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हरियाणा: चौधरी देवीलाल के परिवार में विरासत की जंग, 'चौटाला पुत्र' आमने-सामने

राजनीति में सिर्फ पद प्रतिष्ठा जब तक मिलती रहे लोग साथ रहते हैं. जैसी ही राजनीति में पद नहीं मिलता है. लड़ाई की नौबत आ जाती है

Syed Mojiz Imam

यूपी में मुलायम सिंह यादव के परिवार में चचा भतीजे के बीच लड़ाई शांत नहीं हुई है. हरियाणा में चौधरी देवीलाल के परिवार में विरासत की जंग तेज हो गई है. पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के दोनों पुत्र एक दूसरे के मुकाबले में खड़े हैं. इस परिवारिक लड़ाई का फायदा बीजेपी और कांग्रेस दोनों को मिल सकता है. हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी मुख्य विपक्ष में है. 2019 में हरियाणा में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव के करीब आते ही परिवार के भीतर वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई है.

मंज़रे आम पर झगड़ा


7 अक्टूबर को सोनीपत के गोहाना में इंडियन नेशनल लोकदल की रैली में ये झगड़ा सतह पर दिखाई दिया है. पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के जन्मदिन के दिन ये रैली थी, जिसमें पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला के कनिष्ठ पुत्र अभय चौटाला की हूटिंग की गई थी. हूटिंग करने वाले कोई और नहीं बल्कि ओमप्रकाश चौटाला के ज्येष्ठ पुत्र अजय चौटाला के बेटों के समर्थक थे. ये लोग मांग कर रहे थे वर्तमान में हिसार से सासंद दुष्यंत चौटाला को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया जाए, जबकि अभय चौटाला हरियाणा विधानसभा में आईएनएलडी के नेता हैं. ओमप्रकाश चौटाला की गैरमौजूदगी में पार्टी का काम- काज वही देखते हैं. इससे अजय चौटाला के दोनों बेटे नाराज हैं.

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ओम प्रकाश चौटाला नाराज

गोहाना की रैली में हूटिंग से ओमप्रकाश चौटाला काफी नाराज हैं. इस पूरे घटनाक्रम को पार्टी के विरूद्ध मानते हुए, इनसो यानी आईएनएलडी की छात्र इकाई को भंग कर दिया है. इसके अलावा यूथ विंग को भी भंग कर दिया गया है. इनसो के कर्ता-धर्ता दिग्विजय चौटाला हैं. बताया जा रहा है इस हूटिंग के पीछे इनके समर्थकों का हाथ है. हालांकि दिग्विजय ने कहा कि वो अपने दादा के इस फैसले को नहीं मानते हैं. कई अखबारों में अपनी प्रतिक्रिया में दिग्विजय चौटाला ने अपने दादा को चुनौती दी है. दिग्विजय ने कहा कि इनसो का गठन अजय चौटाला ने किया था और वही भंग कर सकते हैं. इनसो एक पंजीकृत संस्था है, जिसको कोई भंग नहीं कर सकता है. दिग्विजय सिंह चौटाला के समर्थकों का कहना है कि बड़े-बेटे के पुत्र होने के नाते विरासत पर उनका अधिकार है.

ओम प्रकाश चौटाला

टूट की कगार पर आईएनएलडी

हरियाणा की ये पार्टी टूट की कगार पर है. अगर ओमप्रकाश चौटाला ने कोई बीच का रास्ता नहीं निकाला. जिस तरह से दोनों गुट एक दूसरे के खिलाफ खड़े हुए हैं, उससे लगता है कि दोनों ओर से तैयारी पूरी है. अजय चौटाला के दोनों पुत्र राजनीतिक तौर पर तैयार हैं. अपना दमखम दिखा रहे हैं. 17 अक्तूबर को हरियाणा में छात्रसंघ के चुनाव हैं जिसके नतीजे आईएनएलडी का भविष्य तय करेंगे. अगर इनसो का परफार्मेंस अच्छा रहा तो दोनों भाई नया गुल खिला सकते हैं.

हरियाणा की राजनीति पर असर

लोकसभा चुनाव से पहले आईएनएलडी में टूट का फायदा कांग्रेस को मिल सकता है. जाट वोट के कई हिस्सों में बंटने से पार्टी को आईएनएलडी को नुकसान हो सकता है. जाट बीजेपी में बिरेंदर सिंह की वजह से, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला की वजह से कांग्रेस में बंट सकता है. ऐसे में गैर-जाट और दलित कांग्रेस में जा सकता है. गैर जाट कुलदीप विश्नोई और दलित प्रदेश के मुखिया अशोक तंवर के कारण कांग्रेस का समर्थन कर सकता है.

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विरासत की तकरार

हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला दोनों को सजा हो चुकी है. इसलिए सजा पूरी होने तक और उसरे बाद ये दोनों चुनावी राजनीति में हिस्सा नहीं ले सकते हैं. हालांकि अजय चौटाला को उम्मीद थी कि दुष्यंत चौटाला को पार्टी आगे बढ़ाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. ओम प्रकाश चौटाला राजनीति में अभय चौटाला को तरजीह दे रहे हैं, जिससे परिवार के भीतर तकरार बढ़ रहा है. अजय चौटाला को लग रहा था कि बड़े होने की वजह से उनके पुत्र को विरासत मिलेगी. दुष्यंत चौटाला पढ़े-लिखे हैं और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में उनकी इमेज पार्टी के लिए बेहतर साबित हो सकता है. लेकिन दादा का प्यार पोते लिए नहीं है, पर बेटे के लिए है.

इतिहास दोहराया जा रहा है

देवीलाल के परिवार में पहले भी विरासत की लड़ाई हो चुकी है.1988 में ताऊ देवीलाल राज्य के मुख्यमंत्री थे. तभी परिवार में ओम प्रकाश चौटाला और रंजीत सिंह के बीच लड़ाई शुरू हो गई, जिससे परेशान होकर देवीलाल ने इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया था. तत्कालीन नेताओं वीपी सिंह और बीजू पटनायक के दखल के बाद इस्तीफा नहीं दिया गया. देवीलाल को लगा उनके इस्तीफे के बाद पार्टी दो हिस्सों में बंट जाएगी, एक धड़ा ओम प्रकाश चौटाला के साथ तो दूसरा रंजीत सिंह के साथ जा सकता था.

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दरअसल तब झगड़े की वजह सिपाही भर्ती में धांधली का आरोप था. तत्कालीन हरियाणा के गृहमंत्री संपत सिंह पर आरोप लगाया गया कि रिश्वत लेकर सिपाहियों की भर्ती की गई है, जिससे ताऊ देवीलाल नाराज हो गए संपत सिंह से इस्तीफा मांग लिया था, जिससे ओमप्रकाश चौटाला ने बगावत की धमकी दे दी. संपत सिंह ओमप्रकाश के वफादार थे. हालांकि जब देवीलाल उप प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपने पढ़े-लिखे बेटे रंजीत सिंह की जगह ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनाया. रंजीत सिंह आजकल कांग्रेस में हैं.

हरियाणा में खानदानी राजनीति

हरियाणा छोटा सा प्रदेश है लेकिन यहां खानदानी राजनीति चली आ रही है. पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल का परिवार राजनीति में है. परिवारिक कलह वहां भी है. भजनलाल के दोनों बेटों के बीच नहीं बनती है. कुलदीप विश्नोई वापिस कांग्रेस में आ गए हैं. भूपेंद्र सिंह हुड्डा और चौधरी बिरेंदर सिंह आपस में रिश्तेदार हैं. लेकिन एक कांग्रेस में दूसरे बीजेपी में हैं. जाहिर है कि राजनीति में सिर्फ पद प्रतिष्ठा जब तक मिलती रहे लोग साथ रहते हैं. जैसी ही राजनीति में पद नहीं मिलता है. लड़ाई की नौबत आ जाती है.

ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ हरियाणा में हो रहा है. विरासत की जंग हर जगह है. महाराष्ट्र में शरद पवार के यहां बेटी सुप्रिया सुले और भतीजे अजित पवार के बीच नहीं पटती है. तमिलनाडु में डीएमके में एमके स्टालिन ने अपने भाई और रिश्तेदारों को किनारे लगा दिया है. तेलांगना में केसीआर के पुत्र और भतीजे के बीच लड़ाई चल रही है. आरजेडी में लालू प्रसाद के दोनों बेटों के बीच नहीं बनती है. ये सिर्फ बानगी भर है कुर्सी के खेल में कोई सगा नहीं बचा है.