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कश्मीर में अशांति: उग्रवादियों के निशाने पर पुलिस और उनका परिवार

उग्रवादियों ने चेतावनी दी कि अगर पुलिसकर्मी उनके परिजनों को परेशान करते हैं तो उन्हें उसके बुरे परिणाम भुगतने होंगे.

Aijaz Nazir

कश्मीर में तनाव बना हुआ है जबकि 9 अप्रैल को श्रीनगर उपचुनाव के दौरान फैली हिंसा और 17 अप्रैल को पूरी घाटी को हिला देने वाले छात्रों के प्रदर्शन के बाद से सुरक्षा संस्थान हालात को काबू में करने के लिए लगातार लगे हुए हैं.

इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. टेलीकॉम ऑपरेटर्स को निर्देश दिए गए हैं कि वे सिर्फ 2जी सेवा ही जारी रखें ताकि भीड़ इकट्ठा करने और उत्तेजक वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड होने से रोका जा सके.


महत्वपूर्ण शहरों में अतिरिक्त पुलिस बलों को भी तैनात किया गया है ताकि किसी संभावित प्रदर्शन को रोका जा सके.

हालांकि, सुरक्षा संस्थानों के सामने एक नई चुनौती पेश हुई है. सरकार ने प्रदर्शन रोकने के लिए अतिरिक्त पुलिसकर्मी तैनात किए हैं लेकिन ये पुलिसकर्मी खुद को मुश्किल परिस्थितियों में पा रहे हैं क्योंकि उनके सिर पर उग्रवादी खतरा

मंडरा रहा है.

दक्षिण कश्मीर में शोपियां जिले के मेलदूरा और हाजीपोरा में 15 अप्रैल की रात मास्क पहनकर गनमैन दो पुलिसकर्मियों के घर घुस गये और उनसे सार्वजनिक रूप से मस्जिद से ये एलान करने को कहा कि सभी पुलिसकर्मियों

को इस्तीफा दे देना चाहिए.

इससे पहले उग्रवादियों ने पुलिसकर्मियों के रिश्तेदारों को चेतावनी दी थी कि वे अपनी नौकरी छोड़ दें और उनके अभियान ‘दमन से लड़ो’ में शामिल हों. पिछले महीने 6 मार्च को शोपियां में 10 बंदूकधारियों ने एक आला पुलिस अधिकारी के घर उत्पात मचाया और नौकरी छोड़ने या फिर परिवार को बुरे अंजाम

भुगतने की चेतावनी दी.

ऐसी घटनाओं ने पुलिस विभाग को यह एडवाइजरी जारी करने पर मजबूर कर दिया है कि फील्ड में तैनात पुलिसकर्मी कुछ महीनों के लिए खासकर दक्षिण कश्मीर में अपने-अपने घरों में लौटने से बचें.

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बुरहान की मौत के बाद कश्मीर में विरोध प्रदर्शन बढ़ गया है (REUTERS)

बुरहान वानी की मौत

पिछले साल 8 जुलाई को हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हुई अशांति के दौरान उग्रवादियों ने स्थानीय पुलिस को प्रदर्शन से दूर रहने और प्रदर्शनकारियों को परेशान नहीं करने की चेतावनी कई बार

जारी की थी.

उग्रवादी खास तौर पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ज्यादा बल प्रयोग से नाराज थे. अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इसके लिए सुरक्षा बलों की आलोचना की थी.

उग्रवादियों ने चेतावनी दी थी कि अगर पुलिसकर्मी उनके परिजनों को परेशान करते हैं तो उन्हें उसके बुरे परिणाम भुगतने होंगे.

उदाहरण के लिए दिसंबर 2016 में बुरहान के बाद उसकी जगह लेने वाले जाकिर रशीद भट्ट ने एक वीडियो में पुलिसकर्मियों के परिजनों को चेतावनी दी थी कि अगर पुलिस उनके रिश्तेदारों को तंग करना बंद नहीं करती

है तो उन पर भी हमले किए जाएंगे.

उसने कहा था, 'हमारे परिवारवालों को परेशान कर तुम (पुलिस) बड़ी भूल कर

रहे हो. अगर तुम हमारे परिवारों को छूओगे तो हम तुम्हारे परिवार को भी नहीं बख्शेंगे. तुम सोचते हो कि तुम्हारे परिवार जम्मू में हैं तो सुरक्षित हैं. अगर तुम्हारे परिवार कन्याकुमारी में भी रहें तो हम उन्हें भी मार सकते हैं.'

इसके बाद पुलिस बदले पर उतर आयी. मार्च में एक वरिष्ठ पुलिसकर्मी के घर हमले के बाद पुलिस महानिदेशक एसपी वैद ने भी उग्रवादियों को यह कहते हुए चेतावनी दी, 'उग्रवादियों को समझना चाहिए कि उनके भी परिवार हैं.'

उन्होंने कहा, 'हम हमेशा से उग्रवादियों के परिजनों के साथ अच्छा बर्ताव करते रहे हैं और हमने हमेशा उनसे कहा है कि वे अपने बच्चे का समर्पण कराएं और उनका पुनर्वास कराएं. लेकिन, उन्होंने हमारे परिवारों पर हमला किया है.

उन्हें महसूस करना चाहिए कि उनके परिवार सिर्फ कश्मीर में रहते हैं.'

फिर भी उग्रवादी पुलिस पर नजरें गड़ाए हैं और हाल की हत्याओं ने सुरक्षा संस्थानों के सामने खतरे की घंटी बजा दी है और वे अपने परिवारों को लेकर चिंतित हैं. और यह चिंता हर गुजरते दिन के साथ बढ़ती चली जा रही है.

पुलिसकर्मी और उनके परिजन जिनसे इस संवाददाता ने बात की लगातार यही आग्रह करते रहे कि उनके नाम रिपोर्ट में न लिखे जाएं.

एक पुलिसकर्मी का बेटा जो श्रीनगर में पोस्टेड है...उसने फर्स्टपोस्ट को बताया, 'मेरे पिता गांव के सम्मानित व्यक्ति हैं. वे धार्मिक हैं. कोई खतरा नहीं है लेकिन हां असुरक्षा का भाव हम सब में है.'

उसका मानना है कि पुलिस प्रमुख की एडवाइजरी सही है. उसने बताया, 'हम भी ऐसा ही महसूस करते हैं. उन्हें घर आने से बचना चाहिए क्योंकि इससे हमारी चिंता बढ़ जाती है.'

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कश्मीर में बढ़ते तनाव के बीच महिलाओं का विरोध प्रदर्शन

उग्रवादियों पर निशाना

दक्षिण कश्मीर के अनन्तनाग से एक पुलिसकर्मी ने फर्स्टपोस्ट को अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि उसका परिवार दिन में कई बार उसे फोन करता है. उसने आगे कहा कि पिछले साल भी वह इस सदमे से गुजरा है.

उसने फर्स्टपोस्ट को बताया, 'पिछले साल परिस्थिति अलग थी. हालांकि

मैं पुलिस अधिकारियों में नहीं था. फिर भी इस दौरान जब कभी मैं घर आया करता तो घरों के अंदर ही रहता.'

उसका मानना है कि. 'पिछले साल के मुकाबले अब स्थिति शांत है.' लेकिन वह आगे कहता है, 'उग्रवादियों की धमकी चिंताजनक है.'

पिछले साल की अशांति खासतौर से पुलिसकर्मियों के लिए मुश्किल वाली थी क्योंकि अलगाववादी नेताओं ने कुछ पुलिस अफसरों के नाम खुलेआम लिए थे जिन्होंने प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया था.

ऐसे ही एक मामले में हुर्रियत के चेयरमैन एसएएस गिलानी ने एक सब इंस्पेक्टर मीर (पूरा नाम मीडिया रिपोर्ट्स में रोक रखा गया है) का नाम लिया था जिसने कथित रूप से दक्षिण कश्मीर में प्रदर्शनकारियों पर पैलेट छोड़े थे.

इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए मुंबई स्थित थिंक टैंक गेटवे हाऊस के सुरक्षा विशेषज्ञ समीर पाटिल ने फर्स्टपोस्ट को बताया, 'घाटी में पुलिसकर्मियों को ऐसी उग्रवादी धमकी नयी बात नहीं है. इससे पहले भी कई बार ऐसी चेतावनियां

उग्रवादी संगठन देते रहे हैं.'

वे आगे कहते हैं, 'इस बार जो बात अलग है वह यह कि सार्वजनिक रूप से किसी एक पुलिस अफसर को निशाना बनाया जा रहा है. जो सुरक्षा के वर्तमान हालात में निश्चित रूप से उनके मनोबल पर असर डालेगा. खासकर,

उन पर जो संवेदनशील जवाबी ऑपरेशनों से जुड़े हैं.'

खास पुलिस वालों का नाम लिए जाने से कई पुलिसकर्मियों के लिए एक और दुविधा पैदा हो गयी है जो पेशे से बंधे हैं और जिन्हें अपनी रोजी-रोटी की फिक्र के साथ-साथ सामाजिक बहिष्कार का खतरा बना हुआ है.

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उग्रवादी अब उन पुलिसकर्मियों के परिवारों को निशाना बना रहे हैं जो पुलिस फोर्स का हिस्सा हैं

निशाने पर पुलिस बल

जम्मू-कश्मीर पुलिस अपने जवानों पर आने वाले इस खतरे को ढंक रही है. शायद ऐसा कर वो अपने इरादों का प्रदर्शन कर रही है. उन्होंने मुख्यधारा के राजनीतिक कार्यकर्ताओं और विद्रोहियों को निशाना बना रखा है.

एक राजनीतिक कार्यकर्ता बशीर अहमद डार को पुलवामा जिले में मार गिराया गया जबकि उसका रिश्तेदार भाई अल्ताफ अहमद उस वक्त घायल हो

गया जब एक बंदूकधारी ने उस पर 15 अप्रैल को फायर किया.

इसी तरह एक वकील इम्तियाज अहमद खान जिसे एक राजनीतिक पार्टी से जुड़ा माना जाता था की 17 अप्रैल को शोपियां में हत्या कर दी गयी. उसी दिन उत्तरी कश्मीर के बांदीपोर जिले के हाजिन इलाके में कश्मीर के कुख्यात उग्रवादी राशिद बिल्ला को उसके घर में मार गिराया गया.

वह विद्रोह के शुरुआती दिनों में इख्वान युग का कुख्यात उग्रवादी था.

ये हत्याएं और पुलिस पर उग्रवादी खतरा के साथ राजनीतिक कार्यकर्ताओं को अलग-अलग वीडियो क्लिप भेजे जा रहे हैं.

इन क्लिप्स में उन्हें राजनीतिक दलों को छोड़ने के लिए कहा जा रहा है जिससे उन लोगों में डर का माहौल बना दिया गया है जो मुख्यधारा की राजनीतिक प्रक्रिया में लंबे समय से जुड़े रहे हैं.

पुलवामा ट्रेडर्स फेडरेशन के अध्यक्ष बशीर वानी ने 18 अप्रैल को अपने पद से ये कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि उनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी राजनीतिक पार्टी से कोई संबंध नहीं है.

अशांति के इस वर्तमान फेज से जो निकलकर आ रहा है वह बहुत साफ है कि पुलिस के जवानों पर लगातार निशाना बनाने की घटनाओं ने मुश्किल हालात पैदा कर दिए हैं.

खासकर, उन लोगों के लिए जो निचले स्तर पर हैं और जो अचानक होने वाली हिंसा के सबसे पहले शिकार होते हैं. साथ ही जो वर्तमान परिस्थिति में समाज की ओर से बहिष्कृत होते हैं.