चार साल पहले जब मैं श्रीनगर गया था, तो डल झील के पास एक दीवार पर लिखा था: डरो मत, यहां भी इंसान रहते हैं!
श्रीनगर बुलेवार्ड, यानी डल झील के किनारे-किनारे वो इलाका, जहां से आप कुदरत के शानदार नजारे कर सकते हैं. गर्मियों में अक्सर सैलानी यहां घूमने आते हैं. इसके बाईं तरफ शिकारे और नावें लगी रहती हैं. जो आपको डल झील की यादगार सैर कराने का वादा करती हैं. यहां से वो आपको चार चिनारी द्वीप तक ले जाती हैं.
श्रीनगर बुलेवार्ड के दाहिनी तरफ कतार से होटल और रेस्टोरेंट हैं. जो आपको शानदार नजारे वाले कमरे देने का वादा करते हैं. यहां से आप झील और बर्फ से लदे पहाड़ों की खूबसूरत तस्वीरें निहार सकते हैं. कश्मीर के रेस्टोरेंट में इतना खाना परोसा जाता है कि आम इंसान तो उसे खत्म ही नहीं कर सकता. उस वक्त रेस्टोरेंट के लोग बताते हैं कि कोई कश्मीरी होता तो ये सारा खाना खत्म करने के बाद कहता कि मेन कोर्स में वाजवान पेश किया जाए!
सवाल ये है कि सैलानियों के लिए स्वर्ग सरीखी इस जगह पर दीवार पर ये लिखने की क्या जरूरत पड़ गई कि, 'डरो मत, यहां भी इंसान रहते हैं'.
इसका जवाब साफ है. बहुत से भारतीय, कश्मीरियों को भारतीय नहीं मानते. कई लोगों की ऐसी मानसिकता है. वो सोचते हैं कि कश्मीरियों से या तो नफरत करना चाहिए. या फिर उनसे डरना चाहिए. वो अलगाववादी हो सकता है. इसलिए उस पर काबू पाने की जरूरत है.
मैंने ये कहानी गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बयान को लेकर बयां की है. राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को नई दिल्ली में कहा कि, 'मैं सभी से अपील करता हूं कि वो कश्मीरी युवकों को अपना भाई ही समझें. उनसे अच्छा सलूक करें'. गृह मंत्री ने सभी राज्यों की सरकारों को निर्देश दिया कि वो कश्मीरियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें. उनसे बदसलूकी या मारपीट करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो.
कश्मीरी अपने वतन में ही विदेशी हैं
राजनाथ का ये बयान आज कश्मीर के बदले हुए हालात और इसे लेकर आम भारतीय की सोच की मिसाल है. गृह मंत्री को कश्मीरियों को अपने वतन में ही सुरक्षा देने और अच्छे बर्ताव की अपील करनी पड़ रही है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात कितने बेकाबू हो गए हैं.
पिछले हफ्ते कश्मीरियों को पत्थरबाज कहकर उनका मजाक उड़ाया जा रहा था. राजस्थान में उनसे बदसलूकी की गई. वहीं उत्तर प्रदेश के मेरठ में उन्हें राज्य छोड़कर जाने की चेतावनी देने वाले होर्डिंग लगाए गए थे.
सोशल मीडिया पर कश्मीरियों को सबक सिखाने की बातें कही जा रही हैं. सबसे खराब सोशल मीडिया मैसेज तो क्रिकेटर गौतम गंभीर ने लिखा था. गंभीर ने लिखा था कि हर भारतीय जवान पर पड़े एक थप्पड़ के बदले में सौ जानें ली जानी चाहिएं. गंभीर ने ट्विटर पर लिखा था, 'मेरी सेना के जवान पर पड़े हर थप्पड़ के बदले में सौ जिहादियों की जान ली जानी चाहिए. जिसे भी आजादी चाहिए, वो देश छोड़कर चला जाए. कश्मीर हमारा है'.
कश्मीर एक पेचीदा राजनैतिक-सामाजिक चुनौती है. इसकी शुरुआत देश के बंटवारे के वक्त से ही हो गई थी. 1948 से ही भारत और पाकिस्तान, कश्मीर को लेकर लड़ते आए हैं. दशकों पुरानी इस समस्या का रातों-रात निपटारा मुश्किल है. आने वाले दिनों में भी कश्मीर, देश के लिए चुनौती बना रहेगा.
कश्मीरियों का अपमान, उनसे बदसलूकी से ये मसला और बिगड़ेगा. कश्मीरियों को अलग मानना, ये स्वीकार करना है कि भारत ने कश्मीर पर अवैध कब्जा किया हुआ है. आज घाटी में हालात बेहद बिगड़े हुए हैं. इस तरह की बातों से आग और भड़क सकती है.
सत्ता की खुली चुनौती
जब से हिज्बुल मुजाहिदीन का आतंकी बुरहान वानी, मुठभेड़ में मारा गया है, तब से कश्मीरी युवा भड़के हुए हैं. पहले तो भारत के सुरक्षा बलों को आतंकवादियों का ही सामना करना पड़ता था. अब युवाओं और छात्रों ने मोर्चा संभाला हुआ है. कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें स्थानीय लोगों ने सुरक्षा बलों पर हमला करके आतंकियों को भगाने में मदद की.
दक्षिण कश्मीर और श्रीनगर आज ऐसे युवाओं के गढ़ बन चुके हैं. वो खुले तौर पर भारत की सत्ता को चुनौती दे रहे हैं. अभी पिछले हफ्ते सरकार की और चुनाव आयोग की तमाम कोशिशों के बावजूद श्रीनगर लोकसभा सीट के लिए हुए उप चुनाव का बहिष्कार किया गया, जो बेहद कामयाब रहा. इस सीट पर कुल सात फीसद वोटिंग हुई. अनंतनाग में तो हालात ऐसे बिगड़े की मतदान स्थगित करना पड़ा.
कश्मीर के बारे में हर जानकार का यही मानना है कि आज कश्मीरी युवा न तो सरकार से डरता है और न ही सुरक्षा बलों से. लोग बताते हैं कि संगीनों के साए में पली-बढ़ी आज की युवा पीढ़ी उनसे बिल्कुल नहीं डरती. वो अपने हाथ में आई हर चीज से मुकाबले के लिए तैयार हैं, भले ही वो पत्थर क्यों न हों. वो सोशल मीडिया पर प्रचार के जरिए भी भारतीय प्रशासन से मुकाबला कर रहे हैं.
आज युवाओं को दबाने-डराने की रणनीति बिल्कुल काम नहीं कर रही है. सुरक्षा बलों के हर अभियान के बाद हिंसा का नया दौर भड़क उठता है. दर्जनों युवकों ने आतंकी संगठनों का हाथ थाम लिया है.
ऐसे में जब देश के दूसरे हिस्सों में कश्मीरी युवकों से बदसलूकी होती है, तो उससे वो भारत से और दूर ही होते हैं. वो अपने ही देश में खुद को बाहरी महसूस करते हैं. ऐसे में कश्मीरी युवकों के साथ बदसलूकी से उनका झुकाव अलगाववाद की तरफ बढ़ता जाता है. उनको ऐसा लगता है कि भारत उनका वतन नहीं. यहूदियों की तरह कश्मीरियों के दिल में भी अपने वतन की चाहत बढ़ती जाती है.
सैलानियों के लिए खतरा बढ़ा
कश्मीरियों से बदसलूकी का एक और नुकसान हो सकता है. अब तक, भारत के दूसरे राज्यों से कश्मीर जाने वाले लोगों का दिल खोलकर स्वागत होता था. 90 के दशक में जब सैलानी कश्मीर जाते थे, तो अलगाववादी उन्हें निशाना बनाते हैं. बाद में सैलानियों के लिए हालात काफी बेहतर हो गए थे. कश्मीरी तो अपनी मेहमाननवाजी के लिए जाने जाते थे. लेकिन अगर देश के दूसरे हिस्सों में कश्मीरियों पर यूं ही हमले होते रहे, तो इससे घाटी में हालात और बिगड़ सकते हैं. कुछ कश्मीरी युवकों की पिटाई करके कश्मीर को भारत से जोड़े रखा जा सकता है, ये सोचना बड़ी भूल होगी.
गृह मंत्री की ये अपील बिल्कुल वाजिब है कि कश्मीरियों पर हमले करने वालों, उन्हें धमकी देने वालों पर सख्त कार्रवाई हो. कश्मीर के हालात से निपटने का काम राजनेताओं और सुरक्षा बलों पर छोड़ दिया जाना चाहिए.
राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद करने वालों को इससे दूर ही रहना चाहिए. जिन्हें इस समस्या की समझ नहीं है उन्हें तो इसमें बिल्कुल दखल नहीं देना चाहिए. बेवकूफी का ये कदम, घाटी में जल रही आग को और भड़का सकता है. अगर हिंसा भड़की तो श्रीनगर की दीवार पर लिखा वो जुमला कि-डरिए नहीं, यहां भी इंसान रहते हैं, वो मिट जाएगा.
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