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सुलगते मंदसौर में राहुल के दौरे ने बढ़ाया सियासी उबाल, चले भट्टा-परसौल की राह

राहुल के मंदसौर दौरे में सहारनपुर का अक्स और भट्टा-परसौल की स्टाइल दिखाई देती है

Kinshuk Praval

मध्यप्रदेश में मंदसौर सुलग रहा है तो सियासत भी. अचानक किसान आंदोलन की आग में सियासी उबाल बढ़ा दिया कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने. किसान आंदोलनकारियों से मिलने के लिये राहुल दिल्ली से मंदसौर कूच कर गए.

बॉर्डर पर काफिले के रोके जाने पर राहुल प्रशासन को चकमा देने के लिये मोटर साइकिल से रवाना हो गए. 'मंदसौर टूर' में भट्टा-परसौल की स्टाइल दिखाई दी. लेकिन उन्हें नीमच के पास हिरासत में ले लिया गया. क्योंकि प्रशासन से राहुल को मंदसौर जाने की इजाजत नहीं मिली थी. हिरासत के बाद राहुल ने मोदी सरकार पर किसानों का कर्जा माफ न करने का आरोप लगाया.


नाटकीयता से भरे पूरे घटनाक्रम में राहुल गांधी सिर्फ ये बताने की कोशिश करते रहे कि उन्हें पीड़ित परिवारों से मिलने नहीं दिया जा रहा है. यही एक्शन रीप्ले यूपी के सहारनपुर में भी दिखा था. सहारनपुर दंगे के बाद राहुल पीड़ित परिवार से मिलने गए थे. प्रशासन की उन्हें इजाजत नहीं मिली थी. लेकिन राहुल की जिद के चलते यूपी पुलिस को सीमा तक सील करनी पड़ी थी. उसके बावजूद राहुल दंगाग्रस्त शब्बीरपुर न पहुंच कर पास के ही सरसवा गांव पहुंच गए थे.

राहुल ये जानते थे कि उन्हें मंदसौर जाने की इजाजत मिलेगी भी नहीं. लेकिन अपनी अलग राजनीति की स्टाईल के चलते वो मंदसौर के करीब तक पहुंच गए. कांग्रेस के लोग सोचकर खुश हो सकते हैं कि उनके भावी अध्यक्ष ने कम से कम मंदसौर के बॉर्डर को छू तो लिया. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जब मंदसौर इतनी आग में जल रहा है तो राहुल का मंदसौर जाना किस लिहाज से जरूरी था?

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'ट्रेजेडी टूरिज्म' का आरोप

मध्यप्रदेश सरकार हिंसा से जल रहे मंदसौर को लेकर सुरक्षा में कोई चूक नहीं करना चाहती. पुलिस फायरिंग से 6 किसानों की मौत के बाद हालात तनावपूर्ण हैं. आंदोलनकारी अबतक कई गाड़ियों को आग के हवाले कर चुके हैं. भड़की हिंसा के चलते कर्फ्यू लगा दिया गया है.

राज्य सरकार का आरोप है कि ऐसे संवेदनशील मौके पर कांग्रेस राजनीति कर रही है. बीजेपी ने राहुल गांधी पर ‘ट्रैजिडी टूरिज्म’ का आरोप लगाया है.

दरअसल मंदसौर हिंसा के बहाने हाथ आए मौके को कांग्रेस गंवाना नहीं चाहती है क्योंकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की स्थिति दूसरे राज्यों से ज्यादा मजबूत है. मध्यप्रदेश की राजनीति के बड़े नाम राहुल की कोर टीम में अपनी अहमियत रखते हैं. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को राहुल गांधी का ‘राजनीतिक गुरू’ माना जाता है तो ग्वालियर में सिंधिया घराने के ज्योतिरादित्या सिंधिया राहुल के बेहद करीबी माने जाते हैं.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस भले ही अब सत्ता के सूखे से गुजर रही है लेकिन वो यहां बीजेपी के मुकाबले की इकलौती पार्टी है. बाबरी विध्वंस के बाद बर्खास्त हुई मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार के बाद कांग्रेस ने दस साल शासन किया. उससे पहले भी कांग्रेस के लिये मध्य प्रदेश में स्थिति हमेशा मजबूत ही रही है.

ऐसे में साल 2019 के लोकसभा चुनाव और आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए किसान आंदोलन में कांग्रेस अपने लिये सियासत की जमीन तलाश रही है.

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किसानों के लेकर राहुल की रणनीति

कांग्रेस राहुल को किसान नेता के रूप में भी प्रोजक्ट कर रही है क्योंकि इस किसान फैक्टर का एक सियासी गणित भी है. तभी राहुल ने यूपी में एक महीने की ‘देवरिया टू दिल्ली’ की यात्रा में करीब 26 दिन किसानों के साथ बिताए थे.

अब मंदसौर के जरिये कांग्रेस के हाथ में किसानों के आंदोलन के रूप में एक मुद्दा आ गया है. किसानों के असंतोष का फायदा राहुल उठाना चाहते हैं. कांग्रेस को ये उम्मीद नजर आ रही है कि किसानों की नाराजगी के बूते वो सत्ता में वापसी कर सकती है. भले ही राहुल को मंदसौर में मृतकों के परिवारों से मिलने का मौका नहीं मिले लेकिन सहारनपुर की तरह ही वो ये संदेश देने में जरूर कामयाब हो जाएंगे कि कांग्रेस ही दलितों और किसानों की हितैषी पार्टी है.

कांग्रेस को लगता है कि जिस तरह साल 2009 में यूपीए सरकार ने किसानों का साठ हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया था. उसके बाद ही उसे यूपी में लोकसभा की 21 सीटें मिली थीं. ऐसे में किसानों के अगुवा बनने की राहुल की कोशिश उनके पुराने प्रयासों का एक्शन री-प्ले भर है. सोचने वाली बात ये है कि इन मुद्दों पर सियासत करने के बाद कांग्रेस को आखिर हासिल क्या हो सकेगा?