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गुजरात चुनाव 2017: गांधी के अपने स्कूल ने भुला दिया उनका हर पाठ

एलफ्रेड हाई स्कूल की दुर्दशा देखकर लगता है मानो सबने महात्मा गांधी को भुला दिया है. विधानसभा चुनाव की गहमागहमी शुरू होते ही इस पर राजनीति गरमा गई है

Pratima Sharma

गुजरात का शहर राजकोट. स्वच्छता, शिक्षा और सबको सम्मान का पाठ पढ़ाने वाले गांधी की अपनी शिक्षा इसी शहर के एल्फ्रेड हाई स्कूल में हुई थी. राजकोट के जुबली चौक पर आज यह स्कूल चुपचाप अपने अतीत को समेटे खड़ा है. एक गौरवमयी अतीत, जो अब भले ही लोगों के दिलों दिमाग में धुंधला गई हो, लेकिन बीते कल में यह शान हुआ करती थी.

स्कूल की इमारत बेहतरीन ब्रिटिश आर्किटेक्चर का खूबसूरत नमूना है. इसके आर्किटेक्ट सर रॉबर्ट बेल बूथ थे. इमारत की बाहरी दीवारों को देखकर लगता है कि 164 साल बाद भी एल्फ्रेड हाई स्कूल की दीवारें यह नहीं भूली हैं कि यहां से कभी गांधी पढ़कर निकले थे. शायद यही वजह है कि सरकार और स्थानीय लोगों की बेरुखी के बावजूद यह स्कूल बाहर से उतना ही रोबदार दिखता है, जितना पहले कभी होगा.


स्कूल की इमारत से करीब 30-40 फुट दूर मेन गेट है. मेन गेट पर खड़े होकर अपनी गर्दन जितनी उठा सकते हैं, उतनी उठाइए, तब जाकर आपको स्कूल की बुलंदी नजर आएगी. उस पल आप खुद कह उठेंगे, वाह! क्या स्कूल है. ऐसा लगेगा मानो आप करण जौहर की फिल्म ‘मोहब्बतें’ के गुरुकुल के सामने खड़े हैं.

महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के जमाने में बने इस इंग्लिश मीडियम स्कूल में वर्ष 1880 से 1887 तक पढ़ाई की थी

गांधी का गुरुकुल, एल्फ्रेड स्कूल

साल 1887 में 18 साल की उम्र में गांधी यहां से पास आउट हुए थे. यहां उन्होंने 1880 से 1887 तक पढ़ाई की थी. इस स्कूल की स्थापना 17 अक्टूबर, 1853 में हुई थी. उस वक्त यह समूचे सौराष्ट्र का पहला इंग्लिश मीडियम स्कूल था. एल्फ्रेड की मौजूदा बिल्डिंग जूनागढ़ के नवाब ने बनवाई थी. उन्होंने ही इसका नाम ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग के प्रिंस एल्फ्रेड के नाम पर रखा था. आजादी के बाद इस स्कूल का नाम बदलकर महात्मा गांधी के नाम पर रख दिया गया. एल्फ्रेड स्कूल का नया नाम मोहनदास गांधी हाई स्कूल है.

इस स्कूल के साथ गांधी का नाम तो जुड़ा लेकिन वो सम्मान नहीं मिल पाया जो गांधी के स्कूल को मिलनी चाहिए थी. स्कूल का मेन गेट हर वक्त खुला रहता है. अंदर जाने पर आपको सामने बंद दरवाजा दिखेगा. बंद दरवाजे के पीछे गांधी की आदमकद फोटो है. हवाई चप्पल पहने, हाथ में लाठी लिए और एकवस्त्र लपेटे गांधी की इस फोटो के नीचे लिखा हैं, ‘MY LIFE IS MY MESSAGE.’

स्कूल में महात्मा गांधी की लगी आदमकद तस्वीर

बोर्ड पर गांधी का एक और संदेश है. 4 सितंबर, 1888 को जब गांधी राजकोट से मुंबई जा रहे थे यह संदेश तब का है. मुंबई से उनको वकालत की पढ़ाई के लिए आगे शिप से इंग्लैंड जाना था. उस वक्त गांधी ने कहा था, ‘मेरी तरह जो लोग भी आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जा रहे हैं वो लौट कर देश के पुनर्रुत्थान में लग जाएंगे’. मोहनदास यह संदेश देकर चले गए और महात्मा गांधी बन गए. उन्होंने जीवन भर अपना वादा निभाया. लेकिन इनके स्कूल की दुर्दशा देखकर ऐसा लगता है जैसे सबने गांधी को भुला दिया है.

स्कूल के कपाउंड में लगे बेंच पर 13-14 साल का एक लड़का बैठा था. पूरे स्कूल में सिर्फ यही था. नाम पूछने पर पता चला हिमांशु भाई. मैंने पूछा, ‘स्कूल बंद है?’ उसने कहा, ‘स्कूल तो बंद ही रहता है. अगर अंदर जाना है तो पीछे के रास्ते से चले जाओ, लेकिन अदर कुछ भी देखने लायक नहीं है.’

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स्कूल के अंदर जाने पर आपको 440 वोल्ट का झटका लगेगा. बाहर से इमारत जितनी खूबसूरत थी अंदर से उतनी ही बदरंग. गुजरात सरकार ने गांधी के इस स्कूल को म्यूजियम बनाने का फैसला किया है. लेकिन इस स्कूल की हालत देखकर लगता है, इस पर अब तक सिर्फ फैसला ही हुआ है गंभीरता से कोई काम नहीं. पहले यह स्कूल चलता था लेकिन अथॉरिटी ने अब इसे बंद कर दिया है.

स्कूल में दाखिल होने पर इसके अतीत की भव्यता का अंदाजा होगा. बड़े-बड़े कमरे. ऊंची-ऊंची दीवारें. लकड़ी की सीढ़ियां. हॉलनुमा जिस कमरे में गांधी जी के पढ़ने की बात कही जाती है वहां दीवार के ऊपरी हिस्से से चिपकाकर स्कूल के पुराने प्रिंसिपल्स की बड़ी तस्वीरें लगी हुई थीं. गांधी जब स्कूल में थे तब दोराबजी एदुलजी जिमी वहां के प्रिंसिपल थे.

महात्मा गांधी जब यहां छात्र थे तब दोराबजी एदुलजी जिमी स्कूल के प्रिंसिपल थे

इसी कमरे में गांधी जी की एक मूर्ति भी लगी हुई है. उनके हाथ में एक नवजीवन अखबार है. महात्मा गांधी ने इस साप्ताहिक अखबार की शुरूआत अहमदाबाद से की थी. 1919 से लेकर 1931 तक अखबार छपता रहा. यह आज भी छपता है, लेकिन अब इसकी सूरत बदल गई है. इस अखबार ने अब पत्रिका की शक्ल ले ली है.

राजनीति के केंद्र में स्कूल

एल्फ्रेड हाई स्कूल आज भले ही बदहाल हो, लेकिन यहां से गांधी के अलावा केशुभाई पटेल और हंसमुख अधिया जैसे छात्र भी निकले हैं. गुजरात विधानसभा चुनावों की गहमागहमी शुरू होते ही इस पर राजनीति गरमा गई है.

हाल ही में कांग्रेस का प्रचार करने राजकोट पहुंचे सैम पित्रोदा ने कहा था, ‘अगर गुजरात में कांग्रेस की सरकार आती है तो वह इस स्कूल को देश का सबसे अच्छा स्कूल बनाएंगे’. गुजरात सरकार को निशाना बनाते हुए उन्होंने कहा था, ‘क्या राज्य सरकार इस स्कूल को रिवाइव नहीं कर सकती. इसे क्यों बंद करके म्यूजियम बनाया जा रहा है.’

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इस पर गुजरात सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया है. लेकिन यह दिलचस्प है कि स्कूल की धूल खाती दीवारों पर गांधी की फोटो जरूर चिपका दी गई है. उन पर लिखा है, ‘गांधी जी और स्वच्छता’, जो दुर्भाग्य से इस स्कूल में कहीं नजर नहीं आता. दूसरी फोटो के साथ लिखा है, ‘मानवता ही सच्ची राष्ट्रीयता है’. गांधी के ये सबक आज हमें कितना याद है इस सवाल का जवाब हमें खुद अपने आप से मांगना होगा.

एलफ्रेड हाई स्कूल की दीवार पर लगे गांधी जी के दो पोस्टर उसका संदेश दे रहे हैं

हिमांशु के साथ स्कूल के हर कोने में जाकर यही लगता रहा कि अगर आज गांधी यह देखते तो उन्हें क्या महसूस होता. खैर हमारे साथ गांधी नहीं थे. मेरे साथ सिर्फ हिमांशु था, जिसकी पढ़ाई आठवीं के बाद छूट गई. पूरा स्कूल घुमाने के बाद हिमांशु चुपचाप जाकर फिर उसी बेंच पर बैठ गया, जहां वह मुझे मिला था. वह स्कूल को एकटक निहारने लगा. गांधी पर इतनी बातें करने के बाद शायद वह यह सोच रहा था कि ‘जब गांधी थे तब कैसा होगा यह स्कूल.’