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'तेजस्वी भय': मीडिया पर हमला लालू के जंगलराज की याद क्यों दिला रहा है?

लालू के बयानों को यही मीडिया चुटीला कह कर हेडलाइंस बनाता था जिसे आज तेजस्वी गरिया रहे हैं

Kinshuk Praval

बिहार में दबंगई की सरकारी और लाइसेंसी तस्वीर देखनी हो तो आप तेजस्वी यादव को फॉलो करना शुरू कर दीजिए. अगर आप मीडिया से जुड़े हुए हैं और सच की पड़ताल करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल मुफीद शख्स के पास जा रहे है. जिस सूबे के उपमुख्यमंत्री के जिम्मे आम जनता की सुरक्षा होती है वो अपने बाहुबल का दर्शन भी सबको करा सकता है. ये तेजस्वी ने साबित कर दिया. तेजस्वी के कारनामे ने आरजेडी का सीना 56 इंच का बना दिया.

बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के सुरक्षाकर्मियों ने मीडियाकर्मियों के साथ जमकर मारपीट की. मीडिया के सवाल पूछने पर तेजस्वी भड़क उठे तो उनका भड़कना ही देख सुरक्षाकर्मी पहले बाउंसर बने फिर गुंडे बन कर पिल पड़े. ये सब हुआ बिहार विधानसभा के गेट पर.


संवैधानिक पद और संवैधानिक संस्था का मुख्य द्वार और वहां देश के चौथे स्तंभ पर प्रहार.

तेजस्वी का दंभ

तेजस्वी का दंभ मीडिया पर हमले में दिखाई दे रहा था. आखिर मीडिया की इतनी हैसियत कैसे हो गई कि वो तेजस्वी यादव से सवाल पूछे. तेजस्वी यादव कोई आम आदमी या आम नेता नहीं हैं बल्कि वो लालूपुत्र हैं जिन्हें विरासत में शासन करने और सजा देने का अधिकार मिला हुआ है. वो चांदी के पालने में पल कर बड़े हुए हैं.

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उनसे सवाल पूछे नहीं जाते बल्कि उनके सवालों के जवाब दिए जाते हैं. बचपन और किशोर अवस्था से उन्हें हुकूम देने की आदत रही है. वो किसी सामान्य घर नहीं बल्कि राजा के घर जन्मी औलाद की तरह बड़े हुए हैं. जिसने राजतंत्र देखा हो वो भला लोकतंत्र और प्रजातंत्र को क्या समझे?

पिता लालू प्रसाद यादव ने सियासी संघर्ष कर अपनी पहचान बनाई. लालू जमीन से जुड़े हुए नेता रहे. लालू ये भी जानते हैं कि लालू के लालू बनने में मीडिया की कितनी बड़ी भूमिका रही. लालू के बयानों को यही मीडिया चुटीला कह कर हेडलाइंस बनाता था जिसे आज तेजस्वी गरिया रहे हैं.

लालू के युवराज का सामंती गुरूर

तेजस्वी ने पिता से न राजनीति सीखी और न ही उन्होंने ये सीखा कि संवैधानिक पद पर बैठ कर गरिमा को कैसे कायम रखा जाए. आखिर सजी हुई थाली में डिप्टी सीएम का पद जो मिला. उस पद के लिए उन्हें दूसरे नेताओं की तरह अपनी एड़ियां कई सालों तक नहीं रगड़नी पड़ी. न गांव-गांव जा कर चुनाव प्रचार करना पड़ा. न ही अपनी पहचान बनाने के लिए आंदोलन का हिस्सा बनना पड़ा.

तेजस्वी खुद को उस जमींदार की तरह समझते हैं जिसके दरबार में किसी और की क्या हैसियत. घर में हमेशा रौनक ए दरबार देखा और खुद को दरबारियों से घिरे पाया. लालू वंश के युवराज की सामंतवादी सोच पर मीडिया पहरा कैसे बिठा सकती है?

28 साल के तेजस्वी के तनाव को मीडिया समझने की कोशिश करे. एक तरफ सीबीआई के छापों से पूरा परिवार आहत है. मीसा भारती को बिठाकर ईडी 8 घंटे तक सवाल पूछ रही है. ऐसे में मीडिया के भी वैसे ही मिलते-जुलते सवालों से तेजस्वी आपा खोएंगे कि नहीं?

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उनका कहना है कि जिस समय के घोटालों में उनका नाम लगाया जा रहा है तब उनकी उम्र केवल 14-15 साल की थी. बिना मूंछ का युवराज उस वक्त घोटाले का घ भी नहीं जानता था. तेजस्वी का कहना है कि उनके खिलाफ राजनीतिक साजिश है और उन्हें पिछड़ा होने की सजा मिल रही है.

इस बहाने तेजस्वी उस वर्ग को साधने की कोशिश कर रहे हैं जिसके बूते वो सत्ता में पहुंचे हैं.

तेजस्वी की हरकत ने दिलाई लालू-राज की याद

तेजस्वी के भविष्य के साथ साथ महागठबंधन की सरकार के भविष्य पर भी सवाल उठ रहे हैं. जेडीयू ने तेजस्वी को 4 दिनों का अल्टीमेटम दिया है. जेडीयू का कहना है कि तेजस्वी अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब दें और खुद को बेदाग साबित करें.

जाहिर तौर पर तेजस्वी के ऊपर सीबीआई के हाईटेंशन वायर के लटकने से उनका मानसिक संतुलन कोई भी जवाब देने की स्थिति में नहीं है. सीबीआई के छापों के बाद पहली दफे कैबिनेट की मीटिंग हो रही थी जिसमें वो शामिल होने विधानसभा जा रहे थे. ऐन उस मौके पर मीडिया के सवाल तीर की तरह चुभे तो तेजस्वी के सुरक्षा गार्ड गुंडा-आर्मी में बदल गए.

लेकिन देश के चौथे स्तंभ के साथ इस तरह की घटना तेजस्वी की राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाने के लिये काफी है. ये अहंकार और दबंगई बिहार में लालू राज के उन पंद्रह साल की याद दिला गई जब लालू के बेटों का नहीं बल्कि उनके सालों का खौफ दौड़ा करता था.

अब वक्त बदला तो तेजस्वी अपनी शांत छवि के बिल्कुल उलट दिखाई दे रहे हैं. उनका गुस्सा उनके लिये नई मुसीबतें खड़ी कर सकता है. नीतीश सरकार में सुशासन के मुद्दे पर समझौता होना मुश्किल ही लग रहा है.

ऐसे में तेजस्वी के गार्डों के खिलाफ नीतीश सरकार की कार्रवाई महागठबंधन में दरार बढ़ाने का काम करेगी.

नीतीश भी जानते हैं कि अगर कार्रवाई नहीं की गई तो उनकी छवि पर भी असर पड़ेगा और लोग बिहार में कहने न लगें– 'तेजस्वी भय:'