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गुजरात चुनाव 2017: देश को नमक देने वाले मजदूरों को ढंग की चिता भी नसीब नहीं होती

देश के 76 फीसदी लोग गुजरात में बना नमक खाते है इस नमक को बनाने में अंगरिया मजदूर नर्क जैसी जिंदगी जीते हैं

Updated On: Nov 28, 2017 12:17 PM IST

Ankur Mishra

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गुजरात चुनाव 2017: देश को नमक देने वाले मजदूरों को ढंग की चिता भी नसीब नहीं होती

नमक का कर्ज, नमक हलाली और नमक हराम. नमक से जुड़ी ये सारी कहावतें नमक नहीं हिंदुस्तान की जीवन शैली को दिखाती हैं. बात जब नमक की आती है तो गुजरात का नाम अपने आप जुड़ जाता है. गांधी के डांडी मार्च का इतिहास में एक अलग महत्व है. वहीं देश की सबसे मशहूर नमक बनाने वाली कंपनी टाटा नमक का इतिहास भी गुजरात से जुड़ता है. मगर देश को नमक देने वाले कच्छ के लोगों की अपनी जिंदगी नमकीन नहीं खारी है. ये लोग जीवन भर तो तकलीफ सहते ही हैं, मरने के बाद भी उन्हें आराम नहीं मिलता. मगर इनकी तकलीफों पर कम ही बातें होती है.

सबसे बड़ा कच्छ

गुजरात में स्थित कच्छ देश के इस प्रदेश का सबसे बड़ा हिस्सा है. इस कच्छ का 2/3 हिस्सा रण कहलाता है. कहा जाता है कि रण ऑफ कच्छ से ही कई महान प्राचीन सभ्याताओं का उत्थान हुआ है.

कच्छ को दो भागों में बांटा गया है.पहला लिटिल रण ऑफ कच्छ और ग्रेट रण ऑफ कच्छ. ये अनोखा बंजर आज भी बहुत लोगों के लिए अपना घर और जीवनयापन का सहारा है. गुजरात के रण की दिल्चस्प बात है की बारिश के महीनों बाद भी यहां की जमीन बेरहम तरीके से बंजर हो जाती है.

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स्वाद पहुंचाने वाला नमक असल जिंदगी में कितना है कड़वा?

‘जख्म पे नमक छिड़कना’ ये कहावत आपने सुनी होगी. लेकिन भारतीयों तक स्वाद पहुंचाने वाला ये नमक कईयों के लिए बहुत कड़वा है. खाने में नमक ज्यादा हो जाए तो आप दूसरी थाली ले सकते हैं. अगर जिंदगी में नमक जरूरत से ज्यादा हो जाए तो मरने के बाद अंतिम संस्कार तक ढंग से नहीं हो पाता है.

A labourer works on a salt pan in Little Rann of Kutch in the western Indian state of Gujarat March 2, 2014. Salt pans begin pumping out sub-soil brine water towards the end of the monsoon in October, and this lasts till end-March, after which it is dried till crystals are formed. The crystals are collected by mid-June and it takes another eight months to process them to make edible salt. India is the third largest producer of salt in the world after the U.S. and China. REUTERS/Ahmad Masood (INDIA - Tags: BUSINESS EMPLOYMENT) - GM1EA3304EQ01

देश के 76 फीसदी लोग गुजरात में बना नमक खाते है इस नमक को बनाने में कच्छ अगरिया जाति के लोगों का अहम योगदान है. तेज धूप में समुद्र के पानी से नमक निकालने वाले ये छोटे किसान बहुत मुश्किल से दो वक्त की रोटी नमक के साथ खाकर अपना जीवन व्यतीत करते है.नमक के किसान काम करते-करते ढ़ेर सारी परेशानियों का सामना करते है जैसे समुद्र में काम करने वाले ये किसान अपनी आंखों की रोशनी खो देते है. आज देश का हाल ऐसा हो गया है की सियासी घमासान की रेस में इन छोटे किसानों की कोई सुनने वाला नहीं है.

नमक निकालने वाले मजदूरों को अंगरिया कहते हैं. इन लोगों को नमक बनाने के लिए अपनी जिन्दगी को खतरे में डालना पड़ता है. इनमें से करीब 98 प्रतिशत श्रमिक चर्म रोग के शिकार हो जाते हैं. ये अंगरिया मजदूर झोपड़ियों में रहते हैं और इनमें बड़ी संख्या 16 साल से कम के बच्चों की है. लगभग 90 फीसदी मजदूरों के पास एक इंच भी जमीन नहीं है और वो गरीबी की रेखा के नीचे आते हैं.

कच्छ में गर्मी में 48 डिग्री की गर्मी और सर्दियों में हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बीच ये श्रमिक बिना बिजली, पानी, शौचालय, शिक्षा और सड़क के बिना काम करते हैं. हर साल जून से अक्टूबर के बीच यहां नमक की खेती होती है.

इनकी जिंदगी का असल दुख मरने के बाद होता है जब इन छोटे किसानों को ढंग की चिता नसीब नहीं होती. इनकी चिता में आग इसलिए नहीं लगती क्योंकि जिंदगी भर नमक से भरे समुद्र में काम करने से इनके शरीर में नमक की मात्रा ज्यादा हो जाती है. शरीर में नमक की मात्रा ज्यादा होने के कारण किडनी फेल, हार्ट अटैक और ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं इन छोटे किसानों को होती है. इन बिमारियों का इलाज कराने के लिए इन नमक के किसानों के पास इतना पैसा नहीं है कि ये इलाज करा सकें.

Labourers work on a salt pan in Little Rann of Kutch in the western Indian state of Gujarat March 2, 2014. Salt pans begin pumping out sub-soil brine water towards the end of the monsoon in October, and this lasts till end-March, after which it is dried till crystals are formed. The crystals are collected by mid-June and it takes another eight months to process them to make edible salt. India is the third largest producer of salt in the world after the U.S. and China. REUTERS/Ahmad Masood (INDIA - Tags: BUSINESS EMPLOYMENT) - GM1EA33036501

देश की आजादी में रहा नमक का योगदान

हमारे देश की आजादी में नमक का अहम योगदान रहा. महात्मा गांधी ने तरह-तरह के आंदोलन किेए. इसमें से एक आंदोलन था नमक आंदोलन. नमक आंदोलन जिसे डांडी यात्रा के नाम से भी जाना जाता है. नमक सत्याग्रह इतिहास में चर्चित डांडी यात्रा की शुरुआत 12 मार्च 1930 से हुई. ये आंदोलन नमक पर टैक्स लगाने के कारण हूआ. ये डांडी यात्रा में गांधी जी ने लगातार 24 दिनों में 400 किलोमीटर तक का सफर तय किया.

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ये मार्च ब्रिटिश शासन के एकाधिकार के खिलाफ अंहिसा के साथ शुरू हुआ.इस आंदोलन के पहले भारतीयों को नमक बनाने के अधिकार नहीं था. इस आंदोलन में गांधी जी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से लेकर डांडी गुजरात तक यात्रा की.

नमक सत्याग्रह के बाद आज का युग

इस नमक बनाने की प्रकिया में ये छोटे किसान धीरे-धीरे मौत के मुंह में जा रहें हैं. इन छोटे किसानों की आमदनी का इकलौता जरिया सिर्फ नमक ही है.भारत में 1 लाख 80 टन की खपत के बावजूद भी दुनिया के 20 देशों को हर साल भारत 50 लाख टन नमक का निर्यात करता है. नमक जिंदगी की जरुरत भी स्वाद की मजबूरी भी है. गुजरात के कच्छ में नमक के किसानों की जिंदगी बड़ी दुखदाई है.

Labourers work on a salt pan in Little Rann of Kutch in the western Indian state of Gujarat March 2, 2014. Salt pans begin pumping out sub-soil brine water towards the end of the monsoon in October, and this lasts till end-March, after which it is dried till crystals are formed. The crystals are collected by mid-June and it takes another eight months to process them to make edible salt. India is the third largest producer of salt in the world after the U.S. and China. REUTERS/Ahmad Masood (INDIA - Tags: BUSINESS EMPLOYMENT) - GM1EA3304D001

रण उत्सव पूरे देश में है प्रसिद्ध

भारत में हर साल होने वाले रण उत्सव में हजारों लोग शामिल होते है. रण का उत्सव तीन दिनों तक चलता है.ये रण उत्सव भारत में ही नहीं बल्कि पूरे देश में प्रसिद्ध है.

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अरब सागर से घिरे कच्छ का नाम सुनते ही दिमाग में सबसे पहले रण उत्सव जहन में आता है.इस रण उत्सव के द्वारा भारत की संस्कृति, सभ्यता और कला पूरे देश में प्रदर्शित की जाती है.

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