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गुजरात विधानसभा चुनाव 2017: हार्दिक पटेल की लोकप्रियता सीडी कांड के बाद बढ़ी है!

तमाम विवादों के बाद भी हार्दिक पटेल गुजरात में पाटीदारों के निर्विवाद नेता हैं

Sandipan Sharma

गुजरात में मानसा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का इलाका है. शनिवार की शाम को वहां कुछ स्वयंसेवक हार्दिक पटेल की विशाल होर्डिंग के सामने कुर्सियां सजा रहे थे. दूर से सब के सब एक जैसे दिख रहे थे. उनके सिर पर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं जैसी टोपी थी. इस टोपी पर लिखा था हूं छू पाटीदार, यानी मैं पाटीदार हूं. उनके गलों में हार्दिक पटेल की तस्वीरों वाला एक स्कार्फ़ पड़ा हुआ था. सभी सफेद टी-शर्ट पहने हुए थे. उन पर हार्दिक की और भी बड़ी तस्वीर छपी हुई थी.

ये कार्यकर्ता खुलेआम कह रहे थे कि हां हम वही करते हैं जो हार्दिक पटेल कहता है. सारे के सारे पाटीदार उसके साथ हैं. नीले झंडे लहराते हुए वो ये बात एक सुर में कह रहे थे. हार्दिक पटेल का इंतजार कर रहे टीवी वालों के कैमरे जैसे ही उनकी तरफ़ घूमते हैं, वो एक साथ अपने नीले झंडे लहराते हुए हार्दिक पटेल के लिए नारेबाजी करना शुरू कर देते थे.


बड़े उत्साहित होकर ये पाटीदार युवा कह रहे थे कि 'हमने बीजेपी और अमित शाह के खिलाफ उनके घर में जंग छेड़ दी है. हार्दिक पटेल की अगुवाई में हम बीजेपी को गुजरात से खदेड़ देंगे'.

हार्दिक पटेल को वहां आने में अभी तीन घंटे और लगने थे. लेकिन गांधीनगर से महज 30 किलोमीटर दूर मानसा में, हार्दिक पटेल की अहमियत साफ तौर पर उजागर होती है. मंच के ठीक सामने टीवी चैनलों के कैमरों के बीच आगे की जगह पाने के लिए होड़ लगी हुई है. हार्दिक की सम्मान रैली की तरफ जाने वाली सड़कों पर दर्जनों गाड़ियां निगरानी कर रही हैं. गलियों में जबरदस्त उत्साह दिख रहा है. लोग जश्न सा मनाते दिखते हैं. लोगों को उम्मीद है कि विरोधियों ने एक महिला के साथ हार्दिक का जो वीडियो जारी किया है, वो उसका जवाब देंगे.

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मशहूर ब्रिटिश लेखक ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था कि चर्चा में रहने से बुरी सिर्फ़ एक बात होती है, चर्चा में न होना. शायद हार्दिक पटेल के युवा समर्थक इस बात को मानने वाले हैं. हार्दिक के समर्थक कहते हैं कि 'इन वीडियो से हार्दिक पटेल की लोकप्रियता और बढ़ी ही है. उसे देखने के लिए आज और भी भीड़ जुटेगी'. कुछ और लोग कहते हैं कि हार्दिक पटेल वही कर रहे हैं जो युवा आम तौर पर करते हैं. उनका कहना है कि 'हार्दिक पटेल महज 23 बरस का छोकरा है. अगर वो मौज-मस्ती नहीं करेगा तो कौन करेगा'.

क्या असर होगा हार्दिक की सीडी का

हार्दिक पटेल की लोकप्रियता एक पहेली है. ये शायद उस कहावत की मिसाल है कि कुछ लोग पैदा ही महान होने के लिए होते हैं. वो इस चुनाव में किसी ऐसे खिलाड़ी के तौर पर नहीं दिखते, जो बड़ा उलट-फेर कर देगा. अगर आप किसी बाजार में या भीड़ में हार्दिक पटेल को देखें तो शायद पहचान न पाएं. वो एक आम गुजराती युवक जैसा ही दिखता है, जिसे मोबाइल से खेलते रहना पसंद है. हार्दिक को देखकर जरा भी नहीं लगता कि वो इतना बड़ा नेता है.

हार्दिक की विचारधारा का भी कुछ पता नहीं है. आज से कुछ साल पहले वो युवाओं के एक गुट का अगुवा था. ये युवक पाटीदार महिलाओं की इज्जत की हिफाजत करने की जिम्मेदारी लिए फिरते थे. कुछ-कुछ निजी एंटी-रोमियो पुलिस जैसे. दो साल पहले अपने इस रोल के बारे में बताते हुए हार्दिक ने कहा था कि उन्होंने पाटीदार लड़कियों को छेड़ने वाले कुछ शोहदों के हाथ तोड़े हैं.

बाद में जब वो पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता बन गए तो कभी वो राजनैतिक विचारधारा के इस छोर पर खड़े दिखे, तो कभी उस छोर पर. कभी वो शिवसेना को अपने लिए मिसाल बताते, तो कभी आम आदमी पार्टी जैसा आंदोलन छेड़ने की बात करते. आज वो कांग्रेस के खेमे में खड़े नजर आते हैं.

पाटीदारों के निर्विवाद नेता हैं हार्दिक

नेता के तौर पर अपने छोटे से करियर में हार्दिक पटेल ने धुर विरोधी विचारधाराओं के साथ हाथ मिलाने की कोशिश की है. एक-दूसरे के सामने खड़े राजनेताओं के साथ जुड़ने की कोशिश की है. लेकिन, एक बात तो साफ़ है कि वो पाटीदारों के निर्विवाद नेता हैं.

ऐसा क्यों हुआ? इसकी सब से बड़ी वजह है पाटीदार आरक्षण को लेकर उनके स्टैंड में कोई बदलाव न आना. उनके समर्थक मानते हैं कि हार्दिक में कई कमियां भले हों, लेकिन आरक्षण की मांग को लेकर वो अड़े रहे हैं. इसके लिए हार्दिक पटेल ने सरकार के तमाम जुल्म सहे हैं. वो जेल गए हैं. सरकार का दबाव झेला है. ऐसे में लोग ये मानते हैं कि वो पाटीदारों के हीरो हैं. खास तौर से युवा तो उन्हें देवता की तरह पूजते हैं.

भले ही हार्दिक पटेल ने कई लोगों से दोस्ती गांठने की कोशिश की हो, मगर बीजेपी के वो लगातार कट्टर दुश्मन बने हुए हैं.

यही वो वजहें हैं कि जब भी हार्दिक पटेल कहीं जाते हैं, तो उनके साथ सैकड़ों समर्थकों का हुजूम चलता है. जब भी वो पाटीदारों का समर्थन मांगते हैं, उनकी रैली में हजारों लोग जुट जाते हैं.

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अब वजह चाहे जो भी हो, मगर गुजराती लोग मजबूत, सख्त इमेज वाले नेताओं को पसंद करते हैं. मिसाल देखिए. नरेंद्र मोदी, अमित शाह या फिर हार्दिक पटेल. ये नेता गुजरातियों की सख्त मिजाज नेताओं की पसंद जताते हैं. जो खुद को बहुत बड़ा बता कर पेश करते हैं. वो अपने राजनैतिक-सामाजिक लक्ष्य को पाने के लिए मजबूती से आगे बढ़ते हैं. हालांकि फिलहाल मोदी और अमित शाह की तुलना हार्दिक पटेल से कहना ठीक नहीं है. लेकिन इन सभी की लोकप्रियता की बुनियाद गुजराती मानसिकता ही है.

अब बड़ा सवाल ये है कि क्या हार्दिक पटेल उम्मीदों पर खरे उतर पाएंगे? क्या हार्दिक पटेल उस धमकी पर अमल कर पाएंगे, जो वो देते फिरते हैं. समर्थक दावा करते हैं कि ज्यादातर पाटीदार उनके साथ हैं. हालांकि निष्पक्ष जानकारों का कहना है कि पाटीदार युवा तो हार्दिक के साथ हैं, मगर पुरानी पीढ़ी उन्हें पसंद नहीं करती है. उनके विरोधी तो यही कहते हैं कि हार्दिक तो शोर मचाने वाला हवा का एक झोंका भर है जो जल्द ही बिखर जाएगा.

गुजरात में मतदान अभी करीब-करीब एक महीने दूर हैं. ऐसे में किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी. लेकिन हमें एक बात याद रखनी चाहिए. जुलाई 2015 में पाटीदार आंदोलव के ठीक बाद बीजेपी को पंचायत चुनाव में जबरदस्त झटका लगा था. इसकी वजह पाटीदारों की नाराजगी और हार्दिक पटेल का बीजेपी विरोध बतायी गई थी.

कुछ लोगों को लगता है कि हार्दिक पटेल, केशुभाई पटेल जैसे हैं. 2012 में पाटीदार नेता और पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ा था. उन्हें बीजेपी के लिए बड़ा खतरा बताया गया था. कहा गया था कि वो पटेल वोट, बीजेपी के खेमे से खींच लेंगे. लेकिन जब नतीजे आए तो केशुभाई इसी बात से सबसे ज्यादा खुश हो गए कि मोदी ने आकर उन्हें मिठाई खिलाई थी. मोदी ने बड़े नेता जैसा रवैया दिखाते हुए 2012 में शानदार जीत के बाद केशुभाई के घर जाकर उनका आशीर्वाद लिया था.

लेकिन केशुभाई पटेल और हार्दिक के बीच एक बड़ा फर्क है. जहां केशुभाई ने चुनाव से ठीक पहले बीजेपी से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाई थी. वहीं हार्दिक पटेल काफी अर्से से बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. केशुभाई मौकापरस्त लगे थे. वहीं हार्दिक पटेल शुरू से बीजेपी के खिलाफ हैं.

अगर वोटर हार्दिक पटेल के प्रति केशुभाई से ज्यादा लगाव दिखाते हैं, तो इस बार मिठाई किसी अलग प्लेट में भी दिख सकती है. अब इस चुनाव के नतीजे जो भी हों, आप को हार्दिक पटेल को एक बात का श्रेय तो देना होगा. भारत में किसी चुनाव में ये पहली बार है कि 23 साल का युवा, जो चुनाव भी नहीं लड़ सकता, वो इतना बड़ा खिलाड़ी हो गया है.

आज हार्दिक की अहमियत इस सवाल से ही समझ में आती है कि वो कितने पटेल वोट खींच सकते हैं?