटारे का ब्यौरा तलब किया है जो राजनेताओं के खिलाफ देश की विभिन्न अदालतों में चल रहे हैं. इन मामलों की जानकारी 2014 के आम चुनाव में उम्मीदवार बने नेताओं ने चुनाव आयोग को दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा है कि इनमें से कितने नेताओं को इन मामलों में पिछले तीन साल में सजा हो चुकी अथवा कितने निर्दोष सिद्ध हो गए. इतना ही नहीं चुनाव आयोग ने भी सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि आपराधिक मामलों में सजा हो जाने पर नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन पाबंदी लगा दी जाए.

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फिलहाल दोषसिद्ध और सजायाफ्ता नेताओं के सजा की मियाद पूरी होने के बाद छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक है. सजायाफ्ता नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने संबंधी प्रावधान को कांग्रेस नीत यूपीए-2 सरकार अध्यादेश के द्वारा पलटना चाहती थी. लेकिन पार्टी के तत्कालीन महासचिव राहुल गांधी ने उस अध्यादेश को प्रेस कांफ्रेंस में रद्दी की टोकरी में फेंके जाने लायक बता कर रूकवाया था.

बीजेपी में हैं सबसे अधिक दागी

यह बात दीगर है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस जता रही बीजेपी और उसके तत्कालीन प्रवक्ता और अब केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी के इस साहस की तारीफ के बजाए तब उनपर प्रधानमंत्री के अधिकार पर कुठाराघात का आरोप लगाया था. हालांकि, अब मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जवाब-तलब करने पर कहा है कि वह नेताओं के आपराधिक मामलों की सुनवाई विशेष अदालतों में करवाने को तैयार है.

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बहरहाल, हिमाचल में आपराधिक मामलों में लिप्त नेताओं में बीजेपी अपने 23 उम्मीदवारों के साथ अव्वल है. बीजेपी के 23 के मुकाबले प्रदेश में कांग्रेस के कुल 6 उम्मीवारों ने खुद पर आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी दी है. कांग्रेस के इन उम्मीदवारों में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी शामिल हैं.

वीरभद्र पर आय से अधिक संपत्ति का मामला चल रहा है, जिसकी वजह से पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें जमानत पर सरकार चलानेवाला करार दिया था. उधर प्रेम कुमार धूमल और उनके सांसद बेटे और भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अनुराग ठाकुर पर भी क्रिकेट स्टेडियम की जमीन और उसके निर्माण में अनियमितता संबंधी आरोप हैं. इस प्रकार हिमाचल प्रदेश में मौजूदा मुख्यमंत्री वीरभद्र और उनके पद के दावेदार और पूर्व मुख्यमंत्री धूमल दोनों पर ही भ्रष्टाचार के आरोप हैं. इसके बावजूद दोनों ही एक-दूसरे को भ्रष्ट कहने से बाज नहीं आ रहे.

हालांकि, धूमल ने 2012 के विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग को दिए हलफनामे में आपराधिक रिकॉर्ड का कोई जिक्र नहीं किया था.

तस्वीर: फेसबुक से

धूमल और वीरभद्र का पुत्र मोह

इतना ही नहीं राज्य में अपने-अपने दलों के सिरमौर यह दोनों नेता हरेक चुनाव को मुद्दों से भटका कर एक-दूसरे पर निजी आरोप-प्रत्यारोप के स्तर पर ले आते हैं. साथ ही सत्तारूढ़ होने पर एक-दूसरे के खिलाफ फर्जी मामले दर्ज करवाने के में भी वीरभद्र और धूमल गुरेज नहीं करते. वीरभद्र और धूमल में और समानता यह भी है कि दोनों ही अपने बाद अपने-अपने बेटे का राज्याभिषेक कराने के फेर में हैं.

वीरभद्र सिंह अपने बेटे और प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह को इस बार अपने चुनाव क्षेत्र शिमला ग्रामीण से चुनाव लड़वा रहे हैं. दूसरी तरफ धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर राज्य की हमीरपुर लोकसभा सीट से लगातार तीसरी बार सांसद हैं. अनुराग पहली बार साल 2008 में हुए उपचुनाव में हमीरपुर से लोकसभा में निर्वाचित हुए थे और संसद में खासे सक्रिय रहते हैं.

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सत्ता के प्रमुख दावेदार इन दोनों दलों के उम्मीदवारों के अलावा बहुजन समाज पार्टी के तीन, सीपीएम के 10 और निर्दलीयों में से 16 उम्मीदवारों ने अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी चुनाव आयोग को दी है. हिमाचल प्रदेश भी केरल की तरह शिक्षा, स्वास्थ्य-जीवन दर, प्रति व्यक्ति आमदनी, पुरुष-महिला आबादी में लैंगिक अनुपात, उद्योग-व्यापार और कानून-व्यवस्था आदि के लिहाज से विकसित राज्यों में शुमार होता है.

राज्य का मतदाता प्रदेश पर राज करने के लिए पिछले तीन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी को बारी-बारी से चुनता आ रहा है. लगभग वैसे ही जैसे केरल और कमोबेश पंजाब और राजस्थान का मतदाता भी हर पांच साल बाद विधानसभा चुनाव में सत्ता की टोपी तत्कालीन विपक्षी दल के सिर पर रखकर अपना लोकतांत्रिक फर्ज निभाता है. इसके बावजूद शीर्ष नेताओं सहित इतने सारे उम्मीदवारों पर आपराधिक मामलों के आरोप होना हिमाचल प्रदेश में खुशहाली की अवधारणा पर ही प्रश्नचिह्न लगा रहा है.